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Mar 2015
=== Back का सिलसिला ===

Back का सिलसिला
संग चलने लगा
        ऐसा सोचा न था !!
ईस्क है पाने खोने का
एक सिलसिला
ऐसा सोचा न था !!
pass वो हो गई
Back मुझ को मिला !!
ऐसा सोचा न था !!

notes मै ने लिखा
पर पढी यार वो
ऐसा सोचा न था !!
प्यार मे मुझ को कैसा
दगा मिल गया !!
ऐसा सोचा न था !!

जब थी नजरे मिली
Back एक मे लगा
जब मिले तो दो – दस,
Back ढोना पडा !!
ऐसा सोचा न था !!

अब तो छे Back है
हर semester मिले
ऐसा सोचा न था !!
हम भी बेसर्म सा
मुस्कूराने लगे !!

बात घर तक गई
तो ये दंगा हुआ
मम्मी का प्यारा बेटा
लफन्गा हुआ !!

दादी की गालिया
तो कहर बन पडी
मेरी ध्यान फिर भी थी
उन पे अडी !!


Back लगता था तब
अब तो ree लग रहा
ऐसा सोचा न था !!
फिर मेरी हौसलो कि
हवा खुल गई !!


pass वो हो गई
fail मै हो गया !!

Back का सिलसिला
संग चलने लगा
ऐसा सोचा न था !!

सुरज कुमर सिहँ
दिनांक :-  17-03-2015
hindi poem on back paper
suraj kumar singh
Written by
suraj kumar singh  ODISHA
(ODISHA)   
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