" जब से खोली है खीरकी ,
मैरी नज़र तेरी छत पर अटकी है ,
तेरे आने की आहट ,मेर दिल मै अटकी है,
तेरे बलखाते जुल्फो को देखना कि चाहत होती है ,
जब भी इंतिज़ार करते करते ये पलके झपकी है ,
ख्वाबो मै भी तुझे पाने की आरजू होती है।
मगर नीन्द से जाग , बिस्तर से से ऊठ,
तकिये को मोड , खीरकी को खोल ,
तेरे छत पर ये नज़र अटकी है.। "
"दीप"