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Dec 2020
हे! पुण्य धरा पर जन्मे लोग
    अरुण यह मधुमय देश हमारा
पूर्व मे हिमराज की रक्षा
    दक्षिण में सागर यह निराला
तुम इस धरा पर जन्मे हो
    होता होगा घमंड अति प्यार।।

पर क्या तुम्हें पता नहीं
    देशभक्ति सिर्फ शरहदी सीमा तक नही
यह नित नए रूप धरती है
     देश को उन्नत करती है ।।

मुक्ति का मार्ग यही, धर्म-जात-पात का नाम नही ।
मधुर सुहाने गीतों से, सजी हुई धरती यही ।
खून में ज्वाला भर दे,  उन कवियोँ की धरा यही ।
यहाँ जन्मे बापू भी,  तो भगत सिंह की माँ भी यही ।
अनेकता में एकता लिए , और तुम समझो
                           बस देशभक्ति शरहदो तक ही।।

क्या ये अपमान नही ?
           इस लोकतंत्र के नाम पर !!
क्या ये थप्पड़ नही ?
          हमारे पूर्वजों के नाम पर !!
क्या ये अन्याय नही ?
          वीर सपूतों के बलिदान पर !!
क्या ये टुकड़े नही ?
          धर्म युद्ध के नाम पर !!

अगर हाँ ,
         तो किसने तुमको रोक है?
         शरहदो से परे ये देशभक्ति की सीमा है।।

सोए हुए तुम लोग सभी
            आज तुमको मैं जगती हूँ
हैं असल मे क्या यह देशभक्ति
             मैं तुमको बतलाती हूँ।।

जन्म से शुरू , मृत्यु पर यह खत्म है
     और तुम समझो देशभक्ति का शरहदो पर ही दमन है
आओ तुमको बतलाऊँ, अपने कर्त्तव्यों से मिलवाऊँ
     है देशभक्ति क्या परिभाषा तुमको समझाऊँ।।
 

पाँच साल का नन्हा दुकान पर जब जाता है
  तीस रुपये की चीज लेके दस रुपये दे आता है
दुकानदार को समझकर मुर्ख मन ही मन मुस्काता है
  और वही से उसके मन मे बेईमानी का बीज अस्तित्व में आता है
रोक लो खुद को अगर तुम वही देशभक्ति यह कहलाता है

दस साल का बालक जब परीक्षा देने जाता है
   नकल से पास होकर खूब ठहाके लगता है
है दूसरा कदम यही, यही बीज को पौधा बनाता है
    रोक लो खुद को अगर तुम वही देशभक्ति यह कहलाता है

पँद्रह साल का बालक जब अन्याय को सहना सीखता है
  तीजी सीढ़ी की तरफ अपना अगला कदम वो रखता है

बीस साल का इंसान जब वोट से पीछे हटता है
  दूजो पर इल्जाम लगाके खुद के कर्तव्यों से मुखरता है
तब वहाँ सवाल ये उठता है
   क्या यह देशभक्ति की खुद के नैतिक कर्तव्यों को पूरा करे
क्या यह नही देशविद्रोह जो सिर्फ अधिकारों की बात करे
  
वक्त है अब बतलाने का
   देशभक्ति नही सिर्फ शरहदो तक तुम देश हित मे काम तो करो
   छोटे-छोटे कदमों से ही तुम आसमान का माप करो

जान ली है देशभक्ति हमने , अब इसी राह के फूल बनेगें
उन्नत होगा देश हमारा जब हम खुद को सुधरेगें
और प्रतिज्ञा करते है , आज-अभी-इसी समय से देश हित को अपनाएगें । अब शरहदो तक ही नही घर-घर दिलो-दिलों तक पहुचाएंगे।।।
                    जय हिंद
Written by
Charu pareek
29
 
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