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आज समाज में
असंतोष की आग
दावानल बनी हुई
सब कुछ भस्मित करती
जा रही है ,
उसके मूल्य
दिनोदिन
अवमूल्यन की राह
बढ़ चले हैं,
सब भोग विलास की राह पर
चल पड़े हैं।
सभी के भीतर
डर,आक्रोश, सनसनी
उत्पन्न होती जा रही है ,
हर वर्ग में तनातनी
बढ़ती जा रही है।
ऐसे समय में
समाज क्या करे ?
वह अपने नागरिकों में
कैसे सार्थक सोच विकसित करे ?
वह किन से
सुख समृद्धि और संपन्नता की आस करे
ताकि उसका मूलभूत ढांचा
सकारात्मकता को
बरकरार रख सके ,
इसमें दरारें न आ सकें।
इसमें और अधिक बिखराव न हो।
कहीं कोई गुप्त तनाव न हो ,
जिससे विघटन की रफ्तार कम हो सके ,
समाज में मूल्य चेतना बची रह सके।

आज समाज
क्यों न स्वयं को
पुनर्संगठित करे !
समाज
निज को
समयोचित बनाकर
अपने विभिन्न वर्गों में
असंतोष की ज्वाला को
नियंत्रण में रखने के लिए
निर्मित कर सके कुछ सार्थक उपाय !
वह समायोजन की और बढ़े !
इसके साथ ही वह अंतर्विरोधों से भी लड़े !!
ताकि सब साम्य भाव को अनुभूत कर सकें !!
२३/०२/२०२५.
मनुष्य का
इस धरा पर आगमन
किस लिए हुआ ?
यह अकारण नहीं ,
क्या इस में कुछ रहस्य छिपा ?
मनुष्य
योनियों के एक मायाजाल से
उभरकर
विशेष प्रयोजनार्थ
लेता है जन्म।
उसमें
अन्य जड़ पदार्थों
और चेतन प्राणियों की
तुलना में
कुछ विशेष चेतना
धीरे धीरे
काल के समंदर से गुज़र कर
है विकसित हुई
ताकि वह चेतन की अनुभूति कर सके !
निरर्थकता से ऊपर उठकर
जीवन की सार्थकता को अनुभूत कर सके !
हमारे यहां सनातन में
कर्म चक्र के प्रति आस्था व्यक्त की गई है ,
कर्म फल यानी कार्य कारण संबंध !
कुछ भी नष्ट नहीं !
महज़ ऊर्जा का रूपांतरण !!
इस आस्था के साथ जनम !
जीवन धारा को
चेतना बनकर
आत्मा में प्रवेश करने का
साक्षात निमंत्रण!
आवागमन का चक्र
इस सृष्टि में चल रहा है।
मनुष्य की चेतना में एक ख्याल कि
वह इस धरा पर क्यों जन्मा ?
क्या मनुष्य को छोड़कर
किसी अन्य जीव में आ सकता है ?
इस बाबत भी
कभी फ़ुर्सत में
विचार कीजिए?
अपनी दृष्टि को आधार दीजिए !
जीव जगत के बाबत
अपना दृष्टिकोण विकसित कीजिए !!
अपनी जगत में उपस्थिति को
दर्शन की पैनी धार दीजिए !
स्वयं को आत्म बोध करने की
दिशा में अग्रसर कीजिए !!
२२/०२/२०२५.
यदि आदमी कभी
अपनी जेहादी मानसिकता को भूल जाए ,
तो कितना अच्छा हो
उसका रोम रोम भीतर तक
कमल सा खिल जाए !
वह बगैर किसी कुंठा और तनाव के
जीवन पथ पर आगे बढ़ पाए !
कितना अच्छा हो
आदमी बस खुद को समझ जाए ,
तो उसका जीवन स्वयंमेव सुधर जाए।
वह निर्मलता का मूल जान जाए ।
वह मन की मलिनता को दूर कर पाए।
वह बाहर और भीतर के प्रदूषण से लड़ पाए।
वह जीवन में कुंदन बन जाए।
२१/०२/२०२४.
मेरा पुत्र
जो है पूरा देसी
पर नाम है जिसका
अंग्रेज सिंह।
कुछ समय पहले
ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जाने की
थी जिसकी ख्वाइश!
बहुत सारा धन कमाने का
था जिसका ख्वाब!
घर पर अपने ही ढंग से रहता था ।
जिस का रहन सहन
उसके मां बाप को तनिक नहीं भाता था।
आजकल थोड़ा अक्लमंद बन गया है।

जब से अमेरिका से
मेरे भारतीय भाई लोग
डोनाल्ड ट्रंप की
अमेरिका फर्स्ट की
नीति की वज़ह से
भारत वापसी को हुए हैं
मजबूर !
जो अच्छे मज़दूर और
कामयाब व्यापारी बनने की
योग्यता रखते हैं !
उम्मीद है
वे अब सही राह चलेंगे ,
भारत की तरक्की के लिए
दिन रात उद्यम करेंगे !
भारत को
भारत प्रथम की नीति पर
चलने की राह दिखा कर
फिर से
सुख , समृद्धि और संपन्नता की
ओर ले जाने का प्रयास करेंगे।

अंग्रेज सिंह
अब भारत में रहकर
अपना काम धंधा जमाना चाहता है,
वह ज़माने के पीछे न भाग
अपना दिमाग लगा
जीवन में
कुछ करना चाहता है ,
मेहनत कर के कुछ निखरना चाहता है।

अपने अंग्रेज सिंह के
दादा स्वदेश सिंह
अब उसे कहते हैं कि
अंग्रेज !तुम इतना धन संचित करो
कि डोनाल्ड ट्रंप के देश ही नहीं ,
दुनिया भर के देशों में
टूरिस्ट बन सैर सपाटा करो।
उनकी आर्थिकता को अपने ढंग से बढ़ाओ।
यह नहीं कि विदेश से शर्मिंदा हो कर
अपने देश में लौट के आओ।
बल्कि अपने साथ
एक विदेशी नौकर
मेहनत मशक्कत करने के लिए
लेकर आओ।
भारत का आदर और सम्मान
फिर से बढ़ाओ।
२०/०२/२०२५.
आज गुड़िया
पहली बार जा रही है
गुरु की नगरी
अमृतसर
वहां वह अपने साथियों के साथ
भगत पूर्ण सिंह की
कर्मस्थली जाएगी।
अपने भीतर
वंचितों , शोषितों , अपाहिजों के
प्रति करुणा और सद्भावना की
अमृत बूंदें लेकर आएगी ,
अपने भीतर संवेदना का
अमृत संचार लेकर आएगी।

पहली बार
जब मैं दरबार साहिब गया था
तो मुझे वहां दिव्य अनुभूति हुई थी।
उम्मीद है कि
गुड़िया वहां से दिव्य दृष्टि लेकर आएगी ,
सच्चा इंसान बनकर
अपना जीवन सेवा कार्यों में लगाएगी।

वहीं जालियां वाला बाग भी है
देश की आज़ादी में
एक विलक्षण घटना का साक्षी।
एक देशभक्तों का वध स्थल
जिसने देश समाज और दुनिया को
दिया था झकझोर !
और फिर जल्दी आई थी
आज़ादी की भोर !

वहीं पास ही है
दुर्ग्याना मंदिर
जहां बहता है
आस्था का सैलाब
जिससे जीवन में
आ सकता है ठहराव
आदमी समय के बहाव को
महसूस कर
जीवन में
आगे बढ़ने का निश्चय कर
बना सकता है स्वयं को
समाजोपयोगी और निडर।

गुड़िया
आज अभी अभी गई है
पावन नगरी
अमृतसर।
उम्मीद है कि
वह जीवन के लिए
वहां से
उपयोगी
जीवन दृष्टि संचित करके आएगी,
अपने जीवन को सार्थकता से
जोड़ पाएगी ,
स्वयं को सकारात्मक बनाएगी।
२०/०२/२०२५.
जब चाहकर भी
नींद नहीं आती,
सोचिए जरा
उस समय
क्या जिन्दगी में
कुछ अच्छा लगता है ?
जिन्दगी का पल पल
थका थका सा लगता है।
नींद की चाहत
शेयर मार्केट की तेज़ी सी
बढ़ जाती है।
ऐसे समय में
सोना अर्थात नींद की चाहत
सोने से भी
अधिक मूल्यवान लगने लगती है।
आंखों की पलकों पर
नींद की खुमारी दस्तक
देने लगे तो सब कुछ
अच्छा अच्छा लगता है।
समय पर सो पाना ही
जीवन में सच्चा
और आनन्ददायक ,
सुख का अहसास
होने की प्रतीति कराने लगता है।
समुचित नींद न मिल पाए
तो सचमुच आदमी को
झटका लगता है ,
उसे जीवन में
सब कुछ भटकाता हुआ ,
खोया खोया सा लगता है।
पल पल मन में कुछ खटकता है।
जीवन यात्रा में भीतर धक्का लगता सा लगता है।
नींद का इंतज़ार बढ़ जाता है।
आदमी को कुछ भी नहीं भाता है ,
भीतर का सुकून कहीं लापता हो जाता है।
१९/०२/२०२५.
ਇਹ ਦਰਦ ਦਾ ਅਹਿਸਾਸ ਹੀ ਹੈ
ਜੋ ਸਾਨੂੰ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ਖ਼ਾਸ।
ਰਿਸ਼ਤਾ ਦਰਦ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਜੀਬੋ ਗ਼ਰੀਬ
ਜਿੰਨਾ ਦਰਦ ਵੱਧਦਾ ਹੈ ,
ਇਨਸਾਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਹਕੀਕਤ ਦੇ ਕਰੀਬ।
ਭਾਵੇਂ ਦਰਦ ਦਿਲ ਦਾ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਪਿੱਠ ਦਾ ਹੋਵੇ ,
ਇਹ ਆਪਣਾ ਇਲਾਜ ਲੱਭ ਲੈਂਦਾ ਹੈ,
ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਅੱਗੇ ਵਧਣ ਦੀ ਰਾਹ ਲੱਭ ਲੈਂਦਾ ਹੈ।
ਬੁੜਾਪੇ ਵਿੱਚ ਦਰਦ ਉਦਾਸੀ ਦੀ ਵਜ੍ਹਾ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ,
ਜਵਾਨੀ ਵਿੱਚ ਦਰਦ ਸਾਨੂੰ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ,
ਬਚਪਨ ਦਾ ਦਰਦ ਸੁਪਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਆ ਆ ਕੇ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਜਿਉਣ ਦੀ ਵਿਉਂਤ ਦੱਸਦਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਦਰਦ ਇਨਸਾਨ ਦਾ ਦੁਸ਼ਮਣ ਨਹੀਂ ਦੋਸਤ ਹੈ ,
ਇਹ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੀ ਰਾਹਾਂ ਵਿੱਚ ਅਕਲਮੰਦ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ।
ਇਹ ਸੁੱਖ ਦੀ ਭਾਲ ਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਬਣ ਕੇ
ਜੀਵਨ ਯਾਤਰਾ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਵਧਾਉਂਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ।
ਇਹ ਦਰਦ ਹੀ ਹੈ
ਜਿਹੜਾ ਇਨਸਾਨ ਨੂੰ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਸਿਖਾਉਂਦਾ ਹੈ ,
ਇਹ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਮੰਜ਼ਿਲ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਉਂਦਾ ਹੈ।

ਕਈ ਵਾਰੀ ਦਰਦ ਦਾ ਰਿਸ਼ਤਾ
ਇਨਸਾਨਾਂ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ
ਇੱਕ ਦਵਾ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ,
ਇਹ ਅੰਦਰੋਂ ਟੁੱਟੇ ਹੋਏ ਇਨਸਾਨਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ
ਜਿਉਣ ਦੀ ਤਾਂਘ ਪੈਦਾ ਕਰ
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸੰਚਾਰ ਕਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ,
ਦਰਦ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਜੀਵਨ ਜਾਂਚ ਸਿਖਾਉਂਦਾ ਹੈ।
ਦਰਦ ਸਿਰਜਣਾ ਦਾ ਮੂਲ ਹੈ ,
ਕਦੀ ਕਦੀ ਇਸ ਦੇ ਅੱਗੇ
ਸਾਰੇ ਸੁੱਖ ਤੇ ਆਰਾਮ
ਲੱਗਣ ਲੱਗਦੇ ਸਮੇਂ ਦੀ ਧੂੜ ਹਨ।
18/02/2025.
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