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Dec 2019
छत पर बैठा एक प्रेमी,
अपनी प्रेमिका को करें याद।
बोलना चाहे पर ना बोल पाए ,
अपनी प्रेमिका को अपने दिल की बात।
किये थे वादे उन्होंने क्भी हजार,
पर प्रेमिका को थी किसी औंर का गुलज़ार।
आज भी छत पर देख उसकी राह,
पुछे मुझे "कया था मेरा गुनाह?"।
कैसे है यह जसबात, कैसा अहसास,
जो न छोड़े, देकर एक आभास।
उनहीं लंभो को बार-बार याद कर,
घुट रहा मेरे यार का दिल,
हाए ये तुम कया कर गई,
ऐ कातिल,
ऐ कातिल,
ऐ कातिल।
Written by
Ayush Mukherjee
77
 
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