किसे लिखें ? अपने हाल ए दर्द की तफ़्सील। महंगाई ने कर दिया अवाम का फटे हाल।
पिछले साल तक चार पैसे खर्च के बावजूद बच जाते थे! तीज त्योहार भी मन को भाते थे!!
अब त्योहार की आमद पर होने लगी है घबराहट सब रह गए ठाठ बाठ! डर दिल ओ दिमाग पर हावी हो कर, करता है मन की शांति भंग! राकेट सी बढ़ती महंगाई ने किया अब सचमुच नंग! अब वेतनभोगी, क्या व्यापारी सब महंगाई से त्रस्त एवं तंग!! किस से कहें? अपनी बदहाली का हाल! अब तो इस महंगाई ने बिगाड़ दी है अच्छे अच्छों की चाल! सब लड़खड़ाते से, दुर्दिनों को कोसते हैं सब लाचारी के मारे हैं! बहुत जल्दी बन बैठे बेचारे हैं!! सब लगने लगे थके हारे हैं!! कोई उनका दामन थाम लो। कहीं तो इस मंहगाई रानी पर लगाम लगे । सब में सुख चैन की आस जगे। १६/०२/२०१०.