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जीवन में कभी कभी
चल ही जाता है तीर तुक्का !
आदमी हो जाता है अचंभित और हक्का बक्का !!
ऐसा होता है प्रतीत कि
आदमी ने जीवन में मैदान मार लिया हो।
शत्रु को बस
खेल खेल में कर दिया हो चित्त।
पर पता नहीं था
जीतने से पहले
कब होना पड़ जाएगा चारों खाने चित्त ?
१२/०४/२०२५.
85 · Nov 2024
बुढ़ापा
Joginder Singh Nov 2024
समय की धुंध में
धुंधला जाती हैं यादें !
विस्मृति में की गर्त में
खो जाती हैं मुलाकातें !!
रह रह कर स्मृति में
गूंजती है खोए हुए संगी साथियों की बातें !!!

आजकल बढ़ती उम्र के दौर से गुज़र रहा हूं मैं,
इससे पहले की कुछ अवांछित घटे ,
घर पहुंचना चाहता हूं।
जीवन की पहली भोर में पहुंचकर
अंतर्मंथन करना चाहता हूं !
जिंदगी की 'रील 'की पुनरावृत्ति चाहता हूं !

अब अक्सर कतराता हूं ,
चहल पहल और शोर से।

समय की धुंध में से गुज़र कर ,
आदमी वर लेता है अपनी मंज़िल आखिरकार ।

उसे होने लगता है जब तब ,
रह ,रह कर ,यह अहसास !
कि 'कुछ अनिष्ट की शंका  है ,
जीवन में मृत्यु का बजता डंका है।'
इससे पहले की ज़िंदगी में
कुछ अवांछित घटे,
सब जीवन संघर्ष में आकर जुटें।

यदि यकायक अंदर बाहर हलचल रुकी ,
तो समझो जीवन की होने वाली है समाप्ति ।
सबको हतप्रभ करता हुआ,
समस्त स्वप्न ध्वस्त करता हुआ,
समय की धुंधयाली चादर को
झीनी करता हुआ , उड़ने को तत्पर है पंछी ।

इस सच को झेलता हूं,
यादों की गठरी को
सिर पर धरे हुए
निज को सतत ठेलता हूं !
सुख दुःख को मेलता हूं !!
जीवन के संग खेलता हूं!!!

२२/०१/२०११.
85 · Dec 2024
Struggler
Joginder Singh Dec 2024
A struggler
lives a life of layman
who is very sensitive.
He seldom morally dies
even in hard times,
his painful cries
can be rarely heard
here and there
during constantly wandering in
the journey of life.
He remains a pain absorber
through out his life.
85 · Nov 2024
A Helping Hand
Joginder Singh Nov 2024
Every body in life,
needs a helping  hand.
So that one can stand firmly to face the hardness and the obstacles of life.
For this noble cause,
please mould your self to enjoy a tensionfree and peaceful life.
You must be a helping hand to your friends and family members.
Remember true worship exists only  ,when you engage yourself to provide help to needy people.
Joginder Singh Nov 2024
आज फिर बंदर
दादा जी को छेड़ने
आ पहुंचा।
दादा ने छड़ी दिखाई, कहा,"भाग।"
जब नहीं भागा तो दादू  पुनः चिल्लाए,"भाग, सत्यानाशी...।"
तत्काल,बंदर ने कुलाठी लगाई
और नीम के पेड़ पर चढ़कर
पेड़ के साथ लगी, ग्लो की बेल,
जिसकी लताएं  ,  नीम पर चढ़ी थीं,से एक टहनी तोड़,
दांतों से चबाने लगा।
मुझे लगा, चबाने के साथ,वह कुछ सतर्कता भी
दिखा रहा था।
बूढ़े दादू उस पर लगातार चिल्ला रहे थे ,
उसे भगा रहे थे।
पर वह भी ढीठ था,पेड़ की शाखा पर बैठा रहा,
अपनी ग्लो की डंडी चबाने की क्रिया को सतत करता रहा।
  उसने आराम किया और बंदरों की टोली से जा मिला।

दादू अपने पुत्र और पोते को समझा रहे थे।
ये होते हैं समझदार।
वही खाते हैं,जो स्वास्थ्यवर्धक हो ।
इंसान की तरह   बीमार करने वाला भोजन नहीं करते।

मुझे ध्यान आया,
बस यात्रा के दौरान पढ़ा एक सूचना पट्ट,
जिस पर लिखा था,
"वन क्षेत्र शुरू।
कृपया बंदरों को खाद्य सामग्री न दें,
यह उन्हें बीमार करती है ।"
मुझे अपने बस के कंडक्टर द्वारा
बंदरों के लिए केले खरीदने और बाँटने का भी ध्यान आया।
साथ ही भद्दी से नूरपुरबेदी जाते समय
बंदरों के लिए केले,ब्रेड खरीदने
और बाँटने वाले धार्मिक कृत्य का ख्याल भी।

हम कितने नासमझ और गलत हैं।
यदि उनका ध्यान ही रखना है तो क्यों नहीं
उनके लिए उनकी प्रकृति के अनुरूप वनस्पति लगाते?
इसके साथ साथ उनके लिए
शेड्स और पीने के पानी का इंतजाम करवाते।
  
भिखारियों को दान देने से
अच्छा है
वन विभाग के सहयोग से
वन्य जीव संरक्षण का काम किया जाए।
प्रकृति मां ने
जो हमें अमूल्य धन  सम्पदा
और जीवन दिया है ,
उससे ऋण मुक्त हुआ जाए।
प्रकृति को बचाने,उसे बढ़ाने के लिए
मानव जीवन में जागरूकता बढ़ाई जाए।
समाज को वनवासियों के जीवन
और उनकी संस्कृति से जोड़ा जाए।
निज जीवन में भी
सकारात्मक सोच विकसित की जाए ,
ताकि जीवन शैली प्रकृति सम्मत हो पाए।
85 · Nov 2024
Naughtiness
Joginder Singh Nov 2024
Let us become naughty today.
Celibrate it as a happiness day .
We all are travellers here.
Next day we wouldn't be there to enjoy.
Life is full of uncertainties.
Let us put some moments of happiness in  our self consciousness.
Be naughty and tensionfree.
Naughtiness and fun within limits are the best for leading a postive life here.

Is it clear,my dear
Moments for departure is very near.
So, celibrate naughtiness within us.
प्रेम उधारी को पसन्द नहीं करता।
कितना अच्छा हो
यदि प्रेम कभी-कभी
उधारी पर मिल जाए,
किसी का काम चल जाए।
आदमी क्या औरत और अन्य की
जरूरत पूरी हो जाए।
वासना उपासना में बदल पाए।

आजकल
दुनिया के बाजार में
प्रेम में उधारी बंद है ,
इसलिए
इसे पाने के लिए
लोग व्यग्र हैं,
हो रहे तंग हैं।
याद रखें
प्रेम की उधारी से
कभी सुख नहीं मिलता।
इससे केवल नैराश्य और आत्महत्या का रास्ता साफ दिखा करता ,
परन्तु इससे बंधा बंदा बंदी बनकर सदैव भटका है करता।
आप भी इससे बचें,
ताकि जीवन धारा को वर सकें।
१६/०४/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
तुम उसे पसंद नहीं करते ?
वह घमंडी है।
तुम भी तो एटीट्यूड वाले हो ,
फिर वह भी
अपने भीतर कुछ आत्मसम्मान रखे तो
वह हो गया घमंडी ?
याद रखो
जीवन की पगडंडी
कभी सीधी नहीं होती।
वह ऊपर नीचे,
दाएं बाएं,
इधर उधर,
कभी सीधी,कभी टेढ़ी,
चलती है और अचानक
उसके आगे कोई पहाड़ सरीखी दीवार
रुकावट बन खड़ी हो जाती है
तो वह क्या समाप्त हो जाती है ?
नहीं ,वह किसी सुरंग में भी बदल सकती है,
बशर्ते आदमी को
विभिन्न हालातों का
सामना करना आ जाए।
आदमी अपनी इच्छाओं को
दर किनार कर
खुद को
एक सुरंग सरीखा
बनाने में जुट जाए।
वह घमंडी है।
उसे जैसा है,वैसा बना रहने दो।
तुम स्वयं में परिवर्तन लाओ।
अपने घमंड को
साइबेरिया के ठंडे रेगिस्तान में छोड़ आओ।
खुद को विनम्र बनाओ।
यूं ही खुद को अकड़े अकड़े , टंगे टंगे से न रखो।
फिलहाल
अपने घमंड को
किसी बंद संदूक में
कर दो दफन।
जीवन में बचा रहे अमन।
तरो ताज़ा रहे तन और मन।
जीवन अपने गंतव्य तक
स्वाभाविक गति से बढ़ता रहे।
घमंड मन के भीतर दबा कुचला बना रहे ,
ताकि वह कभी तंग और परेशान न करे।
उसका घमंड जरूर तोड़ो।
मगर तुम कहीं खुद एक घमंडी न बन जाओ ।
इसलिए तुम
इस जीवन में
घमंड की दलदल में
धंसने से खुद को बचाओ।
घमंड को अपनी कथनी करनी से
एक पाखंड अवश्य सिद्ध करते जाओ।
११/१२/२०२४.
Joginder Singh Nov 2024
अचानक
एकदम से
अप्रत्याशित
चेतन ने आगाह किया
और मुझसे कहा,
" अरे! क्या कर रहे हो?
खुद से क्यों डर रहे हो?
इधर उधर दौड़ धूप कर
छिद्रान्वेषण भर कर रहे हो।
अपना जीवन क्यों जाया कर रहे हो?"
बस तब से मैं बदल गया।
मुझे एक लक्ष्य स्व सुधार का मिल गया।
Joginder Singh Dec 2024
जो
भटक गए हैं
राह अपनी से
वे सब
अपने भीतर
असंख्य पीड़ाएं समेटे हुए हैं ,
वे मेरे अपने ही बंधु बांधव हैं ,
मैं उन्हें कभी
तिरस्कृत नहीं कर पाऊंगा !
मैं उन्हें कभी
उपेक्षित नहीं रहने देना चाहूंगा !
उनकी आंखों में
रहते आए
सभ्य समाज में विचरकर
और अनगिनत कष्ट सहकर
दिन दूनी रात चौगुनी
तरक्की करने के सपने हैं ।

जो
भटक गए हैं
राह अपनी से
वे सब लौटेंगे
अपने घरों को...एक दिन ज़रूर
अचानक से
यथार्थ के भीतर झांकने की गर्ज़ से ,
वे कब तक भागेंगे अपने फ़र्ज़ से ,
आखिर कब तक ?
उन्हें लड़ना होगा
ग़रीबी, बेरोज़गारी के मर्ज़ से ।
वे कब तक
यायावर बने रहेंगे ?
भुखमरी को झेलते झेलते
कब तक भटकते रहेंगे ?
यह ठीक है कि
वे अपनी अपनी पीड़ाएं
सहने के लिए मजबूर हैं ।
वे कतई नहीं
कहलाना चाहते गए गुज़रे
भला वे कभी ज़िन्दगी के
कटु यथार्थ से
रह सकते दूर हैं !
भले ही वे
सदैव बने  रहे मजदूर हैं।
भला वे कब तक
रह सकते अपने सपनों से दूर हैं ।
उन्हें कब तक
बंधनों में रखा जा सकता है ?
दीन हीन मजबूर बना कर !
आखिरकार थक-हारकर
एक दिन
उन्हें अपने घरों की ओर
लौटना ही होगा ।
सभ्य समाज को
उन्हें उनकी अस्मिता से
जोड़ना ही होगा।

१६/१२/२०१६.
Joginder Singh Dec 2024
While seeing an image of Umangoat river
I was astonished!
The river seems me
looks like exactly a mirror passing through
the mesmerizing world of underwater.
Very very clean !!
and crystal clear water !!
It can remind you about the purity of Life,dear.
I am very eager to visit there!
Joginder Singh Nov 2024
जब संबंध शिथिल हो चुके हैं,
अपनी गर्माहट खो चुके हैं,
तब अर्से से न मिलने मिलाने का शिकवा तक,
हो चुका होता है बेअसर,
खो चुका होता है अपने अर्थ।
ऐसे में लगता है
कि अब सब कुछ है व्यर्थ।
कैसे कहूं  ?
किस से कहूं ?
क्यों ही कहूं?
क्यों न अपने  में सिमट कर रहूं ?
क्यों धौंस पट्टी सब की सहूं ?
अच्छा रहेगा ,अब मैं
चुप रहकर
अकेलेपन का दर्द सहूं।
वक्त की हवा के संग बहूं।


कभी-कभी
अपने मन को समझाता हूं,
यदि मन जल्दी ही समझ लेता है ,
जीवन का हश्र
एकदम से ,
तो हवा में
मैं उड़ पाता हूं !
वरना पर कटे परिंदे सा होकर
पल प्रति पल
कल्पना के आकाश से ,
मतवातर नीचे गिरता जाता हूं ,
जिंदगी के कैदखाने में
दफन हो जाता हूं।


मित्र मेरे,
पर कटे परिंदे का दर्द
परवाज़  न भर पाने की वज़ह से
रह रह कर काटता है मुझे ,
अपनी साथ उड़ने के लिए
कैसे तुमसे कहूं?
इस पीड़ा को
निरंतर मैं सहता रहूं ।
मन में पीड़ा के गीत गुनगुनाता रहूं ।
रह रह कर
अपने पर कटे होने से
मिले दर्द को सहलाता रहूं।
पर कटे परिंदे के दर्द सा होकर
ताउम्र याद आता रहूं।

१०/०१/२००९.
बचपन की कहानी का
रंगा सियार
आज
मैंने अनुभूत किया ।
आजकल
वह सत्ता के सिंहासन पर  
आसीन  है
और हरेक विरोधी को
गिदड़ भभकी दे रहा है ,
और इसके साथ ही
अपने आका के आगे
नाच रहा है।
वह शीघ्रता से
मौत का तांडव करने
शहर शहर
यार मार करने आ रहा है ,
मेरा दिल बैठा जा रहा है।
रंगा सियार
अराजकता के दौर में
रंगारंग कार्यक्रम
प्रस्तुत करना चाहता है।
पर कोई विरला ही
उसकी पकड़ में आता है।
वह हर किसी से मिलना चाहता है,
वह अपने रंगे जाने का दोष
हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे के सिर
मढ़ना चाहता है।
११/०५/२०२५.
83 · Nov 2024
Appreciation
Joginder Singh Nov 2024
Time  always  appreciates
active persons to bring prosperity in their lives.
And
it also criticises
the persons
who have kept themselves in a passive mode.
Time  regularly keeps an eye to watch their harmful activities.
Time always want to extinguish such lazy and crazy persons from Earth
.

Because they have lost respect due to their inactiveness in life .
Joginder Singh Dec 2024
अफवाह
जंगल की आग
सरीखी होती है ,
यह बड़ी तेज़ी से फैलती है
और कर देती है
सर्वस्व
स्वाहा,
तबाह और बर्बाद ।
यह कराती है
दंगा फ़साद।

आज
अफवाह का बाज़ार
गर्म है ,
गली गली, शहर शहर ,
गांव गांव
और देश प्रदेश तक
जंगल की आग बनकर
सब कुछ झुलसा रही है ।
अफवाह एक आंधी बनकर
चेतना पर छाती जा रही है ,
यह सब को झुलसा रही है।


इसमें फंसकर रह गया है
विकास और प्रगति का चक्र।
इसके कारण चल रहा है एक दुष्चक्र ,
देश दुनिया में अराजकता फैलाने का।


लोग बंद हुए पड़े हैं
घरों में ,
उनके मनों में सन्नाटा छाया है।
उन्होंने खुद पर
एक अघोषित कर्फ्यू लगाया हुआ है।
सभी का सुख-चैन कहीं खो गया है ।
यहां
हर कोई सहमा हुआ सा  है ।
हर किसी का भीतर बाहर ,तमतमाया हुआ सा है ।
अब हवाएं भी करने लगी हैं सवाल ...
यहां हुआ क्यों बवाल ? यहां हुआ क्यों बवाल ?
छोटों से लेकर बड़ों तक का
हुआ बुरा हाल ! !  हुआ बुरा हाल ! !
आज हर कोई घबराया हुआ क्यों है ?
क्या सबकी चेतना गई है सो ?
हर कोई यहां खोया हुआ  है क्यों ?

यहां चारों ओर
अफ़वाहों का हुआ बाज़ार गर्म है ।
इनकी वज़ह से
नफ़रत का धुआं
आदमी के मनों में भरता जा रहा है ।
यह हर किसी में घुटन भरता जा रहा है ।
इसके घेरे में हर कोई बड़ी तेज़ी से आ रहा है।
इस दमघोटू माहौल में हर कोई घबरा रहा है ।

पता नहीं क्यों ?
कौन ?
कहां कहां से?
कोई
मतवातर
अफ़वाहों के बूते
अविश्वास , आशंका, असहजता के
काले बादल फैलाता जा रहा है ।
सच यह है कि
आत्मीयता और आत्मविश्वास
मिट्टी में मिलते जा रहे हैं ।

आज अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है।
कहां लुप्त हुए अब
मानव की सहृदयता और मर्म हैं ?
न बचे कहीं भी अब ,शर्म ,हया और धर्म हैं ।
०२/१२/२०२४.
काल सोया हुआ
होता है
कभी कभी महसूस,
परंतु
वह चुपके चुपके
बहुत सूक्ष्म गतिविधियों को
लेता है अपने में
समेट।
इतिहास
काल की चेतना को
रेखांकित करने की चेष्टा भर है,
इसमें आक्रमणकारियों ,
शासकों ,
वंचितों शोषितों ,
शरणार्थियों इत्यादि की
कहानियां छिपी रहती हैं ,
जो काल खंड की
गाथाएं कहती हैं।

सभ्यताओं और संस्कृतियों पर
समय की धूल पड़ती रही है ,
जिससे आम जन मानस
अपनी नैसर्गिक चेतना को विस्मृत कर बैठा है ,
आज के अराजकतावादी तत्व
आदमी की इस अज्ञानता का लाभ उठाते हैं ,
उसे भरमाते और भटकाते हैं ,
उसे निद्रा सुख में मतवातर बनाए रखते हैं
ताकि वे जन साधारण को उदासीन बनाए रख सकें।

आज देश दुनिया में
जागरूकता बढ़ रही है ,
समझिए इसे कुछ इस तरह !
काल अब करवट ले रहा है !
आम आदमी सच के रूबरू हो रहा है !
वह जागना चाहता है !
अपनी विस्मृत विरासत से
राबता कायम करना चाहता है !
आदमी का चेतना ही
काल का करवट लेना है
ताकि आदमी जीवन की सच्चाई से जुड़ सके ,
निर्लेप, तटस्थ, शांत रहकर काल चेतना को समझ सके ,
समय की धूल को झाड़ सके ,
अतीत में घटित षडयंत्रों के पीछे
निहित कहानी को जान सके ,
अपनी चेतना के मूल को पहचान सके।

काल जब जब करवट लेता है ,
आदमी का अंतर्मानस जागरूक होता है ,
समय की धूल यकायक झड़ जाती है ,
आदमी की सूरत और सीरत निखरती जाती है।
१६/०२/२०२५.
81 · Nov 2024
आतंकी
Joginder Singh Nov 2024
वो पति परमेश्वर
क्रोधाग्नि से चालित होकर,
अपना विवेक खोकर
अपनी अर्धांगिनी को  
छोटी छोटी बातों पर
प्रताड़ित करता है।

कभी कभी वह
शांति ढूंढने के लिए
जंगल,पहाड़,शहर, गांव,
जहां मन किया,उधर के लिए
घर से निकल पड़ता है
और भटक कर घर वापिस आ जाता है।

कल अचानक वह
क्रोध में अंधा हुआ
अनियंत्रित होकर
अपनी गर्भवती पत्नी पर
हमला कर बैठा,
उससे मारपीट कर,
अपशब्दों से अपमानित
करने की भूल कर बैठा।

वह अब पछता रहा है।
रूठी हुई धर्म पत्नी को
मना रहा है,साथ ही
माफ़ी भी माँग रहा है।
क्या वह आतंकी नहीं ?
वह घरेलू आतंक को समझे सही।
इस आतंक को समय रहते रोके भी।
०१/१२/२००८.
81 · Nov 2024
Conversion
Joginder Singh Nov 2024
Today my mind reminds me .
A fact associated with my past.And it haunts me even today,and may be in future also .

Someone advised me for conversion due to my slowness in life.
But I remain as I was.
I remain same as I haven't learnt crookedness in life.


Conversion is more dangerous than reservation.
Converted mind's are facing still difficulties and inequality after conversion.
Joginder Singh Nov 2024
"चट चट चटखारे ले,
न! न!!     नज़ारे ले।
जिन्दगी चाट सरीखी चटपटी,
मत कर हड़बड़ी गड़बड़ी।
बस जीना इसे,प्यारे ,
सीख ले।"
यह सब योगी मन ने
भोगी मन से कहा।
इससे पहले कि मन में
कोहराम मचे,
योगी मन
समाधि और ध्यान अवस्था
में चला गया ।
भोगी मन हक्का बक्का ,
भौंचक्का रह गया।
जाने अनजाने
जिंदगी में
एक कड़वा मज़ाक सह गया।
  ०२/०१/२००९.
Joginder Singh Nov 2024
मुख मुरझा गया अचानक
जब सुख की जगह पर पहुंच दुःख
सोचता रहा बड़ी देर तक
कि कहां हुई मुझ से भूल ?
अब कदम कदम पर चुप रहे हैं शूल।


उसी समय
रखकर मुखौटा अपने मुख से अति दूर
मैं कर रहा था अपने विगत पर विचार,
ऐसा करने से
मुझे मिला
अप्रत्याशित ही
सुख चैन और सुकून।
सच !उस समय
मैंने पाया स्वयं को तनाव मुक्त ।


दोस्त,
मुद्दत हुए
मैं अपनी पहचान खो चुका था।
अपनी दिशा भूल गया था।
हुआ मैं किंकर्तव्यविमूढ़,
असमंजस का हुआ शिकार ,
था मैं भीतर तक बीमार,
खो चुका था अपने जीवन का आधार।
ऐसे में
मेरे साथ एक अजब घटना घटी ।
अचानक
मैंने एक फिल्म देखी, आया मन में एक ख्याल।
मन के भीतर दुःख ,दर्द ,चिंता और तनाव लिए
क्यों भटक रहे हो?
क्यों तड़प रहे हो?
तुम्हें अपने टूटे बिखरे जीवन को जोड़ना है ना !
तुम विदूषक बनो ।
अपने दुःख दर्द भूलकर ,
औरों को प्रसन्न करो।
ऐसा करने से
शायद तुम
अपनी को
चिंता फिक्रों के मकड़ जाल से मुक्त कर पाओ।
जाओ, अपने लिए ,
कहीं से एक मुखौटा लेकर आओ।
यह मुखौटा ही है
जो इंसान को सुखी करता है,
वरना सच कहने वाले इंसान से
सारा जमाना डरता है।
इसलिए मैं तुमसे कहता हूं ,
अपनी जिंदगी अपने ढंग से जियो।
खुद को
तनाव रहित करो ,
तनाव की नाव पर ना बहो।
तो फिर
सर्कस के जोकर की तरह अपने को करो।
भीतर की तकलीफ भूल कर, हंसो और खिलखिलाओ।
दूसरों के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव जगाओ।


उसे दिन के बाद
मैं खुद को बदल चुका हूं।

सदैव
एक मुखौटा पहने रखता हूं,
ताकि
निज को सुरक्षित रख सकूं।

दोस्त,
अभी-अभी
मैं अपना प्यारा मुखौटा
रख कर गया हूं भूल।

यदि वह तुमको मिले
तो उसे मुझ को दो सौंप,
वरना मुखौटा खोने का ऋण
एक सांप में बदल
मुझे लेगा डस,
जीवन यात्रा थम जाएगी
और वेब सी मेरे भीतर
करने के बाद भी भरती जाएगी,
जो मुझे एक प्रेत सरीखा बनाएगी।

मुझे अच्छी तरह से पता है
कि यदि मैं मुखौटा ओढ़ता हूं,
तो तुम भी कम नहीं हो,
हमेशा एक नक़ाब पहने  रहते-रहते
बन चुके हो एक शातिर ।
हरदम इस फ़िराक़ में रहते हो,
कब कोई नजरों से गिरे,
और मैं उसका उपहास उड़ाऊं।
मेरे नकाबपोश दोस्त,
अब और ना मुझे भरमाओ।
जल्दी से मेरा मुखौटा ढूंढ कर लाओ।
मुझे अब और ज़्यादा न सताओ।
तुम मुझे भली भांति पहचानते हो!
मेरे उत्स तक के मूल को जानते हो।

मेरा सच है कि
अब मुखौटे में निहित है अस्तित्व का मूल।
दोस्त , नक़ाब तुम्हारी तक पर
पहुंच चुकी है मेरे मुखौटे की धूल।
तुमने ही मुझसे मेरा मुखौटा चुराया है।
अभी-अभी मुझे यह समझ आया है।
तुम इस समय नकाब छोड़ , मेरा मुखौटा ओढ़े हो।
मेरे मुखौटे की बू, अब तुम्हारे भीतर रच चुकी है।
मेरी तरह ,अब तुम्हारी
नक़ाब पहनने की
जिंदगी का खुल गया है भेद।


मुझे विदित हो चुका है कि
कृत्रिमता की जिंदगी जी कर
व्यक्ति जीवन में
छेदों वाली नौका की सवारी करता है
और पता नहीं,
कब उसकी नौका
जीवन के भंवर में जाए डूब।
कुछ ऐसा तुम्हारे साथ घटित होने वाला है।
यह सुनना था कि
मेरे नकाबपोश मित्र ने
झट से
मेरा मुखौटा दिया फैंक।

उस उसे मुखौटे को अब मैं पहनता नहीं हूं ।
उसे पहन कर मुझे घिन आती है।
इसीलिए मैंने मुखौटे का
अर्से से नहीं किया है इस्तेमाल।

आज बड़े दिनों के बाद
मुझे मुखौटे का ख्याल आया है।
सोचता हूं कि
मुखौटा मुझ से
अभी तक
अलहदा नहीं हो पाया है।

आज भी
कभी-कभी
मुखौटा मेरे साथ
अजब से खेल खेलता है।

शायद उसे भी डर है कि
कहीं मैं उसे जीवन में अनुपयोगी न समझने लगूं।

कभी-कभी वह
तुम्हारी नक़ाब के
इशारे पर
नाचता  नाचता
चला जाना चाहता है
मुझ से बहुत दूर
ताकि हो सके
मेरा स्व सम्मोहन
शीशे सा चकनाचूर ।

हकीकत है...
अब मैं उसके बगैर
हर पल रहता हूं बेचैन
कमबख़्त,
दिन रात जागते रहते हैं
अब उसे दिन मेरे नैन।

कभी-कभी जब भी मेरा मुखौटा
मुझे छोड़ कहीं दूर भाग जाता है
तू रह रहकर मुझे तुम्हारा ख्याल आता है।

मैं सनकी सा होकर
बार-बार दोहराने लगता हूं।
दोस्त , मेरा मुखौटा मुझे लौटा दो।
मेरे सच को मुझ से मिला दो ।
अन्यथा मुझे शहर से कर दो निर्वासित ।
दे दो मुझे वनवास,
ताकि कर सकूं मैं
आत्म चिंतन।

मैं दोनों, मुखौटे और सच से
मुखातिब होना चाहता हूं ।
कहीं ऐसा न हो जाए कभी ।
दोनों के अभाव में,
कि कर न सकूं
मैं अपना अस्तित्व साबित।
बस कराहता ही नज़र आऊं !
फिर कभी अपनी परवाज़ न भर पाऊं !!

१७/०३/२००६. मूल प्रारूप।
संशोधन ३०/११/२००८.
और २४/११/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
तन समर्पण,
मन समर्पण,
धन समर्पण,
सर्वस्व समर्पण,
वह भी  
अहंकार को
पालित पोषित करने के निमित्त
फिर कैसे रहेगा शांत चित्त ?
आप करेंगे क्या कभी
अंधाधुंध अंध श्रद्धा को
समर्पित होने का समर्थन ?
समर्पण
होना ‌चाहिए , वह भी
जीवन में गुणवत्ता बढ़ाने के निमित्त।
जिससे सधे
सभी के पुरुषार्थी बनने से
जुड़े सर्वस्व
समर्पण के हित।

अहम् को समर्पण
अहंकार बढ़ाता है ,
क्यों नहीं मानस अपने को
पूर्ण रूपेण जीवन की गरिमा के लिए
समर्पित कर पाता है ?
वह अपने को बिखराव की राह पर
क्यों ले जाना चाहता है ?
वह अपने स्व पर नियंत्रण
क्यों नहीं रख पाता है ?
आजकल  ऐसे यक्ष प्रश्नों से
आज का आदमी
क्यों  जूझना नहीं चाहता है ?
वह स्वार्थ से ऊपर उठकर
क्यों नहीं आत्मविकास के
पथ को अपनाता है ?
१४/१२/२०२४.
81 · Apr 6
Frustration
Frustration bursts first peace of mind
and
than it imposes restrictions on human beings,
to feel secure in life.

Frustration is like an invitation for destruction ,
so engage yourself in constructive activities to avoid huge damage in life  for survive.

06/04/2025.
यह सहानुभूति ही है
जिसने मानवीय संवेदना को
जीवंतता भरपूर रखा है,
रिश्तों को पाक साफ़ रखा है।
वरना आदमी
कभी कभी
वासना का कीड़ा बनकर
लोक लाज त्याग देता है ,
बेवफ़ाई के झूले में
झूलने और झूमने लगता है।

प्रेम विवाह के बावजूद
आजकल बहुधा
पति पत्नी के बीच
तीसरा आदमी निजता को
खंडित कर देता है ,
फलस्वरूप
तलाक़ हलाक़
करने का खेल
चुपके चुपके से
खेलता है,
कांच का नाज़ुक दिल
दरक जाता है।
दुनियादारी से भरोसा उठ जाता है।
इसका दर्द आँखें छलकने से
बाहर आता है।
इस समय आदमी
फीकी मुस्कराहट के साथ
अपने भीतर की कड़वाहट को
एक कराहट के साथ झेल लेता है।
अभी अभी
अख़बार में झकझोर देने वाली खबर पढ़ी है।
तलाकशुदा पत्नी को
जब पहले पति की लाइलाज बीमारी की
बाबत विदित हुआ
तो उसने गुज़ारा भत्ता लेने से
इंकार कर दिया।
यह सहानुभूति ही है
जिसने रिश्ते को
अनूठे रंग ढंग से याद किया ।
अपने रिश्ते की पाकीज़गी की खातिर त्याग किया।
सहानुभूति और संवेदना से
भरा यह रिश्ता
अंधेरे में एक जुगनू सा
टिमटिमाता रहना चाहिए।
वासना की खातिर
जीवनसाथी को छोड़ा नहीं जाना चाहिए।
परस्पर सहानुभूति रखने वालों को
यह सच समझ आना चाहिए।
छोटी मोटी भटकनों को
यदि हो सके तो नजरअंदाज करना चाहिए।
मन ही मन अपनी ग़लती को सुधारने का प्रयास किया जाना चाहिए।
वरना जीवन और घर ताश के पत्तों से निर्मित आशियाने की तरह
थोड़ी सी हवा चलने ,ठेस लगने से बिखर जाता है।
आदमी और उसकी हमसफ़र कभी संभल नहीं पाते हैं।
जीवन यात्रा से सुख और सुकून लापता हो जाता है।
अच्छा है कि हम अपने संबंधों और रिश्तों में सहानुभूति को स्थान दें ,
ताकि समय रहते टूटने से बच सकें
और जीवन में सच की खोज कर सकें।
०६/०४/२०२५.
Joginder Singh Dec 2024
I am a 🤡 clown
blessed with a handsome son.
But
I feel ashamed
when he expressed his unhappiness while pointing to my goatee beard.

He feels insulted
among his friends
that his papa looks like a thinner personality
made of single bone very less flesh.

And
when I tried myself to imagine as a fatty father
looks like a 🏈 football
running across a playground
Just wandering here and there
with a speed , wasting no time.

And when I assessed myself as a father in my son's eyes ,
I can understand,
I found myself standing nowhere,
neither near nor far.

Is this fair or unfair judgement
from the 👀 of a father who stands nowhere in life except smiles 😊😁😊!
80 · May 2
लालच
लाभ की उत्कंठा
अपनी सीमा को लांघ कर
लोभ को उत्पन्न कर
व्यक्ति के व्यक्तित्व पर
चुपचाप करती रहती है
आघात प्रतिघात।
जैसे जैसे व्यक्ति लाभान्वित होता है ,
वैसे वैसे लालच भी बढ़ता है
और यह विवेक को भी हर लेता है।
समझिए कि व्यक्ति अक्ल से अंधा हो जाता है।
उसके भीतर अज्ञान का अंधेरा पसरता जाता है।
वह एक दिन सभ्यता का लुटेरा बन जाता है।
वह हर रंग ढंग से लाभ कमाना चाहता है।
बेशक उसे धनार्जन के लिए कुछ भी करना पड़े।
नख से शिखर तक कुत्सित , दुराचारी , अंहकारी  बनना पड़े ।
लाभ और लोभ की खातिर किसी भी हद तक शातिर बनना पड़े।
यहां तक कि अपने आप से भी लड़ना और झगड़ना पड़े।
०२/०५/२०२५.
कफ़न
शब्दों का सतत्
ओढ़ा कर
विचार और व्यवहार पर।
जीवन की गुत्थी
भले ही
समझ
आए न आए ,
खुद को कतई
हताश न कर ।

ज़िंदगी
बढ़ती चली गई है
आगे और आगे ,
फिर हम ही क्यों
जीवन की कटु सच्चाई से भागें ?
क्यों न हम सब
जीवन धारा के संग भ्रमण करें !
क़दम दर क़दम आगे बढ़
निज जीवन शैली में सुधार करें !!
अपने भीतर निखार लाकर
निरंतर आगे बढ़ने के प्रयास करें !!!
आओ , आज सब इस बाबत विचार विमर्श करें।
इसके साथ साथ सब स्वयं के भीतर नया विश्वास भरें।
०६/१२/१९९९.
80 · Nov 2024
Antique
Joginder Singh Nov 2024
My friend is very liberal.
He likes his antique collection and his selection of classic books.
But my philosophy of life is totally anti to his tastes.
He warns me not to interfere in his life, otherwise he will change me into an antique.
Guide me regarding this unhumantic behaviour.
At present I am planning to steal all his antique collection and to present this to someone who anticipates his ideas time to time.

Am I right or wrong?
At present,I am angry with his attitude toward me.
All this compels me to do some mischievous action.
80 · Nov 2024
Magic From Heart
Joginder Singh Nov 2024
God  is a big magician for all,
big or small.
His magic is the base of our existence.
When such a mesmerizing potential is obtained by a common man.
He also become a magician himself.

Magic from the heart has massive impact on our lives.
No doubt magic sharps our imagination.
It may be a tricky,witty illusion.
But it heals our spirit through reducing out tensions of daily routine life.
Your ability to listen is truly magical.
It can bring many miracles in a  comman man 's life.


Life itself is a wonderful span
where magic and magician runs parallel to time.
The magic of Time is working in us.
So we all are magicians residing on mother Earth.
Super Magician Time always keep himself  busy to make our existence worthy and fruitful.
79 · Nov 2024
Identity Crisis
Joginder Singh Nov 2024
The children of celebrities
always passes through a phase of
  Identity crisis in their lives where within
a span of time
they struggle, Jumps over a lot of hurdles
because of surroundings of being
the children of celebrities.

We must respect their privacy ,
they need a lot of protection
because sometimes they are a natural victim of their high profile status.
हम विस्मृति के अवशेष से बंधे
कहां याद रख पाते हैं ?
उन बंधु बांधवों को
जो कभी हम से ,
इस हद तक थे जुड़े
कि हर संकट की घड़ी में
डट कर हो जाते थे खड़े ।
आज वे स्मृति पटल पर
जीवन की अविस्मरणीय उपस्थिति दर्शा कर
हमें यदा-कदा अपने भीतर व्याप्त
जीवन धारा की रह रह कर
अपने अस्तित्व का अहसास करवाते हैं।
उनकी बातों को याद करते हुए
अक्सर हम सोचते हैं कि
उनमें कुछ तो ख़ास रहा होगा
जो वे आज भी
हमारे भीतर जीवन का ओज बने हुए बसते हैं,
अपनी दैहिक अनुपस्थिति के बावजूद
वे हर पल हमारी प्रेरणा और प्रेरक ऊर्जा बनते हैं,
जिनकी अद्भुत छत्र छाया में
असंख्य लोग आगे ही आगे बढ़ते हैं।
ऐसी आकर्षण से भरपूर विभूतियों को
हम मन ही मन नमन करते हैं।
उनके प्रेरणा पुंज और ख़ास आभा मंडल के सम्मुख
हम सदैव उन जैसी कर्मठता को
जीवन में अपनाने
और उनकी सोच को आगे बढ़ाने की नीयत से
मंगल कामनाओं से सज्जित पुष्पांजलि
स्मृति शेष होने पर अर्पित करते हैं।
वे खास किस्म की मानसिक दृढ़ता से परिपूर्ण व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी सोच से
आदमी की दशा और दिशा बदल दी,
तभी हम उन्हें रह रह कर याद करते हैं।
हम उन जैसा होने व बनने का प्रयास किया करते हैं ।
०१/०१/२०२५.
79 · Dec 2024
Pendulum
Joginder Singh Dec 2024
He is just wandering

here and there

in a timeless silent world

and looks like a pendulum moving

between the cradle of likes and

dislikes today


to play.
79 · Dec 2024
Improvement
Joginder Singh Dec 2024
Arrival of new year
demands always clarity of the mind .
We promise it with an oath of sincerity
and often tries to executive our resolutions in the life .
Till the last day of the previous year,
we collect a lot of dust in our minds
regarding the cleanliness in daily routine of the life.
We always required a lot of improvement to stablise the values in every sector of life.
79 · Feb 7
Passion for Love
Passion for Love is quite natural.
To control over these emotions
makes our life unnatural.
To lead a life without sentiments
brings miseries in life.
It is painful and harsh reality of human existence.
Passion for Love is the best gift 💕 for all.
It makes human beings most powerful.
07/01/2025.
Joginder Singh Dec 2024
असहिष्णु को
सहिष्णु बनाना
हो सकता है
चुनौतीपूर्ण दुस्साहस !
आप इस बाबत
उड़ा सकते हैं उपहास !
सच यह है , दोस्त !
यह नामुमकिन नहीं ,
बशर्ते आप होना चाहें सही।
आप परिवर्तन को स्वीकारें ,
न कि खुद को
बाहुबली समझें और अंहकारे फिरें ।
मारामारी का दर्प पाल कर ,
मारे मारे फिरें ।
निज के विरोधाभासों से
सदैव रहें घिरे ।
अपने आप से होकर मंत्र मुग्ध !
खोकर अपनी सुध-बुध !
कहीं बन  न जाएं संदिग्ध!

तब आपकी पहचान संदेह के
घेरे में आ जाएगी ।
ज़िंदगी नारकीय हो जाएगी।
परिवर्तन अपरिहार्य है ,
हमें यही स्वीकार्य है।

०९/०४/२०१७.
To know more about ourselves and surroundings
is our collective responsibility
because there is always a scope to explore our hidden capabilities in life
properly .
So that we can feel the presence of positivity and prosperity in our life style.
For this noble purpose in life ,
utalise your knowledge positively and properly.
So that life can never seems to us ugly and unhealthy.
स्कूल, कॉलेज , यूनिवर्सिटी में
दाखिला लेने के लिए
कभी कभी अभ्यर्थी को देना पड़ता है
साक्षात्कार।
यही हाल  होता है
नौकरी ढूंढते ,
बिजनेस डील करते समय ,
आजकल
साक्षात्कार
बेहद ज़रूरी हो गया है।
आज अभी अभी
हम गुड़िया के अम्मी अब्बा
उसकी वैवाहिक जीवन का
आगाज़ करवाने के गर्ज से
देकर आए हैं साक्षात्कार
लड़के के अम्मी अब्बा के सम्मुख।
देखें क्या नतीजा निकलता है !
अभी अभी हमारा हुआ है इंटरव्यू !
फिर  लड़के वाले आयेंगे !
तत्पश्चात लड़का और लड़की
परस्पर साक्षात्कार की प्रक्रिया से गुज़र कर
एक निष्कर्ष तक पहुंचेंगे।
आज साक्षात्कार जीवन में
हरेक को क़दम क़दम पर देना पड़ता है ,
तभी जीवन चक्र आगे बढ़ पाता है।
देखिए जिन्दगी में समय क्या क्या गुल खिलाता है !
वह किस किस की झोली में क्या कुछ भरेगा  ,
यह कोई भी नहीं जानता ,
साक्षात्कार कर्ता तक नहीं !
इंटरव्यू में कभी कभी कुछ भी सही नहीं होता।
आदमी सोचता है कि काश ! थोड़ी तैयारी और कर लेता।
तब शायद चित्त भी मेरा और पट भी मेरा होता।
२७/०४/२०२५.
Joginder Singh Nov 2024
The creator especially a poet or poetess remains himself or herself always  an ambassador of language.

So ,he or she keep and communicate ideas safely and effectively .
To express his or her believes effectively with a sense of  deep sensitivity.

To write a poem while  addressing to contemporary world is never so  easy.
It also reflects the hidden thoughts of the mind accidentally.

It can bring a warning from  highly
narrow minded traditional society... because of causing a threat to their mind setup and social structure.
All such act is a bit risky.
Joginder Singh Nov 2024
बहुत बार
नौकर होने का आतंक
जाने अनजाने
चेतन पर छाया है ,
जिसने अंदर बाहर
रह रहकर तड़पाया है ।

बहुत बार
अब और अधिक समय
नौकरी न करने के ख़्याल ने ,
नौकर जोकर न होने की ज़िद्द ने
दिल के भीतर
अपना सिर उठाया है ,
इस चाहत ने
एक अवांछित अतिथि सरीखा होकर
भीतर मेरे बवाल मचाया है ,
मुझे भीतर मतवातर चलने वाले
कोहराम के रूबरू कराया है।


कभी-कभी कोई
अंतर्घट का वासी
उदासी तोड़ने के निमित्त
पूछता है धीरे से ,
इतना धीरे से ,
कि न  लगे भनक ,
तुम्हारे भीतर
क्या गोलमाल चल रहा है?
क्यों चल रहा है?
कब से चल रहा है?

वह मेरे अंतर्घट का वासी
कभी-कभी
ज़हर सने तीर
मेरे सीने को निशाना रख
छोड़ता है।
और कभी-कभी वह
प्रश्नों का सिलसिला ज़ारी रखते हुए ,
अंतर्मन के भीतर
ढेर सारे प्रश्न उत्पन्न कर
मेरी थाह  लेने की ग़र्ज से
मुझे टटोलना शुरू कर देता है ,
मेरे भीतर वितृष्णा पैदा कर देता है ।


मेरे शुभचिंतक मुझे  अक्सर ‌कहते हैं ।
चुपचाप नौकरी करते रहो।
बाहर बेरोजगारों की लाइन देखते हो।
एक आदर्श नौकरी के लिए लोग मारे मारे घूमते हैं।
तुम किस्मत वाले हो कि नौकरी तुम्हें मिली है ।

उनका मानना है कि
दुनिया का सबसे आसान काम है,
नौकरी करना, नौकर बनना।
किसी के निर्देश अनुसार चलना।
फिर तुम ही क्यों चाहते हो?
... हवा के ख़िलाफ़ चलना ।

दिन दिहाड़े , मंडी के इस दौर में
नौकरी छोड़ने की  सोचना ,
बिल्कुल है ,
एक महापाप करना।

जरूर तेरे अंदर कुछ खोट है ,
पड़ी नहीं अभी तक तुझ पर
समय की चोट है, जरूर ,जरूर, तुम्हारे अंदर खोट है ।
अच्छी खासी नौकरी मिली हुई है न!
बच्चू नौकरी छोड़ेगा तो मारा मारा फिरेगा ।
किसकी मां को मौसी कहेगा ।
तुम अपने आप को समझते क्या हो?

यह तो गनीमत है कि  नौकरी
एक बेवकूफ प्रेमिका सी
तुमसे चिपकी हुई है।
बच्चू! यह है तो
तुम्हारे घर की चूल्हा चक्की
चल रही है ,
वरना अपने आसपास देख,
दुनिया भूख ,बेरोजगारी ,गरीबी से मर रही है ।

याद रख,
जिस दिन नौकरी ने
तुम्हें झटका दे दिया,
समझो जिंदगी का आधार
तुमने घुप अंधेरे में फेंक दिया।
तुम सारी उम्र पछताते नज़र आओगे।
एक बार यह छूट गई तो उम्र भर पछताओगे।
पता नहीं कब, तुम्हारे दिमाग तक
कभी रोशनी की किरण पहुंच पाएगी।

यदि तुमने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी,
तो तुम्हारी कीमत आधी भी न रह जाएगी ।
यह जो तुम्हारी आदर्शवादी सोच है न ,
तुम्हें कहीं का भी नहीं छोड़ेगी।
न रहोगे घर के , न घाट के।
कैसे रहोगे ठाठ से ?
फिर गुजारा चलाओगे बंदर बांट से ।


इतनी सारी डांट डपट
मुझे सहन करनी पड़ी थी।
सच! यह मेरे लिए दुःख की घड़ी थी।
मेरी यह चाहत धूल में मिली पड़ी थी।

मेरे अंतर्मन ने भी मुझे डांट लगाई।
उसने कहा,"अरे नासमझ! अपनी बढ़ती उम्र का
कुछ तो ख्याल कर,
बेवजह तू बवाल न कर।
नौकरी छोड़ने की सोच कर,
तूं भर लेगा अपने अंदर डर।
मारा  मारा फिरेगा डगर डगर।
अपनी नहीं तो
घरवाली और बच्चों की फ़िक्र कर ।

तुमसे तो
चिलचिलाती तेज धूप में
माल असबाब से भरी रिक्शा,
और उसे पर लदी सवारियां तक
ढंग से खींचीं न जाएगी।
यह पेट में जो हवा भर रखी है,
सारी पंचर होकर
बाहर निकल जाएगी।
फिर तुम्हें शूं शूं शूं  शू शूंशूंश...!!!
जैसी आवाज ही सुनाई देगी ,
तुम्हारी सारी फूंक निकल जाएगी।
हूं !बड़ा आया है नौकरी छोड़ने वाला !
बात करता है नौकरी छोड़ने की !
गुलामी से निजात पाने की!!
हर समय यह याद रखना ,....
चालीस साल
पार करने के बाद
ढलती शाम के दौर में
शरीर कमज़ोर हो जाता है
और कभी-कभी तो
यह ज़वाब देने लगता है।
इस उम्र में यदि काम धंधा छूट जाए,
तो बड़ी मुश्किल होती है।
एक अदद नौकरी पाने के लिए
पसीने छूट जाते हैं।


यह सच है कि
बाज़ दफा
अब भी कभी-कभी
एक दौरा सा उठता है
और ज्यादा देर तक
नौकरी न करने का ख़्याल
पागलपन, सिरफ़िरेपन की हद तक
सिर उठाता है ।
पर अलबेला अंतर्घट का वासी वह
कर देता है करना शुरू,
रह रहकर, कुछ उलझे सुलझे सवाल ।
वह इन सवालों को
तब तक लगातार दोहराता है,
जब तक मैं मान न लूं उससे हार ।
यही सवाल
मां-बाप जिंदा थे,
तो बड़े प्यार और लिहाज़ से
मुझसे पूछा करते थे।
वे नहीं रहे तो अब
मेरे भीतर रहने वाला,
अंतर्घट का वासी
आजकल पूछने लगा है।
सच पूछो तो, मुझे यह कहने में हिचक नहीं कि
उसके सामने
मेरा जोश और होश
ठंड पड़ जाता है,
ललाट पर पसीना आ जाता है।
अतः अपनी हार मानकर
मैं चुप कर जाता हूं।
अपना सा मुंह लेकर रह जाता हूं ।


मुझे अपना अंत आ गया लगता है ,
अंतस तक
दिशाहीन और भयभीत करता सा लगता है।

सच है...
कई बार
आप बाह्य तौर पर
नज़र आते हैं
निडर व आज़ाद
पर
आप अदृश्य रस्सियों से
बंधे होते हैं ,
आप कुछ नया नहीं
कर पाते हैं,
बस !अंदर बाहर तिलमिलाते हैं ,
आपके डर अट्टहास करते जाते हैं।
78 · Nov 2024
Comfort Zone
Joginder Singh Nov 2024
If you have a deep desire to attain name and fame in your present life.
First of all, leave your comfort zone.
Come and face the hard realities of this merciless world to keep in yourself in the race of worldly activities.
To live life in a comfort zone makes a person lazy and crazy.
For a successful career,you should break the barriers, which you constructed  during leading a comfortable life.
Come and face the comedy of life to make career bright and shine like Sun.
He is regularly burning his fuel made of hydrogen,helium etc.
So you must channelize your hidden energy and enthusiasm to lead a responsible and successful career.
Break all the barriers of comfortable zone immediately.
Joginder Singh Nov 2024
अचानक एक दिन
जब मैं था अधिक परेशान
समय ने कहा था मुझे कुछ
तू बना ना रहे
और अधिक समय तक तुच्छ
इसीलिए तुम्हें बताना चाहता कुछ
जीवन से निस्सृत हुए सच ।
उस समय
समय ने कहा था मुझे,
" यूं ही ना खड़ा रह देर तक ,एक जगह ।
तुम चलोगे मेरे साथ तो यकीनन बनोगे अकलमंद ।
यूं ही एक जगह रुके रहे तो बनोगे तुम अकल बंद ।
फिर तुम कैसे आगे बढ़ोगे?
सपनों को कैसे पूरा करोगे ?

मेरे साथ-साथ चल , अपने को भीतर तक बदल।
मेरे साथ चलते हुए ,मतवातर आगे बढ़ते हुए,
बेशक तुम जाओ थक , चलते जाओगे लगातार,
तो कैसे नहीं , परिवर्तन की धारा से जा जुड़ोगे ?अफसोसजनक अहसासों से फिर न कभी डरोगे ।"

समय ने अचानक संवाद रचाकर
खोल दिया था अपना रहस्य ,मेरे सम्मुख।
आदमी के ख़्यालात को ,
अपने भीतर का हिस्सा बनाते हुए
अचानक मेरी आंखें दीं थीं खोल।
अनायास अस्तित्व को बना दिया अनमोल।
और दिया था
अपने भीतर व्याप्त समन्दर में से मोती निकाल तोल ।
यह सब हुआ था कि
अकस्मात
मुझे सच और झूठ की
अहमियत का हुआ अहसास,
खुद को मैंने हल्का महसूस किया।
अब मैं खुश था कि
चलो ,समय से बतियाने का मौका तो मिला।

०५/०२/२०१२.
Joginder Singh Nov 2024
वत्स का उत्स
उत्सव में छिपा है!
समय और उसने
कहीं कुछ छिपाया नहीं!!
आगे बढ़ने की ललक
बराबर भीतर बनी रही,
इसे कभी दबाया नहीं।
बस आप इसे समझिए सही।
जीवन में गड़बड़ी न होगी कभी।
००५/२०२०.
78 · Dec 2024
ਇਸ਼ਕ
Joginder Singh Dec 2024
ਇਸ਼ਕ ਦੀ ਕੂਕ
ਜਦੋਂ ਦਿਲੋਂ ਨਿਕਲਦੀ ਹੈ
ਤਾਂ ਲੰਬੀਆਂ ਪੈੜਾਂ ਵੀ
ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਘੱਟ ।
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ
ਪਿਆਰ ਭਰੀ ਖੁਸ਼ਬੂ
ਸੰਮੋਹਣ ਬਣ ਕੇ
ਫੈਲਦੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ।
ਮਨ ਦੇ ਅੰਦਰ ਛੁਪੇ
ਅਹਿਸਾਸਾਂ ਵਿੱਚ
ਰਵਾਨਗੀ ਤੇ ਠੰਡਕ
ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ।
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ
ਅਸਮਾਨ ਵਿੱਚ
ਰੰਗ ਬਿਰੰਗੀਆਂ
ਹਸਰਤਾਂ ਤੇ ਤਾਂਘਾਂ
ਇੰਦਰਧਨੁਸ਼ ਬਣ ਕੇ
ਛਾ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ।
ਮਨ ਦੇ ਅੰਦਰ ਦੀਆਂ
ਤਲਖੀਆਂ ਖ਼ਤਮ
ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ।
78 · Nov 2024
जीवन धारा
Joginder Singh Nov 2024
जीवन
जिस धरा पर टिका है,
उस पर जिन्दगी के तीन पड़ाव
धूप छांव बने हुए
निरन्तर आते और जाते रहते हैं।
फ़र्क बस इतना है कि
ये पड़ाव कभी भी अपने को नहीं दोहराते हैं।

उमर के ये तीन पड़ाव
जरूरी नहीं कि
सब को नसीब हों।
कुछ पहले,
कुछ पहले और दूसरे,
और कुछ सौभाग्यशाली
तीनों पड़ावों से गुज़र पाते हैं।

सच है
यह जरूरी नहीं कि
ये सभी की जिन्दगी में आएं
और जीवन धारा से जुड़ पाएं ।

लंबी उमर तक
धरा पर बने रहना,
जीवन धारा के संग बहना।
किसी किसी के हिस्से में आता है,
वरना यहां क्षणभंगुर जीवन निरन्तर बदलता है।
78 · Mar 13
Heart's Warning
One must protect his heart
from the toughness of heartlessness.
All that happens due to insensitivity of the human mind.
One must listen the heart' s warnings
from time to time
during the journey of life .
Because of  worst living style  as well as the tensions in the  lives of  human beings.
Heart is always remain special for all of us,
as compare to the brain.
Because in normal life,
heart always dominates over the access of the brain.
There is always a danger of brain drain due to greed and
insensitivity of common man.
One must listen the voices of the heart
to avoid critical adversities in the life...to survive...
and to  revive the amazing patterns exisiting in human beings.
One must be serious to listen
the heart' s warning regarding failure
to secure existence.
13/03/2025.
Joginder Singh Dec 2024
अगर तुम्हें
इंसाफ़ चाहिए
तो लड़ने का ,
अन्याय से
बेझिझक
जा भिड़ने का
कलेजा चाहिए ।
मुझे नहीं लगता
कि यह तुम में है ।
फिर तुम
किस मुंह से
इंसाफ़ मांगती हो ?
अपने भीतर
क्यों नहीं झांकते हो ?
क्यों किसी इंसाफ़ पसंद
फ़रिश्ते की राह ताकते हो ?
तुम सच की  
राह साफ़ करो।
जिससे सभी को
इंसाफ़ मयस्सर हो।
दोस्त , इस हक़ीक़त के
रू-ब-रू  हो तो सही।
सोचो , तुम किसी
फ़रिश्ते से यक़ीनन कम नहीं।

१७/०१/२०१७.
77 · Nov 2024
Protection
Joginder Singh Nov 2024
One is rightist
and another is leftist.
Their tussle for power
makes the world
pathetic and miserable.

Common man
must keep a choice
for protection and survival of life.
So he must lead a responsible simple life to survive.
He must keep check  himself on his income and
expenditure.
Otherwise capitalistic forces
are very active to write stories of destruction,suppression for a common man who has  no interest for politics,
possibly can create hurdles on the pathway of his progress.

Protection is necessary for all
powerful as well as small.
No body has right to create walls among person to person
with a motive of restrictions.
That' s why
we need protection in our lives to survive safely, neatly  and smoothly.
Joginder Singh Nov 2024
बड़े बुजुर्ग
अक्सर कहते हैं ,
बच्चे मस्तमौला होते हैं,
उनका खेल तो शरारत है,
अगर बचपन में न कोई शरारत की
तो ज़िन्दगी ख़ाक जी!
अभी अभी
एक बंदर
एकदम मस्त खिलंदर
दादा जी के चश्मे को
सलीके से लगा कर इधर उधर देख
उधम मचाने की फिराक में था
कि देख लिया
दादा ने अचानक

वे अपनी छड़ी उठा कर चिल्लाए, बोले," भाग।"
बंदर भी
आज्ञाकारी बच्चे की तरह
भाग गया।
उसने कोई प्रतिकार नहीं किया।
इससे पहले
कई बार उसने
बूढ़े दादू को खूब खिजाया था।
यही नहीं
कई खाद्य पदार्थों को कब्जाया था।
आज
कुछ ख़ास नहीं हुआ।
उसने बस चश्मे को छुआ
और पल भर को आंखों पर लगाया बस!
और दादा की घुड़की सुन भाग गया।
चश्मा नीचे गिरा
और उसके शीशे पर
खरोंच आ गई।
शुक्र है
चश्मा ठीक ही था
दादा जी
अखबार पढ़ने बैठ गए,
बंदर किसी दूसरे मकान की छत पर
धमाचौकड़ी कर रहा था।
पास ही बंदर का बच्चा
अपनी मां की गोद से लिपटा पड़ा था,
बंदरिया उसे साथ लेकर
मकानों की दूसरी कतार की ओर निकल गई थी।
यह घटनाक्रम देख मेरी हँसी निकल गई।
दादा जी ने मुझे घूर कर देखा,
तो मैं सकपका गया।
एक बार फिर से डांट खाने से बच गया।
१३/११/२०२४.
दो देशों के
युद्ध विराम में राष्ट्रीय प्रवक्ता के
प्रेस विज्ञप्ति देने से पूर्व ,
प्रेस वार्ता में कुछ कहने से पहले
किसी तीसरे राष्ट्र के
राष्ट्रपति ने युद्ध विराम की बाबत
ट्वीट कर दिया
और सारा श्रेय
ख़ुद लेने का प्रयास किया।
इस बाबत
आप क्या सोचते हैं ?
क्या यह सही है ?
मेरे यहां कुछ कहावतें हैं...
दाल भात में मूसल चंद..!
परायी शादी में अब्दुल्ला दीवाना...!
इस तीसरे कौन के संबंध में
हम सब को
नहीं रहना चाहिए मौन
वरना हमारी हैसियत
होती जाएगी गौण।
हमें मूसल चंद और अब्दुल्ला के
हस्तक्षेप से बचना होगा।
मित्र राष्ट्र और शत्रु राष्ट्र को
द्विपक्षीय संवाद से
अपना पक्ष
एक दूसरे के सम्मुख
रखना होगा।
तीसरे की कुटिलता से
स्वयं को बचाना होगा।
वरना धोखा मिलता रहेगा।
सरमायेदार अपना घर भरता रहेगा।
देश दुनिया और समाज पिछड़ता रहेगा।
आम आदमी सिसकता रहेगा।
११/०५/२०२५.
77 · Dec 2024
Passionate Life
Joginder Singh Dec 2024
Only  passionate life
Can survive on earth ,
it has  too some extent  
worth and
a meaningful existence.
Joginder Singh Nov 2024
आप अक्सर जब
निस्वार्थ भाव से,
अपने प्रियजनों का
पूछते हैं कुशल क्षेम,
तब आप के भीतर
विद्यमान रहता है
प्रेम का सच्चा स्वरूप ।

उसे दिव्यता से जोड़ने पर
मन मन्दिर में
उभरता है
भक्ति की अनुभूति का
सम्मोहक स्वरूप।

और
यही भाव
लौकिकता से
जुड़ने पर  ले लेता है
अपना रंग रूप स्वरूप
कुछ अनोखे अंदाज में
जो होता है
प्रायः आकर्षण से भरपूर।
यहीं से सांसारिक सुख समृद्धि ,
लाड़, प्यार, मनुहार जैसी
भाव सम्पदा से सज्जित
जीवनाधार की शुरुआत होती है,
जहां जीवन हृदय में
कोमल भावनाओं के प्रस्फुटन के रूप में
पोषित, पल्लवित, पुष्पित, प्रफुल्लित होता है।

ऐसी मनोदशा में
प्रेम की शुद्धता और शुचिता का आभास होता है।
यहां 'प्रेम गली अति सांकरी' रहती है।
और जब इस शुचिता में सेंध लग जाती है,
तब यह प्रेम और प्यार का आधार
विशुद्ध वासना और हवस में बदल जाता है।
स्त्री पुरुष का अनुपम जोड़ा भटकता नज़र आता है।
इसके साथ साथ यह अन्यों को भी भटकाता है।
प्रेम, प्यार,लगाव के अंतकाल का , शीघ्रता से ,
घर, परिवार,देश, समाज और दुनिया जहान में ,
आगमन होता है,साथ ही नैतिकता का पतन हो जाता है।
३०/११/२०२४.
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