जिंदगी ने मुझे अक्सर क़दम क़दम पर झिंझोड़ा है यह कहकर, "वक़त तो अरबी घोड़ा है, वह सब पर सवार रहता है, कोई विरला उसे समझ पाता है। जो समझा,वह कामयाब कहलाता है,और.... नासमझ उम्रभर धक्के खाता है, ज़ुल्म और ज़लालत सहता है।"
यह सुनना भर था कि बग़ैर देर किए बरबस मैं जिन्दगी के साए को महसूस वक़्त को संबोधित करते हुए अदना सी गुस्ताख़ी कर बैठा , "तुम भी बाकमाल हो,यही नहीं लाजवाब हो, हरेक सवाल के जवाब हो ।" वक़्त ने मुझे घूरा। फिर अचानक न जाने मैं कह गया, सितम ए वक़्त सह गया...!, "तुम सदाबहार सी जिन्दगी के अद्भुत श्रृंगार हो। यही नहीं तुम एक अरबी घोड़े की रफ्तार सरीखे मतवातर भाग रहे हो ।तुम चाह कर भी रुक न पाओगे।जानते हो भली भांति कि रुके नहीं कि धरा पर विनाश, विध्वंस हुआ समझो । " महसूस कर रहा हूं कि वक़्त एक शहंशाह है ... और वह एक दरिया सा सब के अंदर बह रहा है... ......
धरा पर वक़्त एक अरबी घोड़े सा भाग रहा है। हर पल वो , अंतर्मन का आईना बना हुआ सर्वस्व के भीतर झांक रहा है।