लत दौलत की हम को है कहाँ पर ले आई आईने भी जहाँ पर झूठी बात करते है ॥
जो भर कर खतो में प्यार भेजा करते थे । उनकी चिठ्ठीयों का मोल हम लगा बैठे ॥
पहले माँ बाप ही सोहरत सभी थे , ऐ साहब क्यों ?? दौलत को ही माँ बाप हम बना बैठे ॥
लत दौलत की हम को है कहाँ पर ले आई अपनो की हीं शौदा हम लगाने आये हैं ॥
जिन बुजुर्गो कि दुआ हर खुशी में शामिल थी उनकी हीं हँसी को हम हीं बेच आये है ॥
जो माई की लोरीयाँ, हमें सुलाती थी । वो पापा की थपकीयाँ, जो दम धराती थी । वो दादी की छोटी सी कहानी परीयों की, भाइ की हँसी जो हम को सबसे प्यारी थी । आज इन सब को हम दौलत मे तौल आये है ॥
आरजु थी कभी जो मैं भी सेवा माँ की करुं पर दौलत को हीं माँ बाप सब बना बैठे ॥ लत दौलत की हम को है कहाँ पर ले आई ॥