आईना जो दीवार से सटा था , अर्से से उपेक्षित सा टंगा था । जिस पर धूल मिट्टी पड़ती रही , संगी दीवार से पपड़ियां उतरती रहीं । आजकल बेहद उदासीन है , उसका भीतर अब हुआ गमगीन है । बेशक आसपास उसका बेहिसाब रंगीन है ।
आज बीते समय की याद में खोया है।
रूप जो मनोहारी था, मंत्र मुग्ध करता था । जो था कभी सचमुच आकर्षण से भरा हुआ, अब हुआ फीका और मटमैला सा ।