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Feb 2015
~~~~~~~~~~~~~ - ग्राम की शाम -  ~~~~~~~~~~~~~

था सूर्य डूबा या डूब रहा
बस उसी की संध्या बेला में ।
जुगनू थे सभी जगमगा रहे
मेरी ग्राम की संध्या बेला में ॥


प्रतित हुआ सबको ऐसा
तारे उतरे इस मेला में ।
रजनी भी बैठे थी देख रही
मेरे ग्राम की संध्या बेले को ॥


उस शाम की थी
कुछ सान अलग ।
अंधेरो की,
पहचान अलग ।
जगमगा रहे नभ मे जुगनू,
धरा पर थी तारो की चमक ॥
नजरे सबकी वहाँ देख रही,
पर हर बैथे थे अकेला में ॥


थी द्र्ष्य अलग अद्भूत जैसी
मेरे ग्राम की सन्ध्या बेले में ।

चह्के पंक्षी, बहके थे पवन
थे फूल सुखे उस संध्या को
लेकिन फिर भी महके गुलशन ।
मेरे ग्राम की संध्या बेले में ॥


-सुरज कुमर सिहँ
दिनांक :- 17 / 04 / 2009

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suraj kumar singh
Written by
suraj kumar singh  ODISHA
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