कुछ यूँ लगा उस कोने में बैठे सख्स की आँखों को देखकर,
उसके पंखो की चाहत और उड़ान क चेष्टा,
कुछ पाने की चाहत कुछ करने का जज्बा,
कुछ यूँ लगी उसके मन की अभिलाषा,
खुले आकाश को देखकर बादलो को छुने की तमन्ना,
एक ऊंचाई पे पहुंचकर निचे का नजारा ,
कुछ यूँ बया कर रही थी उसके अल्फाजो की उमड़न,
उसके ज़ज्बातो की उलझन,
सिसकिया दबाये बैठा था वो,
एक आस लगाए बैठा था वो ,
कुछ तो था उसके लबों पे जो बयां करना था उसे,
झलक रहा था इन्तजार उन आँखों में,
जैसे सादिया बीत गई हो उसी चाहत में,
शायद उस सख्स की आँखों में मैं खुद की ख्वाहिसे
तलाश रही थी,
उस उम्मीद, उड़ान और जज्बे को खुद से जोड़ रही थी,
उस वक़्त का इंतजार मुझे भी था शायद,
जो उस सख्स की आँखों में था,
तभी अचानक बस में बैठे उस सख्स की मंजिल आ गई,
और उसकी आंखे भी मेरी ही आँखों की जुबान बन के रह गईII