धुप में छाँव में , गली हर ठांव में ,
थकते कहाँ थे कदम , मिटटी में गाँव में।
बासों की झुरमुट से , गौरैया लुक छिप के ,
चुर्र चूर्र के फुर्र फुर्र के, डालों पे रुक रुक के।
कोयल की कु कु और , कौए के काँव में ,
थकते कहाँ थे कदम , मिटटी में गाँव में।
फूलों की कलियाँ झुक , कहती थी मुझसे कुछ ,
अड़हुल वल्लरियाँ सुन , भौरें की रुन झुन गुन।
उड़ने को आतुर पर , रहते थे पांव में ,
थकते कहाँ थे कदम , मिटटी में गाँव में।
वो सत्तू की लिट्टी और चोखे का स्वाद ,
आती है भुन्जे की चटनी की जब याद ।
तब दायें ना सूझे कुछ , भाए ना बाँव में ,
थकते कहाँ थे कदम मिटटी में गाँव में।
बारिश में अईठां और गरई पकड़ना ,
टेंगडा के काटे पे झट से उछलना ।
कि हड्डा से बिरनी से पड़ते गिराँव में ,
थकते कहाँ थे कदम मिटटी में गाँव में।
साईकिल को लंगड़ा कर कैंची चलाते ,
जामुन पर दोल्हा और पाती लगाते।
थक कर सुस्ताते फिर बरगद की छाँव में,
थकते कहाँ थे कदम मिटटी में गाँव में।
गर्मी में मकई की ऊँची मचाने थी,
जाड़े में घुर को तपती दलाने थीं।
चीका की कुश्ती , कबड्डी की दांव में,
थकते कहाँ थे कदम मिटटी में गाँव में।
सीसम के छाले से तरकुल मिलाकर ,
लाल होठ करते थे पान सा चबाकर ,
मस्ती क्या छाती थी कागज के नाँव में
थकते कहाँ थे कदम मिटटी में गाँव में।
रातों को तारों सा जुगनू की टीम टीम वो,
मेढक की टर्र टर्र जब बारिश की रिमझिम हो।
रुन झुन आवाजें क्या झींगुर के झाव में,
थकते कहाँ थे कदम मिटटी में गाँव में।
धुप में छाँव में , गली हर ठांव में ,
थकते कहाँ थे कदम , मिटटी में गाँव में।