आज एक अज़नबी ने पुछा हमसे बड़ी सोच में लगते हैं कुछ कहें ज़िन्दगी कैसे रही सवाल ने एक मुस्कराहट बिखेर दी चेहरे पे हमने कहा की जनाब अभी तो चल रही है ३-४ शब्द रख छोड़े हैं यम देवता को बतलाने देखिये कब मौका पड़ता है वोह बोले अभी तक का सफ़र ही कह दीजिये हमने कहा की क्या बयां करें बचपन उम्मीदों का घड़ा था आज सबक़ का बाजार है बड़ा बेफ़कूफी भरा साहस था आज रिश्तों की बेड़ियों ने जकड़ा हैं एक वक़्त था अजनबियों पर इतना विश्वास था की जान लगा दें आज कुध पे ही शक़ और हर रोज़ ज़िरह होती हैं एक सुकून जो मिला इस ज़िन्दगी में वो ममत्व का है ज़िन्दगी गुलज़ार लगेगी अगर उसके जहाँ में यह उमीदों का और हौसलों का घड़ा भरा रहें