रिश्ते पाकीज़गी के जज़्बात हैं,इनका इस्तेमाल न कर। पहले दिल से रिश्ता तोड़,फिर ही कोई गुनाह कर ।। रिश्ते समझो, तो ही,ये जिंदगी में रंग भरते हैं। ये लफ़्फ़ाज़ी से नहीं बनते,नादान,तू खुद कोआगाह कर।। दोस्तों ओ दुश्मनों की भीड़ में, खोया न रहे तेरा वजूद । जिंदगी में ,इनसे बिछड़ने के लिए,खुद को तैयार कर।। अपना,अपनों से क्या रिश्ता रहा है,इस जिंदगी में। इस पर न सोच,इसे सुलझाने में खुद को तबाह न कर।। आज तू हमसफ़र के बग़ैर नया आगाज़ करने निकला है। अकेलापन,तमाम दर्द भूल,आगे बढ़, नुक्ताचीनी ना कर।। अब यदि किताब ए जिन्दगी के पन्ने भूत बन मंडरा रहे। तब भी न रुक, ना डर, इन्हें पढ़ने से इंकार ना कर।। कारवां जिन्दगी का चलता रहेगा,तेरे रोके ये ना रूकेगा। जोगी तू भीतर ये यकीं पैदा कर, रिश्ते मरते नहीं मर कर।।