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suraj kumar singh
Poems
Feb 2015
hindi poem on reservation (मै गरीब क्य खाना खाऊँ)
मै गरीब क्य खाना खाऊँ !!
मै गरीब क्या खाना खाऊँ
सोच रहा यह दो दिन से !
घर कि चुल्हा टूटी है !
किस्मत भी अपनी फूटी है !!
जो गिरा मिला रोटी मुझको
वो भी कुत्ते की जुठी है !!
मै क्रोधित हूँ ।
मै भूखा हूँ ।
किस्मत से अपनी रुठा हूँ !!
पर हँसता हूँ । मै मानव हूँ
मैं मनव हूँ ??
हाँ हूँ शायद
यह सोच-सोच हीं रोता हूँ ॥
मेरी मईया भी भूखी है ,
पापा भी भूखे दो दिन से !
भैया कि नौकरी छुटी है ,
ये आरक्षण की तोफा है!!
वो पढे लिखे है काविल है !!
आरक्षण उनके मित्रो को
हम जातिवाद मे शामिल है !!
वो रोते है पर छिप-छिप कर
लोगो का ताना सहते है ।
पर गले लगा कर वो मुझको
बस एक बात ही कहते है,
हम ऊची जति के वारीश है ??
ईसीलिये तो भूखे सोते है !!
क्या ?? जतिवाद ही करण है
हूँ सोच रहा मै दो दिन से
मैं गरीब क्या खाना खाऊँ
सोच रहा हूँ दो दिन से ॥
खाने की खुशबु आती है
तब भूख और बढ़ जाती है !
पर चुप है, अपने घर मे हम
गम का पकवान बनाते है !!
पर भूख अभी भी बाकी है
क्या गरीब खाना खाते है
सोच रहा मैं दो दिन से ॥
- सूरज कुमार सिँह
दिनांक :- 16 / 06 /14
Written by
suraj kumar singh
ODISHA
(ODISHA)
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