मेरी तन्हाई की क्या तारीफ़ लिखूँ क्या शेर लिखूँ क्या ग़ज़ल लिखूँ ना अहंकार उसे ना रंज उसे ना तर्क करे ना वो करे तकरार वो फुसूँ हैं मेरी ज़िंदगी का और मैं उसका बेशर्त कदारदार
मेरी तन्हाई की क्या तारीफ़ लिखूँ क्या शेर लिखूँ क्या ग़ज़ल लिखूँ उसकी ज़बान पे फ़ुर्सत का ज़ायक़ा उसकी आँखों में चैन की चमक उसके लबों पे मेरे दिल की आवाज़ वो पंख है मेरे खवाबों की मेरे संग घंटो कल्पनाओं की उड़ाने भरा करती है
मेरी तन्हाई की क्या तारीफ़ लिखूँ क्या शेर लिखूँ क्या ग़ज़ल लिखूँ वो हमराह है मेरी वो हमराज़ भी वो घाव है वो वक़्त का मरहम भी उसकी नज़दीकियों में भी फ़ासले की सी ख़ुशबू आया करती है