======= क्या रखा है वक्त गँवाने औरों के आख्यान में, वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में। ======= स्व संशय पर आत्म प्रशंसा अति अपेक्षित होती है, तभी आवश्यक श्लाघा की प्रज्ञा अनपेक्षित सोती है। ======= दुर्बलता हीं तो परिलक्षित निज का निज से गान में, वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में। ======= जो कहते हो वो करते हो जो करते हो वो बनते हो, तेरे वाक्य जो तुझसे बनते वैसा हीं जीवन गढ़ते हो। ======== सोचो प्राप्त हुआ क्या तुझको औरों के अपमान में, वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में। ========= तेरी जिह्वा, तेरी बुद्धि , तेरी प्रज्ञा और विचार, जैसा भी तुम धारण करते वैसा हीं रचते संसार। ========= क्या गर्भित करते हो क्या धारण करते निज प्राण में, वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में। ========= क्या रखा है वक्त गँवाने औरों के आख्यान में, वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में। ========= अजय अमिताभ सुमन सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रतिकूल परिस्थितियों के लिए संसार को कोसना सर्वथा व्यर्थ है। संसार ना तो किसी का दुश्मन है और ना हीं किसी का मित्र। संसार का आपके प्रति अनुकूल या प्रतिकूल बने रहना बिल्कुल आप पर निर्भर करता है। महत्वपूर्ण बात ये है कि आप स्वयं के लिए किस तरह के संसार का चुनाव करते हैं। प्रस्तुत है मेरी कविता "वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में" का तृतीय भाग।