हे दर्पणकार! कुछ ऐसा कर। दर्प का दर्पण टूट जाए। अज्ञान से पीछा छूट जाए। सृजन की ललक भीतर जगे। हे दर्पणकार!कोई ऐसा दर्पण निर्मित कर दो जी, कि भीतर का सच सामने आ जाए। यह सब को दिख जाए जी।
हे दर्पणकार! कोई ऐसा दर्पण दिखला दो जी। जो आसपास फैले आतंक से मुक्ति दिलवा दे जी ।
हे दर्पणकार! अपने दर्पण को कोई आत्मीयता से ओतप्रोत छुअन दो कि यह जादुई होकर बिगड़ों के रंग ढंग बदल दे, उनके अवगुण कुचल दे , ताकि कर न सकें वे अल छल। उनका अंतःकरण हो जाए निर्मल।
हे दर्पणकार! तोड़ो इसी क्षण दर्प का दर्पण , ताकि हो सके किसी उज्ज्वल चेतना से साक्षात्कार , और हो सके जन जन की अंतर्पीड़ा का अंत, इसके साथ ही अहम् का विसर्जन भी। सब सच से नाता जोड़ सकें, जीवन नैया को परम चेतना की ओर मोड़ सकें। ८/६/२०१६