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Feb 2015
मैं लिखता नहीं  !!

मैं लिखता नही
स्याही हिं बस बहाता हूँ ,

कविता कल्पना
है चिज बड़ी ए शाहब
मैं मन से बनें
दो शब्द गुनगुनाता हूँ ॥

मैं बस शब्द का
सृगार यार करता हूँ
अपने अनूभवों का
रंग उसमें भरता हूँ ॥

झूठी हर कहानी
हीं सरल सी होती है
बस यह सोच कर ही
दो शब्द गुनगुनाता हूँ ॥
मै किखता नहीं
स्याही हिं बस बहाता हूँ ॥

कितने हिं कलम का
मात्र मै अपराधि हूँ
उनके रक्त का
अपमान किया है, मैनें,

अंधी जनता ,
सच्ची कहानी
लिख-लिख कर  
कितने स्याही  को बद्नाम
किया है | मैंने
कितनो कि कलम,
साम्मान ले रही सबकी
ह्त्या को भी,
वलिदान कहा है जिसनें
वाश्ना को कहे जो
रंग नया जिवन कि
अपराधों को विरता का तथ्य देते है ॥

पर मेरी कलम
यह सब कला में असफल है ।
ऐसा लिखने से पहले,
टुट जाती है ।
मैं लिखता नहीं
स्याही हिं बस बहाता हूँ ।



कबिता कल्पना
है चिज बड़ी ए शाहब,
मैं मन से बने
दो शब्द गुनगुनाता हूँ ॥

- सुरज कुमर सिहँ
दिनांक  :- 06 / 09 / 2012
suraj kumar singh
Written by
suraj kumar singh  ODISHA
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