Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Feb 2015
लत दौलत की

लत दौलत की हम को
है कहाँ पर ले आई
आईने भी जहाँ पर
झूठी बात करते है ॥


जो भर कर खतो में
प्यार भेजा करते थे ।
उनकी चिठ्ठीयों का
मोल हम लगा बैठे ॥


पहले माँ बाप ही
सोहरत सभी थे , ऐ साहब
क्यों ?? दौलत को ही
माँ बाप हम बना बैठे ॥

लत दौलत की हम को
है कहाँ पर ले आई
अपनो की हीं शौदा
हम लगाने आये हैं ॥


जिन बुजुर्गो कि दुआ
हर खुशी में शामिल थी
उनकी हीं हँसी को
हम हीं बेच आये है ॥


जो माई की लोरीयाँ,
हमें सुलाती थी ।
वो पापा की थपकीयाँ,
जो दम धराती थी ।
वो दादी की छोटी सी कहानी
परीयों की,
भाइ की हँसी जो
हम को सबसे प्यारी थी ।
आज इन सब को हम दौलत मे तौल आये है ॥


आरजु थी कभी जो
मैं भी सेवा माँ की करुं
पर दौलत को हीं
माँ बाप सब बना बैठे ॥
लत दौलत की हम को
है कहाँ पर ले आई ॥


- सुरज कुमर सिहँ
दिनांक :- 18 / 05 /14
suraj kumar singh
Written by
suraj kumar singh  ODISHA
(ODISHA)   
2.3k
 
Please log in to view and add comments on poems