जाऊ तो कन्हा जाऊ दर्द के सागर में डूबा समां देखू चाहे जिस ओर लगे है कोई मन का चोर हर तरफ लालच चाहत कुछ पाने की स्वार्थ के सागर में डूबा समां जाऊ तो कन्हा जाऊ ............. न जाने लगी किसकी नजर सब है यंहा बेखबर धर्म के नाम पे लरते सब यंहा ना जाने इंसा खोया कन्हा जाऊ तो कन्हा जाऊ ............. सोचु लौटु अपनो के बीच फिर सोचु पराये है सब यंहा कौन अपना कौन पराया की लराई क्यों क्यों लर रहे सब यंहा जाऊ तो कन्हा जाऊ ............. आज एक बाप हवस का भूखा बेटी की इज्जत लुटे यंहा हर तरफ है बेहसी चेहरा इज्जत लुटे यंहा वंहा जाऊ तो कन्हा जाऊ ............. हर तरफ एक माँ की बेटी हर रात डर-डर के सोती ना जाने कब कौन लुटे कन्हा सोचु कौन अपना,सोचु कौन अपना जाऊ तो कन्हा जाऊ .......... ****मन