Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Joginder Singh Dec 2024
बेबस आदमी
अक्सर
अराजकता  के माहौल में
हो जाता है
आसानी से
धोखाधड़ी और ठगीठौरी का शिकार।

बार बार
ठगे जाने पर
अपनी बाबत
गहराई से विचार
करने के बाद
मतवातर
सोच विचार करने पर
आदमी के अंदर
स्वत : भर ही जाता है
संदेह और अविश्वास !
वह कभी खुलकर
नहीं ले पाता उच्छवास !!

आदमी धीरे धीरे
अपने आसपास से
कटता जाता है ,
वह चुप रहता हुआ ,
सबसे अलग-थलग पड़कर
उत्तरोत्तर अकेला होता जाता है।
संशय और संदेह के बीज
अंतर्मन में भ्रम उत्पन्न कर देते हैं ,
जो भीतर तक असंतोष को बढ़ाते हैं।


यही नहीं कभी कभी
आदमी अराजक सोच का
समर्थन भी करने लगे जाता है।
उसकी बुद्धि पर
अविवेक हावी हो जाता है।
वह अपने सभी कामों में
जल्दबाजी करता है ,
जीवन में औंधे मुंह गिरता है।
ऐसी मनोदशा में
अधिक समय बिताते हुए
वह खुद को लुंज-पुंज कर लेता है।
वह क्रोधाग्नि से
स्वयं को असंतुष्ट बना लेता है।
वह कभी भी अपने भीतर को
समझ नहीं पाता है।
यही नहीं वह अन्याय सहता है,
पर विरोध करने का हौसला
चाहकर भी जुटा नहीं पाता है।
और अंततः अचानक
एक दिन धराशायी हो जाता है।
ऐसा होने पर भी
उसका आक्रोश
कभी बाहर नहीं निकल पाता है।
वह अपनी संततियो को भी
किंकर्तव्यविमूढ़ बना देता है।
वे भी अनिर्णय का दंश
झेलने के निमित्त
लावारिस हालत में तड़पते हुए
अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं।
वे मतवातर यथास्थिति बनाए
अशांत और बेचैनी से भरे
भीतर तक कसमसाते रहते हैं।

आप ही बताइए कि
लावारिस शख्स देश दुनिया में
अराजकता नहीं फैलाएंगे ,
तो क्या वे सद्भावना का उजास
अपने भीतर से
कभी उदित होता देख पाएंगे ?
...या वे सब जीवन भर भटकते जाएंगे !!
कभी तो वे अपने जीवन में सुधार लाएंगे !!
कभी तो वे समर्थ और प्रबुद्ध नागरिक कहलाएंगे !!

आजकल भले ही आदमी अपनी बेबसी से जूझ रहा है ,
उसकी बेबस ज़िंदगी इतनी भी उबाऊ और टिकाऊ नहीं
कि वह इस यथास्थिति को झेलती रहे।
रह रह कर असंतोष की ज्वाला भीतर धधकती रहे।
अविश्वास के दंश सहकर अविराम कराहती हुई
अचानक अप्रत्याशित घटनाक्रम का शिकार बनकर
हाशिए से हो जाए बाहर।
आदमी और उसकी आदमियत को
सिरे से नकार कर
एक दम अप्रासंगिक बनाती हुई !
आदमी को अपनी ही नज़रों में गिराती हुई !!
कहीं देखनी पड़ें आदमी की आंखें शर्मिंदगी से झुकीं हुईं !!


बेबसी का चाबुक
कभी तो पीछे हटेगा,
तभी आदमी जीवन पथ पर
निर्विघ्न आगे बढ़ सकेगा।
अपनी हसरतें पूरी कर सकेगा।

कभी तो यथास्थिति बदलेगी।
व्यवस्था
परिवर्तन की लहरों से
टकराकर अपने घुटने टेकेगी।
जीवन धरा फिर से स्वयं को उर्वर बनाएगी।
जीवन धारा महकती इठलाती
अपनी शोख हंसी बिखेरती देखी जाएगी।
इस परिवर्तित परिस्थितियों में
प्रतिकूलता विषमता तज कर
आदमी के विकास के अनुकूल होकर
जीवन धारा को स्वाभाविक परिणति तक पहुंचाएगी।
सच ! ऐसे में बेबसी की दुर्गन्ध आदमी के भीतर से हटेगी।

२१/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
अभी अभी पढ़ा है
पत्रिका में प्रकाशित हुआ
संपादकीय
जिसके भीतर बच्चों को चोरी करने
और उन से  हाथ पांव तोड़ भीख मंगवाने,
उन्हें निस्संतान दम्पत्तियों को सौंपने,
उन मासूमों से अनैतिक और आपराधिक कृत्य करवाने का
किया गया है ज़िक्र,
इसे पढ़कर हुई फ़िक्र!

मुझे आया
कलपते बिलखते
मां-बाप और बच्चों का ध्यान।
मैं हुआ परेशान!

क्या हमारी नैतिकता
हो चुकी है अपाहिज और कलंकित
कि समाज और शासन-प्रशासन व्यवस्था
तनिक भी नहीं है इस बाबत चिंतित ?
उन पर परिस्थितियों का बोझ है लदा हुआ,
इस वज़ह से अदालतों में लंबित मामलों का है ढेर
इधर-उधर बिखरे रिश्तों सरीखा है पड़ा हुआ।
स्वार्थपरकता कहती सी लगती है,
उसकी गूंज अनुगूंज सुन पड़ती है , पीड़ा को बढ़ाती हुई,
' फिर क्या हुआ?...सब ठीक-ठाक हो जाएगा।'
मन में पैदा हुआ है एक ख्याल,
पैदा कर देता है भीतर बवाल और सवाल ,
' ख़ाक ठीक होगा देश समाज और दुनिया का हाल।
जब तक कि सब लोग
अपनी दिनचर्या और सोच नहीं सुधारते ?
क्या प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था और
बच्चों की चोरी करने और करवाने वालों को
सख़्त से सख़्त सजा नहीं दे सकते ?

मुझे अपने भाई वासुदेव का ध्यान आया था
जो खुशकिस्मत था, अपनी सूझबूझ और बहादुरी से
बच्चों को चुराने वाले गिरोह से बचकर  
सकुशल लौट पाया था,
पर  भीतर व्याप चुके इसके दुष्प्रभाव
अब भी सालों बाद दुस्वप्न बनकर सताते होंगे।

मुझे अपने सुदूर मध्य भारत में
भतीजे के अपहरण और हत्या होने का भी आया ध्यान,
जो जीवन भर के लिए परिवार को असहनीय दुःख दे गया।
क्या ऐसे दुखी परिवारों की पीड़ा को कोई दूर करेगा?

बच्चों को चुराने वाली इस  मानसिकता के खिलाफ़
सभी को देर सवेर बुलन्द करनी होगी अपनी-अपनी आवाज़
तभी बच्चा चोरी का सिलसिला  
किसी हद तक रुक पायेगा।
देश-समाज सुख-समृद्धि से रह रहे नज़र आएंगे।
वरना देश दुनिया के घर घर में
बच्चा - चोर उत्पात मचाते देखे जाएंगे।
फिर भी क्या हम इसके दंश झेल पाएंगे ?

२३/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में
कोई कोई पल
बगैर कोई कोशिश किए
सुखद अहसास
बनकर आता है।
सच! इस पल
आदमी
अपने विगत के
कड़वे कसैले अनुभवों को
भूल पाता है।

यदि कभी अचानक
बेबसी का बोझ
किसी एक पल
अगर दिमाग से
निकल जाए
और
दिल अपने भीतर
हल्कापन
महसूस कर पाएं
तो आदमी
अधिक देर तक
तनाव से निर्मित वजन
नहीं सहता
बल्कि
उसे अपने जीवन में
जिजीविषा और ऊर्जा की
उपस्थिति होती है अनुभूत।
ऐसे में
जीवन एक खिले फूल सा
लगता है
और
कोई  कोई पल
अनपेक्षित वरदान सरीखा होकर
जीवन को
पुष्पित, पल्लवित और सुगंधित कर
ईश्वरीय अनुकंपा की
प्रतीति कराता है।
यह सब जब घटता है ,
तब जीवन
तनाव मुक्त हो जाता है
यही चिरप्रतीक्षित पल
जीवन में
आनंद और सार्थकता की
अनुभूति बन जाता है।

सभी को
अपने जीवन काल में
इन्हीं पलों के
जीवनोपहार का
इंतज़ार रहता है।
समय
मौन रहकर
इन्हीं पलों का
साक्षी बनता है।
इन्हीं पलों को याद कर
आदमी स्मृति पटल में
जीवन धारा को
जीवंतता से सज्जित करता है!
मतवातर जीवन पथ पर आगे बढ़ता है !!
२२/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
इस देश में
अब सब को शिखर
छूने का है
हक़।
शिखर पर पहुंचने के लिए
अथक मेहनत करनी
पड़ती है
बेशक।
देश में दंगा फ़साद
क्यों होता रहे ?
अब सब को
तालीम मिले
ताकि
सभी को निर्विवाद रूप से
शिखर पर पहुंचने की
संभावना दिखे !
सभी इसके
लिए
प्रयास करें
और एक दिन
शेख साहिब शिखर को छूएं !
मेरी आंखें
उन्हें सफलता का दामन थामते हुए देखें ।

यह छोटी सी अर्ज़ है
कि तालीम की ताली से
सफलता का ताला
सब को खोलने का अवसर मिले।
इसकी खातिर सम्मिलित
प्रयास करना
हम सब का फर्ज़ है।
यह कुदरत का सब पर कर्ज़ है।
क्यों न सब इस के लिए
प्रयास करें ?
ताकि
देश समाज में
शांतिपूर्वक संपन्नता और सौहार्दपूर्ण वातावरण बने
और
जीवन गुलाब सा गुलज़ार रहे !
कोई भी साज़िश का शिकार न बने।
सब आगे बढ़ें, कोई भी तिरस्कृत न रहे।
कोई भी दंगा फ़साद न करे।
बेशक कोई भी अपनी योग्यता के कारण
जीवन में सफलता के शिखर पर पहुंचकर
राष्ट्र और समाज का नेतृत्व करे ।
देश दुनिया को सुरक्षित करे ।
२२/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
कोई चीख
रात के अंधेरे में से
उभरी है
और
अज्ञान का अंधेरा
इसे कर गया है जज़्ब।

कोई , एक ओर चीख
अंतर्मन के बियाबान में से
उभरी है
और व्यस्त सभ्यता
इसे कर गई है नजरअंदाज।

कोई , और ज़्यादा चीखें
धरा के साम्राज्य में से
रह रह कर उभर रहीं हैं
और अस्त व्यस्त
दार्शनिकता ने
इन चीखों को
दे दिया है
इनकी पहचान के निमित्त
एक नाम "समानांतर चीखें" ।

क्या ये आप तक
तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद
आप के पास गुहार लगा रहीं हैं ?
श्रीमंत !
अपनी सामंतवादी सोच को विराम दो ।
उनके लिए कुछ सार्थक काम करो
ताकि कहीं तो
आज की आपाधापी के बीच
अशांत मनों को
सुख चैन और सुकून के अहसास मिलें ।
ये चीखें
हमारे अपनों की
कातर पुकार हो सकती हैं ।
कोई तो इन्हें सुने ।
इनके भीतर आशा और आत्मविश्वास जगे ।
१७/०७/१९९६ .
Joginder Singh Dec 2024
बेशक जीवन में
धूम धड़ाका
सब को अच्छा लगता है
पर इसका आधिक्य
बाधा भी उत्पन्न करता है।
धूम धड़ाका घूम घूम कर
धड़धड़ाता हुआ
कभी कभार
खूनी साका भी
रच जाता है,
यह तबाही के मंज़र भी
दिखला जाता है।

आदमी एक सीमा के बाद
इसे अपने जीवन में करने से बचे।
कम से कम वह अपनी खुशियों का अपहरण
स्वयं तो न करे , वह थोड़ा सा गुरेज़ करे।

कभी कभी
धूम धड़ाके जैसा आडंबर का सांप
चेतना और विवेक को न डस सके।
आदमी सलीके से
अपने स्वाभाविक ढंग से
इस बहुआयामी दुनिया के मज़े
दिल से ले सके।
उसकी राह में कोई अड़चन न पैदा हो सके।
वह अपने परिवार के संग
ख़ुशी ख़ुशी जीवन का आनंद उठा सके।
वह कभी धूम धड़ाका करने के चक्कर में
घनचक्कर न बने।
उसके सभी क्रिया कलाप
समय रहते सध सकें।
इस सब की खातिर
सभी जीवन में
अनावश्यक
धूम धड़ाका करने से पहले
अच्छी तरह से
सोच विचार करें
और इस से
जितना हो सके , उतना बचें ,
ताकि आदमी का चेहरा मोहरा
धूम धड़ाके की कालिख से बचा रहे।
उसकी पहचान धूमिल होने से बची रहे।
२२/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
जब तक खग
नभचर बना रहेगा
और
स्वयं के लिए
उड़ने की ललक को
अपने भीतर
ज़िन्दा रखेगा ,
तब तक ही
वह आजीवन  
संभावना के गगन में
स्वच्छंदता से उड़ान भरता रहेगा।
जैसे ही
वह अपने भीतर
उड़ने की चाहत को
जगाना भूलेगा ,
वैसे ही वह
अचानक
जाएगा थक
और
किसी षड्यंत्र का
हो जाएगा शिकार ,
वह खुद को
एक खुली कैद में
करेगा महसूस
और एक परकटे
परिन्दे सा होकर
भूलेगा चहकना ,
कभी
भूले से चहकेगा भी ,
तो अनजाने ही
अपने भीतर
भर लेगा दर्द ,
एकदम भीतर तक
होकर बर्फ़
रह जाएगा उदासीन।

वह धीरे धीरे
दिख पड़ेगा मरणासन्न ,
यही नहीं
वह इस जीवन में
असमय अकालग्रस्त होकर
कर जाएगा प्रस्थान।

क्या
तुम अब भी
उसे
किसी दरिन्दे
या फिर
किसी बहेलिए के
जाल में फंसते हुए
देखना चाहते हो ?
उसकी अस्मिता को ,
आज़ाद रहकर
निज की संभावना को तलाशते
नहीं ‌देखना चाहते हो ?

०४/०८/२०२०.
Next page