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Nov 2024
अर्थ
शब्द की परछाई भर नहीं
आत्मा भी है
जो विचार सूत्र से जुड़
अनमोल मोती बनती है!
ये
दिन रात
दृश्य अदृश्य से परे जाकर
मनो मस्तिष्क में
हलचलें पैदा करते हैं,
ये मन के भीतर उतर
सूरज की सी रोशनी और ऊर्जा भरते हैं।


अर्थ
कभी अनर्थ नहीं करता!
बेशक यह मुहावरा बन
अर्थ का अनर्थ कर दे!
यह अपना और दूसरों का
जीना व्यर्थ नहीं करता!!
बल्कि यह सदैव
गिरते को उठाता है,
प्रेरक बन आगे बढ़ाने का
कारक बनता है।
इसलिए
मित्रवर!
अर्थ का सत्कार करो।
निरर्थक शब्दों के प्रयोग से
अर्थ की संप्रेषक
ध्वनियों का तिरस्कार न करो।
अर्थ
शब्द ब्रह्म की आत्मा है ,
अर्थानुसंधान सृष्टि की साधना है ,
सर्वोपरि ये सर्वोत्तम का सृजक है।
ये ही मृत्यु और जीवन से
परे की प्रार्थनाएं निर्मित करते हैं।

तुम अर्थ में निहित
विविध रंगों और तरंगों को पहचानो तो सही,
स्वयं को अर्थानुसंधान के पथ का
अलबेला यात्री पाओगे।
अपने भीतर के प्राण स्पर्श करते हुए
परिवर्तित प्रतिस्पर्धी के रूप में पहचान बनाओगे।
Written by
Joginder Singh
46
   Vanita vats
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