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Jan 2013
जाने क्यों लगे
आज फिर कोई लम्हा छुट रहा हो मुझसे
अन्दर ही अन्दर कोई कुछ लुट रहा हो मुझसे
बेताबी इसकदर है की धरकने थमती ही नहीं
यूँ तो गुजरने को साल गुजरते है
ये वक्त गुजराती ही नहीं
सोचता हूँ कह दू हर वो बात
जो अब तक नहीं कहा तुझसे <3
Mann Choudhary
Written by
Mann Choudhary  Ranchi
(Ranchi)   
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