========== क्या रखा है वक्त गँवाने औरों के आख्यान में, वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में। ========== पूर्व अतीत की चर्चा कर क्या रखा गर्वित होने में? पुरखों के खड्गाघात जता क्या रखा हर्षित होने में? भुजा क्षीण तो फिर क्या रखा पुरावृत्त अभिमान में? वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में। ========== कुछ परिजन के सुरमा होने से कुछ पल हीं बल मिलता, निज हाथों से उद्यम रचने पर अभिलाषित फल मिलता। करो कर्म या कल्प गवां उन परिजन के व्याख्यान में, वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में। ========== दूजों से निज ध्यान हटा निज पे थोड़ा श्रम कर लेते, दूजे कर पाये जो कुछ भी क्या तुम वो ना वर लेते ? शक्ति, बुद्धि, मेधा, ऊर्जा ना कुछ कम परिमाण में। वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में। ========== क्या रखा है वक्त गँवाने औरों के आख्यान में, वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में। ========== अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षित
अपनी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत पर नाज करना किसको अच्छा नहीं लगता? परंतु इसका क्या औचित्य जब आपका व्यक्तित्व आपके पुरखों के विरासत से मेल नहीं खाता हो। आपके सांस्कृतिक विरासत आपकी कमियों को छुपाने के लिए तो नहीं बने हैं। अपनी सांस्कृतिक विरासत का महिमा मंडन करने से तो बेहतर ये हैं कि आप स्वयं पर थोड़ा श्रम कर उन चारित्रिक ऊंचाइयों को छू लेने का प्रयास करें जो कभी आपके पुरखों ने अपने पुरुषार्थ से छुआ था। प्रस्तुत है मेरी कविता "वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में" का प्रथम भाग।