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May 2020
हम तो राहगीर थे अपनी राह के
पर पहले तूने ही friend  बोला था।
जो तुझे ताल्लुक ही नहीं इस मोहब्बत से  
तो क्यूँ अपने हुस्न को इन जज्बातों से तोला था।।

दिखाकर वो प्यारी सी हँसी
प्यार जगाया ही क्यूँ था।
जो पता ही था तुझे मेरी गरीबी का
तो दिल लगाया ही क्यूँ था।।

तू कितनी ही छिपकर बैठ ले
तेरी सूरत अब भी मेरी नज़रों की हिरासत में रहती है।
और तू मुझसे बोल या ना बोल
पर तेरे लब्जों की ख़ुशबू आज भी मेरे दिलो दिमाग में रहती है।।

खैर तुझको अपना बना सकुँ मै
इतनी मेरी औकात नहीं।
पर मिले हमसफ़र तेरे जैसी
इससे बड़ी सौगात नहीं।।
In your memory!
Written by
S Vikash om  19/M/Jaipur
(19/M/Jaipur)   
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