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हे मेरे मन!
अब और न करो निर्मित
बंधनयुक्त घेरे
स्वयं की कैद से
मुझे इस पल
मुक्त करो।
अशांति हरो।

हे मन!
तुमने मुझे खूब भटकाया है,
नित्य नूतन चाहतों को जन्म दे
बहुत सताया है।
अब
मैं कोई
भ्रांति नहीं, शान्ति चाहता हूँ।
जर्जर देह और चेहरे पर
कांति चाहता हूँ।
देश समाज में क्रांति का
आकांक्षी हूँ।

हे मेरे मन!
यदि तुम रहते शांत हो
तो बसता मेरे भीतर विराट है
और यदि रहते कभी अशांत हो
तो आत्म की शरण स्थली में,
देह नेह की दुनिया में
होता हाहाकार है।

हे मन!
सर्वस्व तुम्हें समर्पण!
तुम से एक अनुरोध है
अंतिम श्वास तक
जीवन धारा के प्रति
दृढ़ करते रहो पूर्व संचित विश्वास।
त्याग सकूँ
अपने समस्त दुराग्रह और पूर्वाग्रह ,
ताकि ढूंढ सकूँ
तुम्हारे अनुग्रह और सहयोग से
सनातन का सत्य प्रकाश,
छू सकूँ
दिव्य अनुभूतियुक्त आकाश।

हे मेरे मन!
अकेले में मुझे
कामनाओं के मकड़जाल में
उलझाया न करो।
तुम तो पथ प्रदर्शक हो।
भूले भटकों को राह दिखाया करो।
अंततः तुम से विनम्र प्रार्थना है...
सभी को अपनी दिव्यता और प्रबल शक्ति के
चमत्कार की अनुभूति के रंग में रंग
यह जीवन एक सत्संग है, की प्रतीति कराया करो।
बेवजह अब और अधिक जीवन यात्रा में भटकाया न करो।


हे मेरे मन!
नमो नमः

मन मंदिर में सहजता से
प्रवेश करवाया करो,
सब को सहज बना दरवेश बनाया करो।
सभी का सहजता से साक्षात्कार कराया करो,
हे मन के दरवेश!
Written by
Joginder Singh
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   Vanita vats
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