सूरज के उदय और अस्त के अंतहीन चक्र के बीच तितली जिंदगी को बना रही है आकर्षक। यह पुष्पों, लताओं, वृक्षों के इर्द गिर्द फैली सुगन्धित बयार के संग उड़ती भर रही है निरन्तर चेतन प्राणियों के घट भीतर उत्साह,उमंग, तरंग ताकि कोई असमय ना जाए जीवन के द्वंद्वों, अंतर्द्वंद्वों से हार और कर दे समर्पण जीवन रण में मरण वर कर।
तितली को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है उस जैसा बन कर। जैसे ही जीवन को जानने की चाहत मन के भीतर जगे तो आदमी डूबा दे निज के पूर्वाग्रह को धुर गहन समंदर अंदर अपने को जीवन सरिता में खपा दे,...अपनी सोच को चिंतन के समन्दर सा बना दे।
और खुद को तितली सा उड़ना और... उड़ना भर ही सिखा दे।
वह अपने समानांतर उड़ती तितली से कल्पना के पंख उधार लेकर अपने लक्ष्यों की ओर पग बढ़ा दे। चलते चलते स्वयं को इस हद तक थका दे, वह तितली से प्रेरणा लेकर अपने भीतर आगे बढ़ने, जीवन रण में लड़ने,उड़ने का जुनून भर ले। अपने अंदर प्रेरणा के दीप जगा ले। जीवन बगिया में खुद को तितली सा बना ले।