यह कतई झूठ नहीं कि अधिकार पात्र व्यक्ति को मिलते हैं। तुम्हीं बताओ... कितने लोग अधिकारी बनने के वास्ते सतत संघर्ष करते हैं?
मुठ्ठी भर लोग भूल कर दुःख, दर्द , शोक जीवन में तपस्या कर पाते हैं; वे निज को खरा सिद्ध कर कुंदन बन पाते हैं।
ये चन्द मानस रखें हैं अपने भीतर अदम्य साहस और समय आने पर तमाशबीनों का उड़ा पाते हैं उपहास।
सच है, तमाशबीन मानस अधिकारों को नहीं कर पाते हैं प्राप्त। वे समय आने पर निज दृष्टि में सतत गिरते जाते हैं, कभी उठ नहीं पाते हैं, जीवन को नरक बनाते हैं, सदा बने रहते हैं, अधिकार वंचित। जीवन में नहीं कर पाते पर्याप्त सुख सुविधाएं संचित।
उठो, गिरने से न डरो, आगे बढ़ने का साहस भीतर भरो। सतत बढ़ो ,आगे ही आगे। अपने अधिकारों की आवश्यकता के वास्ते । इसके साथ साथ कर्तव्यों का पालन कर, खोजो,समरसता, सामंजस्य, सद्भावना के रक्षार्थ नित्य नूतन रास्ते।
तभी अधिकार बचेंगे अन्यथा एक दिन सभी यतीमों सरीखे होकर दर बदर ठोकरें खाकर गुलाम बने हुए शत्रुओं का घट भरते फिरेंगे। फिर हम कैसे खुद को विजयपथ पर आगे बढ़ाएंगे?