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Jul 2020
बूंद तेरा रूप अनूप
ईश्वर का जैसे सुक्ष्म रूप
बादलों से बरसती है
जैसे गागर छलकती है।। 1।।
तुझमे ही सागर है समाया
तुझमे ही जीवन है पाया
तुझ बीन सबही है सुना
गंगा रूप में बहे सगुना।। 2।।
तुझसे ही प्रकृती इतराती
धानी चुनर ओढ़ इठलाती
तू ही दे उसे रूप सुनहरा
दमके ज्युं दुल्हन का चेहरा।। 3।।
लागे जैसे मोतियों की लड़ी
धरती माँ के गले हो पड़ी
टूटे ना ये मोतीयों की माला
प्रकृती ले रूप विकराला।। 4।।
Raj Jairaj
Written by
Raj Jairaj  25/M/Akola
(25/M/Akola)   
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