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Mar 2018
होड़ में आगे निकलने की हदें तोड़ते जा रहे हैं,
कहलाते तो  इंसान हैं, इंसानियत छोड़ते जा रहे हैं|

मेहनत से खड़ा किया था जिन सिक्कों के  बाजार को,
उसी की खनखनाहट ने दबा दिया दिल की हर आवाज़ को,
दाम तो लगा लिया है ज़िन्दगी के हर ऐशोआराम का
पर खरीद न पाए अबतक उस मासूम सी  मुस्कान को|

अपने - अपने मोबाइल पे संसार जोड़ते जा रहे हैं,
बना लिए हैं दोस्त हज़ारों, दोस्ती भूलते जा रहे हैं|

तकनीकी बुलंदियों ने छू  लिया आसमान को,
तरक्की  की सीढ़ियां ढकती है सारे जहां को,
पर भूल बैठे वो मासूमियत, वो भावनाएं, वो ह्रदय,
जो भगवान् ने दे के भेजा था संसार के  हर इंसान को|

चाँद पे भी ज़िन्दगी का सपना संजोते जा रहे हैं,
हैं निवासी धरती के, धरा छोड़ते जा रहे हैं|
Written by
Shubh Shukla
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