Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Feb 2021
बेआबरू सा करके, रूआंसा सा बन के निकल लिए एकदम ।
बेजान सी पड़ी हूं, सारे सपने हो गए सारे गुम ।।
बालों की खुशबू, सांसो की सुंगध, मीठा सा वहम ।
सब साथ लेकर, ना जाने कहां चले गए तुम ।।
..
हद है .....
..
कभी हम साथ गुजरा करते थे उन कातिल राहों से ।
गांव के चौराहे से, नदी के किनारों से ।।
आज वो राहे रहीं ना तुम ।
बेअदब सा करके, ना जाने कहां चले गए तुम ।।
..
हद है ....
..
वादा था जो जन्मो तक, साथ निभाने का ।
हर वक्त, हर पल यादों में आने का ।।
क्यू ना आज फिर मैं भी तोड़ दू वो कसम ।
झूठे से ख्वाब देकर, ना जाने कहां चले गए तुम ।।
..
हद है....
..
तुम्हारे दिए हुए कंगन के साथ तोड़ डाले मैंने सारे भ्रम ।
कब की आस लिए बैठी थी, आने की तुम्हारे बलम ।।
कहते थे जो तुम, तेरे बिना निकलेगा ना हरगिज ये दम
तनहा कर, अकेला छोड़, इस दुनिया से ही चले गए सनम ।
..
हद है, ऐसे भी कोई जाता है क्या 😭

Written by:- Vikash Yadav
Written by
Vikash Yadav
  223
 
Please log in to view and add comments on poems