कोई विरला इससे पंजे लड़ाकर, अविचल खड़ा रहकर लौट आता है जीवन धारा में कुछ समय बहने के लिए।
बहुत से सिरफिरे मौत को मात देना चाहकर भी इसके सम्मुख घुटने टेक देते हैं। मौत का आगमन जीवन धारा के संग बहने के लिए अपरिहार्य है! सब जीवों को यह घटना स्वीकार्य है!!
कोई इसे चुनौती नहीं दे पाया। सब इसे अपने भीतर बसाकर, जीवन की डोर थाम कर , चल रहे हैं...अंत कथा के समानांतर , होने अपनी कर्मभूमि से यकायक छूमंतर।
महाकाल के विशालकाय समन्दर में सम्पूर्ण समर्पण और स्व विसर्जन के अनूठे क्षण सृजित कर रहे , जीवन से प्रस्थान करने की घटना का चित्र प्रस्तुत करते हुए एक अनोखी अंतर्कथा। मान्यता है यह पटकथा तो जन्म के साथ ही लिखी जाती है। इस बाबत आपकी समझ क्या कहती है?