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Chhavi Sahni
Poems
Nov 2011
mehngi hawa...
बड़ी महंगी है हवा
मुट्ठी भर चुन्नी में बाँध
घूमा करती है वो
दम घुटने लगता है तो
चुन्नी के छोटे छोटे छेदों से
सीपती हवा को सूंघ लेती है
एक दिन जी लेती है
छुपाना पड़ता है पल्लू में
बनी उस गाँठ को
क्यूंकि लोग सवाल बहुत करते हैं
और किसी को पता चला
इतनी महंगी चीज़ लिए घूमती है वो
तो चुरा लेंगे
यही तो हुआ था पहले भी
आसमान भर हवा
एक गाँठ में समाती है अब
उतना भी बिना हक
सारी दुनिया से छिपाती है अब .
Written by
Chhavi Sahni
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