आज बड़ी मुद्दत बाद मैंने और ज़िन्दगी ने साथ-साथ आँख खोली तो वह इतराई, उसकी महक़ में मंत्रमुग्ध रसा के भँवरे जैसा मेरा मन, या सावन की धुन लगा सफ़ेद सीतापंग, उमंगों की लहरों में गोते लगाता कूंची लिए अपने को रंगों से सजाता।
कुछ क़दम क्या चले मन में चिंता घिर आई और माथे पर सलवटें ले आई, दुनिया सतरंगी और मैं सफ़ेद पट, यह कलाकार मन मौजी मेरा क्या रंगों को समझ पाएगा, ज़ीवन श्यामपट तो नहीं एक बार रंग भरा तो कहां फ़िर कोरा हो पायेगा, जाते-जाते पता नहीं यह फ़नकार मेरे संग-ए-क़बर पे दास्ताँ कौन सी खुदवाएगा।
मन अटखेली करता मुझपे मुस्काया, हल्के से उसने मेरा परिचय जीवन के रंगों से करवाया, ख़ुशी का रंग सुबह की लालिमा सा लाल, तन्हाईयाँ काली बदरा सी, दुखों का रंग सफ़ेद, इश्क़ सुर्ख ग़ुलाब, खिलखिलाहट का रंग हरा, हर रास का एक रंग, कोई रास नहीं तो वह भी कहाँ बेरंग।
ज़िंदगी ने फिर कहा कि अतरंगी ने ही जिया है मुझे, तू समझ की चादर न ओढ़ मोह का रंग काफ़ूर हो जाएगा, कल की सोच की आँधी में आज रेत सा सरक जाएगा, हर रंग भरेगी इस जीवन में तो अंत में यह फिर सफ़ेद पट हो जाएगा, इस रंगों की बारिश में वह सतरंगी हो जाएगा।