जब आप किसी के
ख़िलाफ़ कुछ कहने का
साहस जुटाने की
ज़ुर्रत करते हैं ,
आप जाने अनजाने
कितने ही
जाने पहचाने और अनजाने चेहरों को
अपना विरोधी बना लेते हैं !
जिन्हें आजकल लोग
दुश्मन समझने की भूल करते हैं !
आज दोस्त बनाने और दुश्मन कहलाने का
किस के पास है समय ?
यदि कभी समय मिल ही जाए
तो क्यों न आदमी इसे अपने
निज के विकास में लगाए ?
वह क्यों किसी से उलझने में
अपनी ऊर्जा को लगाए ?
वह निज से संवाद रचा कर
मन में शान्ति ढूंढने का
करना चाहे उपाय।
आज देखा जाए तो अश्लील कुछ भी नहीं !
क्योंकि आज एक छोटे से बच्चे के हाथ में
मोबाइल फोन दे दिया जाता है ,
ताकि बच्चा रोए न !
मां बाप की आज़ादी में
भूल कर दखल दे न !
जाने अनजाने अश्लीलता बच्चे के अवचेतन में
छाप छोड़ जाती है।
जबकि बच्चे को ढंग से
अच्छे बुरे का विवेक सम्मत फ़र्क करना नहीं आता।
आजकल
इंटरनेट का उपयोग बढ़ गया है,
इसका इस्तेमाल करते हुए
यदि भूल से भी
कुछ गलत टाइप हो जाए
तो कभी कभी अवांछित
आंखों के सामने
चित्र कथा सरीखा मनोरंजक लगकर
अश्लीलता का चस्का लगा देता है ,
जीवन के सम्मुख एक प्रश्नचिह्न लगा देता है।
आज सच को कहना भी अश्लील हो गया है !
झूठ तो खैर अश्लीलता से भी बढ़कर है।
हम अश्लीलता को तिल का ताड़ न बनाएं,
बल्कि अपने मन पर नियंत्रण करना खुद को सिखाएं।
यदि आदमी के पास मन को पढ़ने का हुनर आ जाए ,
तो यकीनन अश्लीलता भी शर्मा जाए ।
भाई भाई के बीच नफ़रत और वैमनस्य भर जाए ।
रामकथा के उपासक भी
महाभारत का हिस्सा बनते नज़र आएं।
क्यों न हम सब सनातन की शरण में जाएं।
वात्स्यायन ऋषि के आदर्शों के अनुरूप
समाज को आगे बढ़ाएं।
हमारा प्राचीन समाज कुंठा मुक्त था।
यह तो स्वार्थी आक्रमणकारियों का दुष्चक्र था,
जिसने असंख्य असमानता की
पौषक कुरीतियों को जन्म दिया,
जिसने हमारा विवेक हर लिया ,
हमें मानवता की राह से भटकने पर विवश कर दिया।
सांस्कृतिक एकता पर
जाति भेद को उभार कर
दीन हीन अपाहिज कर दिया।
अच्छे भले आदमियों और नारियों को
चिंतनहीन कर दिया ,
चिंतामय कर दिया।
सब तनाव में हैं।
आपसी मन मुटाव से
कमज़ोर और शक्तिहीन हो गए हैं।
आंतरिक शक्ति के स्रोत
अश्लीलता ने सुखा दिए हैं,
सब अश्लीलता के खिलाफ़
फ़तवा देने को तैयार बैठे हैं,
बेशक खुद इस समस्या से ग्रस्त हों।
सब भीतर बाहर से डर हुए हैं।
कोई उनका सच न जान ले !
उनकी पहचान को अचानक लील ले !!
अश्लीलता के खिलाफ़
सब को होना चाहिए।
इस बाबत सभी को
जागरूक किया जाना चाहिए।
ताकि
यह जीवन को न डसे !
बल्कि
यह अनुशासित होकर सृजन का पथ बने !!
२८/०२/२०२५.