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Nov 2024
प्रवास की चाहत
बेशक भीतर छुपी है,
परन्तु प्रयास
कुछ नहीं किया,
जहां था, वहीं रुका रहा।
दोष किस पर लगाऊं?
अपनी अकर्मण्यता पर..?
या फिर अपने हालात पर?
सच तो यह है कि
असफलता
बहानेबाजी का सबब भी बनती है।
सब कुछ समझते बूझते हुए भी
भृकुटी  तनती है।
    १७/१०/२०२४
Written by
Joginder Singh
73
 
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