वक़्त से पहले गुनाहगार कब जागते हैं? वे तो निरंतर जुर्म करने, मुजरिम बनने की खातिर दिन रात शातिर बने से भागते हैं।
वक़्त आने पर वे सुधरते हैं, नेक राह पर चलने की खातिर पल पल तड़पते हैं!
कभी कभी अपने गुनाहों के साए से लड़ते हैं, अकेले में सिसकते हैं।
पर वक़्त उनकी ज़बान पर ताला जड़ उन्हें गूंगे बनाए रखता है। सच सुनने की ताकत से मरहूम रखकर उन्हें बहरा करता है।
वक़्त आने पर, सच है... वे भीतर तक खुद को बदल पाते हैं
अक्सर वे स्वयं को अविश्वास से घिरा पाते हैं। वे पल पल पछताते हैं, वे दिन रात एक कर के पाक दामन शख़्स ढूंढते हैं, जो उन्हें मुआफ़ करवा सके, दिल के चिरागों को रोशन कर सकें, जीवन के सफ़र में साथ साथ चल सकें। आखिरकार खुद और खुदा पर यक़ीन करना उनके भीतर आत्मविश्ववास भरता है जो क़यामत तक उनके भीतर जीवन ऊर्जा बनाए रखता है, उन्हें जिंदा रखता है, ताकि वे जी भर कर पछता सकें! वे खुद को कुंदन बना सकें !!