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देह से नेह कर ,
मगर
इस राह में
ख़तरे बहुत हैं !!
यह
कुछ कुछ
मन के परिंदे के
पंख कुतरने जैसा है,
वह उड़ने के दिवास्वप्न ले जरूर,
मगर
परवाज़ पर
पाबंदी लगा दी जाए।

इसलिए
देह से नेह करने पर
नियंत्रण
व्यक्ति के लिए
बेहद ज़रूरी है।
हाँ,यह भी एक सच है
कि देह से नेह रखने पर
उल्लासमय हो जाता है जीवन,
वह
बाहर भीतर से
होता जाता है दृढ़
इस हद तक
कि यदि तमाम सरहदें तोड़ कर
बह निकले
जज़्बात की नदी
तो कर सकता है वह
निर्मित
उस दशा में
अटल रह,
जीवन रण में
जूझने में सक्षम तट बंध
भले ही
देह में नेह रहना चाहे
निर्बंधन !
यानिकि
सर्वथा सर्वथा बन्धन मुक्त!!


देह से नेह
अपनी सोच की सीमा में रह कर,कर।
ताकि झेलना न पड़ें संताप!
करना न पड़े पल प्रति पल प्रलाप!!

वैसे
सच यह है...
यह सब घटित हुआ नहीं, कि तत्काल
मानस अदृश्य बन्धन में बंधता जाता है।
वह
आज़ादी,सुख की सांस लेना तक भूल जाता है।
काल का कपाल उस की चेतना पर हावी होता जाता है।

इसलिए
मनोज और रति का जीवन प्रसंग
हमें अपनी दिनचर्या में
बसाए रखना अपरिहार्य हो जाता है।
नियंत्रित जीवन
देह से नेह में चटक रंग भरता है !
रंगीले चटकीले रंगों से ही यौवन निखरता है!!
   १७/११/२००९.
Written by
Joginder Singh
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   Vanita vats
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