हाँ मै गलत हु मैं हि गदार हु राज्य से निकाला हुआ भाई का तृष्कार हु भाई के लिए रचता विनास का रण हु हा मै लंकेश का भाई बिभिषण हु
भरी सभा मे रावण को समझता धर्म की बाते बताता लौटा आ सीता को कह खुद को कायर कहलवाता कुल के विनाश के डर से विष्णु के चरणो मे अर्पण हु हा मैं लंकेश का भाई बिभिषण हु
राक्षस कुल मे जन्मा इनसे अलग मेरी निति हैं धर्म पे ही चलना मेरी राजनीति है तुम कहो लंका का भेदी हा लंका का भेद बताया हु भाई के सत्रु से मिलकर भाई को मरवाया हु हा भूल जाओ उस कृति को जिस कृति से ये रूप अपनाया हु ना देव हु ना गण हु राम के चरणो का छोटा सा कण हु हा मैं लंकेश का भाई बिभिषण हु