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मन की गति बड़ी तीव्र है !
इसे समझना भी विचित्र है!
मन का अधिवास है कहां ?
शायद तन के किसी कोने में!
या फिर स्वयं के अवचेतन में!
मन इधर उधर भटकता है !
पर कभी कभी यह अटकता है!!
यह मन , मस्तिष्क में वास करता है।
आदमी सतत इस पर काबू पाने के
निमित्त प्रयास करता रहता है।
यदि एक बार यह नियंत्रित हो जाए ,
तो यह आदमी के भीतर बदलाव लाता है।
आदमी बदला लेना तक भूल जाता है।
उसके भीतर बाहर ठहराव जो आ जाता है।
यह जीव को मंत्र मुग्ध करता हुआ
जीवन के प्रति अगाध विश्वास जगाता है।
यह जीवंतता की अनुभूति बन कर
मतवातर जीवन में उजास भरता जाता है
आदमी अपने मन पर नियंत्रण करने पर
मनस्वी और मस्तमौला बन जाता है।
वह हर पल एक तपस्वी सा आता है नज़र,
उसका जीवन  और दृष्टिकोण
आमूल चूल परिवर्तित होकर
नितांत जड़ता को चेतनता में बदल देता है।
वह जीवन में उत्तरोत्तर सहिष्णु बनता चला जाता है।
मन हर पल मग्न रहता है।
वह जीवन की संवेदना और सार्थकता का संस्पर्श करता है।
मन जीवन के अनुभवों और अनुभूतियों से जुड़कर
सदैव
क्रियाशील रहता है।
सक्रिय जीवन ही मन को
स्वस्थ और निर्मल बनाता है।
इस के लिए
अपरिहार्य है कि
मन रहे हर पल कार्यरत और मग्न ,
यह एक खुली किताब होकर
सब को सहज ही शिखर की और ले जाए।
इस दिशा में
आदमी कितना बढ़ पाता है ?
यह मन के ऊपर
स्व के नियंत्रण पर निर्भर करता है ,
वरना निष्क्रियता से मन बेकाबू होकर
जीवन की संभावना तक को
तहस नहस कर देता है।
कभी कभी मन की तीव्र गति
अनियंत्रित होकर जीवन में लाती है बिखराव।
जो जीवन में तनाव की बन जाती है वज़ह ,
फलस्वरूप जीवन में व्याप्त जाती है कलह और क्लेश।
इस मनःस्थिति से बचना है तो मन को रखें हर पल मग्न।


०६/०१/२०२५.
ਸੁਣਿਆ ਹੈ ,ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੇ ਧਰਨਾ ਲਗਾਇਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ।
ਇਹ ਨੌਬਤ ਕਿਉਂ ਆਈ ?
ਕਿਸਾਨ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵੀ ਗ਼ਰੀਬ ਤੇ ਮਜ਼ਬੂਰ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕਿ
ਉਹ ਸਾਰੇ ਕੰਮ ਧੰਦੇ ਛੱਡ ਕੇ
ਆਪਣਾ ਵਿਰੋਧ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਨ ਲਈ
ਧਰਨਿਆਂ ਮੁਜ਼ਾਰਿਆਂ ਦਾ ਆਸਰਾ ਲਵੇ
ਇਹ ਸਭ ਕੁੱਝ ਵਾਪਰਿਆ ਹੈ
ਤਾਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਆਪਣੀਆਂ ਗ਼ਲਤੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ
ਮੈਨੂੰ ਜਾਪਦਾ ਹੈ ਕਿ ਹੁਣ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ
ਨਿੱਕੇ ਨਿੱਕੇ ਬੱਚਿਆਂ ਵਾਂਗੂੰ
ਜੀਵਨ ਦੀ ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਵਿੱਚ
ਸਫ਼ਲ ਹੋਣ ਦੇ ਲਈ
ਖ਼ੁਦ ਹੀ ਦੇਣਾ ਪੈ ਰਿਹਾ ਹੈ  ਪੇਪਰ,
ਉਹ ਅੱਜ ਤੇ ਕੱਲ੍ਹ ਵੀ
ਪ੍ਰੀਖਿਆਵਾਂ ਦਿੰਦੇ ਰਹਿਣਗੇ ,
ਧਰਨਿਆਂ ਮੁਜ਼ਾਰਿਆਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਇਮਤਿਹਾਨ ਦਿੰਦੇ ਰਹਿਣਗੇ।
ਜਦ ਤੱਕ ਉਹ ਸਮਝਣਗੇ ਨਹੀਂ ਆਪਣਾ ਸੱਚ ,
ਉਹ ਆੜਤੀਆਂ ਅਤੇ ਸਰਕਾਰਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ
ਕਠਪੁਤਲੀਆਂ ਬਣੇ ਭਟਕਦੇ ਰਹਿਣਗੇ।
ਭ੍ਰਸ਼ਟ ਵਪਾਰੀਆਂ ਦੇ ਇਸ਼ਾਰਿਆਂ ਤੇ
ਕਠਪੁਤਲੀਆਂ ਬਣੇ ਨੱਚਦੇ ਰਹਿਣਗੇ।
ਉਹ ਆਪਣਾ ਦੁੱਖੜਾ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਹਿ ਸਕਣਗੇ ?
ਉਹ ਤਾਂ ਹਰ ਵੇਲੇ ਆਪਣਿਆਂ ਹੱਥੋਂ ਰੁੱਲਦੇ ਰਹਿਣਗੇ।
ਲਗਾਤਾਰ ਬਿਨਾਂ ਰੁਕੇ ਨੱਚਦੇ ਰਹਿਣਗੇ ।

ਅੱਜ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ,
ਉਹ ਸਮਝਣ ਆਪਣੇ ਹਾਲਾਤਾਂ ਨੂੰ ।
ਉਹ ਆਪਣਾ ਆਪ ਸੰਭਾਲੀ ਰਖੱਣ,
ਉਹ ਆਪਣੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ ਜੰਜਾਲ ਵਿੱਚੋਂ
ਨਿਕਲਣ ਦਾ
ਖ਼ੁਦ ਹੀ ਉਪਰਾਲਾ ਕਰਨ।
ਮੁਸੀਬਤ ਵਿੱਚ ਪਇਆ ਹੋਇਆ ਬੰਦਾ
ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਕੇ ਹੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਪਾਰ ਪਾਉਂਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ।
ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਮੰਜ਼ਿਲ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਉਂਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ।
05/01/2025.
ਆਦਮੀ ਜਦੋਂ ਮਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ
ਕੀ ਉਸ ਨੂੰ ਰੋਕਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ
ਮੇਰਾ ਮੰਨਨਾ ਹੈ
ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਇੱਛਾ ਪੂਰੀ ਕਰਨ ਦਿਓ
ਜੇਕਰ ਉਹ ਰੱਬ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਚ ਹੀ ਜਾਣਾ ਚਾਹੇਗਾ
ਤਾਂ ਕੀ ਉਹ ਰੱਬ ਨੂੰ ਮਿਲ ਜਾਵੇਗਾ ।
ਰੱਬ ਕਿਥੇ ਹੋਰ ਨਹੀਂ
ਸਾਡੇ ਮਨਾਂ ਵਿੱਚ ਵੱਸਦਾ ਹੈ ,
ਇਸ ਸੱਚ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਵਿੱਚ
ਕਿਉਂ ਹਰ ਕੋਈ ਡਰਦਾ ਹੈ।
ਬੇਵਕਤ ਮਰਨ ਨਾਲੋਂ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਟ ਝੱਲਣਾ ਚੰਗਾ ਹੈ।
ਇਸ ਨੂੰ ਸਮਝਦਾ ਨਹੀਂ ਬੰਦਾ ਹੈ ,
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਲੱਗਣ ਲੱਗਦੀ ਇੱਕ ਫੰਦਾ ਹੈ।
ਜਿੰਦਗੀ ਖੁੱਲ ਕੇ ਜੀਓ ,ਐਵੇਂ ਹੀ ਨਾ ਰੋਂਦੇ ਰਹੋ।
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਇੱਕ ਝਮੇਲਾ ਨਹੀਂ
ਇਹ ਇੱਕ ਬਹੂ ਰੰਗੀ ਮੇਲਾ ਹੈ
ਆਓ ਇਸ ਮੇਲੇ ਦਾ ਆਨੰਦ ਮਾਨੀਏ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਪਹਿਚਾਣੀਏ

ਜੇਕਰ ਕੋਈ ਮਰਨਾ ਹੀ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ
ਇੱਕ ਵਾਰ ਰੱਜ ਕੇ ਉਸ ਨਾਲ
ਖੁੱਲੇ ਦਿਲ ਨਾਲ ਵਿਚਾਰ ਵਟਾਂਦਰਾ ਕਰੀਏ।
ਉਸ ਨਾਲ ਜੀ ਭਰ ਕੇ ਗੱਲਾਂ ਕਰੀਏ ,
ਉਸਦੇ ਅੰਦਰ ਚੜਦੀ ਕਲਾ ਚ
ਰਹਿਣ ਦੇ ਵਿਚਰਨ ਦੀ
ਚਾਹਤ ਭਰੀਏ ।
ਮੌਤ ਇੱਕ ਸੱਚਾਈ ਹੈ
ਪਰ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੇ ਇਸ ਦੀ
ਆਪਣੀ ਰੰਗਾਂ ਤੇ ਖੂਬਸੂਰਤੀ ਨਾਲ
ਮਰਨ ਦੀ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਭਰਪਾਈ ਹੈ ,
ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮਰਨ ਦੀ ਇੱਛਾ ਕਰਨਾ
ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਬੁਰਾਈ ਹੈ ।
ਸਮੈ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮਰਨ ਦੇ ਬਾਬਤ
ਕਦੇ ਵੀ ਨਾ ਸੋਚੋ, ‌ ਬਲਕਿ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬਾਰੇ
ਇਸ ਨੂੰ ਗੁਲਜ਼ਾਰ ਕਰਨ ਬਾਰੇ ਸੋਚੋ।
ਐਵੇਂ ਨਹੀਂ ਦੁੱਖਾਂ ਭਰੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਕੁਰੀਦਦੇ ਰਹੋ।
आज भी
अराजकता के
इस दौर में
आम जनमानस
न्याय व्यवस्था पर
पूर्णरूपेण करता है भरोसा।

बेशक प्रशासन तंत्र
कितना ही भ्रष्ट हो जाए ,
आम आदमी
न्याय व्यवस्था में
व्यक्त करता है विश्वास ,
वह पंच परमेश्वर की
न्याय संहिता वाली आस्था के
साथ दूध का दूध , पानी का पानी होना
अब भी देखना चाहता है
और इसे हकीकत में भी देखता है ,
आज भी आम जन मानस के सम्मुख
कभी कभी न्यायिक निर्णय बन जाते हैं नज़ीर और मिसाल
...न्याय व्यवस्था लेकर बढ़ने लगती है जागृति की मशाल।
उसके भीतर हिम्मत और हौंसला
पैदा करती है न्याय व्यवस्था,
त्वरित और समुचित फैसले ,
जिससे कम होते हैं
आम और खास के बीच बढ़ते फासले।
न्यायाधीश
न्याय करता है
सोच समझ कर
वह कभी भी एक पक्ष के हक़ में
अपना फैसला नहीं सुनाता
बल्कि वह संतुलित दृष्टिकोण के साथ
अपना निर्णय सुनाता है ,
जिससे न्याय प्रक्रिया कभी बाधित न हो पाए।
आदमी और समाज की चेतना सोई न रह जाए।
जीवन धारा अपनी स्वाभाविक गति से आगे बढ़ पाए।
०५/०१/२०२५.
सब कुछ
मेरे वश में रहे।
यह सब सोच
जीवन में भागता रहा,
बस भागता रहा
और हांफता हुआ
खुद का नुक़सान किया,
भीतर ही भीतर
वेदना झेलता रहा।

मैं भी बस एक मूर्ख निकला।
खुद से ही बस लड़ता रहा ,
मतवातर खुद की
महत्वाकांक्षाओं के बोझ से
दबता रहा , सच कहने से
हरदम बचने की कशमकश में रहकर
भीतर ही भीतर डरता रहा।
जीवन पर्यन्त कायर बना रहा।
लेकिन अब मैं सच कह कर रहूंगा।
अपना तनाव कम करके रहूंगा।
कब तक मैं दबाव सहूंगा ?
ऐसे ही चलता रहा, तो मैं
अपने को खोखला करूंगा।
बस! बहुत हुआ , अब और नहीं ?
मैं खुद को सही इस क्षण करूंगा।
तभी जीवन में आगे बढ़ सकूंगा।
04/01/2025.
दोस्त ,
इस जहान में
नीति निवेशक बहुत हैं ,
जो नीति की बात करते हैं !
अनीति की राह चलते हैं !
कुरीति के ग्राफ को
बढ़ावा देकर
अपनी जेब भरते हैं।
ये दिनोदिन वजनदार
होते जाते हैं,
भारी भरकम
व्यक्तित्व के मालिक
पहली नज़र में दिखाई पड़ते हैं ।
नख से शिख तक
रौबीले दिखाई देते हैं।

ये नीति निवेशक
हज़ार खामियों के बावजूद
हमारे आदर्श बनते जाते हैं।
ये कभी कभी
संचार माध्यम की कृपा से
हमेशा हमारे घरों तक पहुँच कर
हमें सपने दिखलाकर
अपनी रोजी रोटी चलाते हैं।
हमें मूर्ख तक बनाते हैं।
यदा कदा अपनी धूर्तता और विद्रूपता से
जीवन को नर्क बना देते हैं।
हमारे विरोध करने पर अपने तर्क से
कभी कभी हमें चुप भी करा देते हैं।

जब कभी हम
उनकी असलियत को
समझते हैं ,
तब तक हो चुकी होती है देर
हम ढेर
होने की कगार पर
पहुंचने वाले होते हैं।

कभी कभी हम
उन पर
फब्तियां भी कस देते हैं
वे चुप रह कर
अपनी मुस्कुराहट नहीं छोड़ते।
हमारी व्यंग्योक्तियों को
वे नज़र अंदाज़ कर देते हैं।
हमें चुप कराने के निमित्त
वे कुछ निवाले
हमारी तरफ़ फ़ेंक दिया करते हैं
और हम उन्हें बटोर
विरोध भूल जाते हैं।
वे जब कभी हमारी ओर देख मुस्कुराते हैं,
हम उनकी इस मुस्कुराहट से तिलमिला उठते हैं।
वे हमें शर्मिंदगी का अहसास
बराबर करवा कर
हमें बौना ‌महसूस करने को आतुर रहते हैं
और कर देते हैं  हमें विवश एवं लाचार।
वे अपने लक्ष्य को सामने रखकर
जीवन में आगे बढ़ने का करते हैं प्रयास।
वे हमें अकेलेपन की सरहद पर छोड़
यकायक किनाराकशी करते हुए
नवीनतम नीति निवेश हेतु
चल देते हैं ‌अपनी डगर।
वे अपने व्यक्तित्व के अनुरूप
कभी कभी यकायक
हमारी जिंदगी को
मतवातर बनाते रहते हैं विद्रूप
हम उनके इरादों को समझ नहीं पाते।
ज़िंदगी भर नीति निवेशकों के मकड़जाल में फंसकर ,
दिन-रात कसमसाते हुए , रहते हैं पछताते,
पर उन पर
होता नहीं कोई असर।
04/01/2025.
आदमी के भीतर
बहुत सारी संभावनाएं
निहित हैं और उन को उभारना
चरित्र पर करता है निर्भर।
है न !
एक बात विचित्र
बूढ़े आदमी के भीतर
स्मृति विस्मृति के मिश्रण से
निर्मित हो जाता है
एक कोलाज ,
जो जीवन के आज को
दर्शाता है ,
कोई विरला इससे
रूबरू हो पाता है ,
बूढ़े आदमी की व्यथा कथा को
समझ पाता है,
उसके अंदर व्याप्त
समय के आधार पर
वृद्धावस्था की मानसिकता को
कहीं गहरे से जान पाता है।

और इस सबसे ज़रूरी है कि
बूढ़े आदमी के भीतर
सदैव रहना चाहिए
एक मासूमियत से लबरेज़ बच्चा
जो जीवन यात्रा के दौरान
इक्ट्ठा किए झूठ बोलने से हुए निर्मित
धूल मिट्टी घट्टे को झाड़कर
कर सके क़दम दर क़दम
आदमी की जीवन धारा को
साफ़ सुथरा और स्वच्छ।
आदमी दिखाई दे सके
नख से शिख तक सच्चा!
ताकि निश्चिंतता से
आदमी अपनी भूमिका को
ढंग से निभाते हुए
कर सके प्रस्थान!
बिल्कुल उस निश्छलता के साथ
जिसके साथ अर्से पहले
हुआ था उसका आगमन।
अब भी करे वह उसी निर्भीकता से गमन।
भीतर बस आगमन गमन का खेल
लुका छिपी के रहस्य और रोमांच सहित चलता है।
इस मनोदशा में राहत
उनींदी अवस्था में
सपन देख मिलती है।
बूढ़े के भीतर एक परिपक्व दुनिया बसती है।
क्या उसके इर्द-गिर्द की दुनिया
इस सच की बाबत कुछ जानती है ?
या फिर वह बातें बनाने में मशगूल रहती है !
०४/०१/२०२४.
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