आज सावन की पहली बारिश हुई किसी ने कहा के सावन इश्क़ का मौसम है मन में मैं मंद सी मुस्काईं सोचा की इश्क़ भी क्या कभी मौसम का लिहाज़ करता है
उसने कहा की मंद मंद क्या मुस्काते हो इश्क़ से दोस्ती है तुम्हारी तो हमें भी ज़रा मिला दो मैंने कहा की इश्क़ का क्या कहें, वोह बांवरा है किसी भी रूप रंग में वह हमेशा ही त्यार हर पल थोर ही देखता हो जैसे किसी मतवाले मन की आगाज की खुशियाँ ऐसी की अंजाम के दुःख को भुला दे और हर बार उसमे एक नया पाकपन की सुबह की ओस की बूँद ही नहीं वोह नयी दुल्हन को भी लज्जा दे वोह देता है जीने का एहसास ऐसे की साँस भी अगली इश्क़ बिना ना आना चाहे
उसने कहा की तुम इश्क़ को इतना जानते हो कोई इसके पुराने चश्मीदिगार लगते हो मैंने कहा मतवाले इश्क़ के कायल तो जरुर हैं हम पर उसके बीमार नहीं उसने रुलाया तो हमें भी पर उसकी हँसियों का इंतज़ार हमें आज भी आज सावन का ही बहाना ले के आ जाये हमारे चेहरे ने कई दिनों से मुसकुराहट नहीं देखी