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Joginder Singh Dec 2024
तुमने बहुत दफा
बहुत से कुत्तों को
दफा करने की ग़र्ज से
उन पर परिस्थितियों वश
पत्थर फैंके होंगे।
और वे भी
परिस्थितियों वश
खूब चीखे चिल्लाए होंगे।

पर
आज
यह न समझना कि
तुम्हारी
दुत्कार फटकार
मुझे भागने को
बाध्य करेगी।
अलबेला श्वान हूं ,
भले ही...  इंसानी निर्दयता से परेशान हूं।
अपनी मर्ज़ी का मालिक हूं ।
अपने रंग ढंग से जीने का आदी हूं ।
मैं , न कि कोई
ज़ुल्म ओ सितम का सताया
कोई मजलूम या अपराधी हूं!
कुत्ता हूं ,
ज्यादा घुड़कियां दीं
तो काट खाऊंगा।
तुम्हें ख़ास से आम आदमी
बना जाऊंगा।
जानवर बेशक हूं ,
पर कोई भेदभाव नहीं करता।
कोई छेड़े तो सही ,
तुरन्त काट खाता हूं।
फिर तो कभी कभी
खूब मार खाता हूं!
पर अपनी फितरत
कहां छोड़ पाया हूं ।
कभी कभी ‌तो
अपने बदले की भावना की
वज़ह से मारा भी जाता हूं ,
अपना वजूद गंवाता हूं।
आदमी के हाथों मारा जाता हूं।

मैं सरेआम
अपने समस्त काम निधड़क करता हूं ,
खाना पीना, मूतना और बहुत कुछ !
पर मेरी वफादारी के आगे
तुम्हारे समस्त क्रिया कलाप तुच्छ !!


मैं / यह जो तुम्हें
पूंछ हिलाता दिखाई दे रहा हूं ,
यह सब मैंने मनुष्यों के साहचर्य में
रहते रहते ही सीखा है !
आप जैसे मनुष्य
स्वार्थ पूर्ति की खातिर
कुछ भी कर सकते हैं ,
यहां तक कि
अपने प्रियजनों को भी
अपने जीवन से बेदखल कर सकते हैं !

मैं श्वान हूं , इंसान नहीं
मुझे दुत्कारो मत ,
वरना आ सकती कभी भी शामत।
गुर्राहट करते हुए आत्म रक्षा करने का
प्रकृति प्रदत्त वरदान मिला है मुझे।
गुर्रा कर स्वयं को बचाना ,
साथ ही मतवातर पूंछ हिलाना ,
और अड़ना, लड़ना, भिड़ना,
सब कुछ भली भांति जानता हूं,
और इस पर अमल भी करता हूं ।

पर कभी कभी
जब कोई
अड़ियल , कडियल , मरियल , सड़ियल आदमी
मुसीबत बनने की चुनौती देने
ढीठपन
पर उतर आए
तो क्यों न उसे
अपने दांतों से
मज़ा चखाया जाए !
अपने भीतर की ढेर सारी कुढ़न
और गुस्से को भड़का कर
देर देर तक, रह रह कर
गुर्राहट करते  करते चुनौती दी जाए ।
आदमी को
भीतर  तक घबराहट भरने में सक्षम
कोई कर्कश स्वर-व्यंजन की ध्वनियों से तैयार
गीत संगीत रचा और सुनाया जाए।
ऐसा कभी कभी
श्वान सभी से कहना चाहता है।

क्यों नहीं ऐसी विषम परिस्थितियों को
उत्पन्न होने देने से बचा जाए ?
अपने जीवन के भीतर करुणा व दया भाव को भरा जाए।

२०/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
कष्ट
हद की दहलीज़ को
लांघ कर
आदमी को
पत्थर बना देता है ,
आंसुओं को सुखा देता है ।


कष्ट
उतने ही दे
किसी प्रियजन को
जितने वह
खुशी खुशी सह सके ।
कहीं
कष्ट का आधिक्य
चेतना को कर न दें
पत्थर
और
बाहर से
आदमी ज़िंदा दिखे
पर भीतर से जाए मर ।

२१/०२/२०१४.
Joginder Singh Dec 2024
लोग सोचते हैं कि
आपको सब कुछ पता है ,
आसपास का सब कुछ --
नहीं है आपकी आंखों से
ओझल कुछ भी कहीं।

पर आप जानते हैं --
स्वयं को अच्छी तरह से ,
फलत: आप चुप रहते हैं ,
अपना सिर झुका कर
हर क्षण,हर पल, चुपचाप
चिंतन मनन करते रहते हैं।
अपना सिर झुकाए हुए
सोचते हैं ,निज से कहते हैं कि...,
" कैसे कहूं अपना सच !
किस विधि रखूं अपने
जीवन में प्राप्त निष्कर्ष
जनता जनार्दन के सम्मुख।
सतत् परिश्रम बना हुआ है
उत्कृष्टता का केन्द्र
और जीवन का आधार!"
" इस के अतिरिक्त
और नहीं कुछ मुझे विदित ,
दुनिया न खुद के बारे में ।
बहुत सा सच है अंधियारे में।"

आप कहते कुछ नहीं,
आजकल सुनते भर हैं।
आप कहें भी किस से ?
सब समय की चक्की तले
मतवातर पिस रहें।

कभी कभी आप
सुनते भर नहीं ,
अविराम सोचते समझते हैं ,
भीतरी अंधेरे को
उलीचते भर हैं ।
ताकि जीवन के सच का
उजास जीवन में मिलता रहे।
इससे जीवन - पथ प्रकाशित होता रहे।
लोग सोचते हैं कि आपको सब पता है ,
आप सोचते हैं कि लोगों को सब पता है ,
सच्चाई यह है -- आप और भीड़ , दोनों लापता हैं,
और आप सब कुछ कहे बिना
अपने अपने ‌ढंग से ढूंढते अपने घर का पता हैं ।

०४/०८/२००८.
Joginder Singh Dec 2024
भले ही कोई
उतारना चाहे
दूध का कर्ज़ ,
अदा कर अपने फर्ज़।
यह कभी उतर नहीं सकता ,
कोई इतिहास की धारा को
कतई मोड़ नहीं सकता।
भले ही वह धर्म-कर्म और शक्ति से
सम्पन्न श्री राम चन्द्र जी प्रभृति
मर्यादा पुरुषोत्तम ही क्यों न हों ?
उनके भीतर योगेश्वर श्रीकृष्ण सी
'चाणक्य बुद्धि 'ही क्यों न रही हो !

मां संतान को दुग्धपान कराकर
उसमें अच्छे संस्कार और चेतना जगाकर
देती है अनमोल जीवन, और जीवन में संघर्ष हेतु ऊर्जा।
ऐसी ममता की जीवंत मूर्ति के ऋण से
पुत्र सर्वस्व न्योछावर कर के भी नहीं हो सकता उऋण।
माता चाहे जन्मदात्री हो,या फिर धाय मां अथवा गऊ माता,
दूध प्रदान करने वाली बकरी,ऊंटनी या कोई भी माताश्री।

दूध का कर्ज़ उतारना असंभव है।
इसे मातृभूमि और मातृ सेवा सुश्रुषा से
सदैव स्मरणीय बनाया जाना चाहिए।
मां का अंश सदैव जीवात्मा के भीतर है विद्यमान रहता।
फिर कौन सा ऐसा जीव है,
जो इससे उऋण होने की बालहठ करेगा ?
यदि कोई ऐसा करने की कुचेष्टा करें भी
तो माता श्री का हृदय सदैव दुःख में डूबा रहता!
कोई शूल मतवातर चुभने लगता,
मां की महिमा से
समस्त जीवन धारा
और जीव जगत अनुपम उजास ग्रहण है करता।
ममत्व भरी मां ही है सृष्टि की दृष्टि और कर्ताधर्ता !!
०३/०८/२००८.
Joginder Singh Dec 2024
आज
आदमी ने
अपने भीतर
गुस्सा
इस हद तक
भर लिया है कि
वह बात बेबात पर
असहिष्णु बनकर
मरने और मारने पर
हो जाता है उतारू ,
उसकी यह मनोदशा
आदमी को भटका रही है।
निरंतर उसे बीमार बना ‌रही है।
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में
कुछ भी बेकार नहीं होता ,
यहां तक कि
कवायद या कोई शिकवा शिक़ायत भी नहीं ,
आखिर हम इस सब के पीछे की
कहानी को समझें तो सही ।

कभी किसी की
शिकायत करें तो सही ,
कैसे नहीं अक्ल ठिकाने लगा दी जाती?
ज़िंदगी की पेचीदगियों की समझ,
समझ में समा जाती !
यह शिकायत,
शिकायत के निपटारे की
कवायद ही है ,
जो जीवन में
आदमी को
निरंतर समझदार
बना रही है,
सोये हुए को
जगा रही है।

जीवन में हर पल की
क्रिया प्रतिक्रिया के फलस्वरूप
होने वाली कवायदें
जीवन में सार्थकता का
संस्पर्श करा रही हैं।
ये जीवन धारा में
बदलाव की वज़ह
बनती जा रही हैं।
१९/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
यह कैसा अपनापन ?
...कि आदमी का अचानक
अपमान हो
और अपनापन
परायापन सरीखा लगने लगे।
कोई क्रोध, नाराजगी जताने की
बजाय अपनापन दिखलाने वाला
खामोशी ओढ़ ले।

यह ठीक नहीं है।
इससे अच्छा तो वह अजनबी है ,
जो आदमी की पीड़ा को
सहानुभूति दर्शाते हुए सुन ले।
उसे दिलासा और तसल्ली दे
आदमी के भीतर हौसला और हिम्मत भर दे ।

इसे बढ़ावा देने वाले से क्या कहूं?
अपनेपन का दिखावा न करे ,
कम अज कम
बेवजह बेवकूफ बनाना बंद कर दे ।
इस सब से अच्छा तो परायापन ,
जो कभी कभार
शिष्टाचार वश
इज़्ज़त ,मान सम्मान प्रदर्शित कर दे ,
और तन मन के भीतर जिजीविषा भर दे ,
आदमी में जीने की ललक भरने का चमत्कार कर दे ।
अतः दोस्त सभी से सद्व्यवहार करो।
भूले से भी किसी का तिरस्कार न करो।
दुखी आदमी इस हद तक चला जाए
कि वह गुस्से से ही सही ,
हिसाब किताब की गर्ज से
ज़िंदगी की बही में बदला दर्ज कर जाए ,
ताकि अपमान और परायेपन का दर्द कम हो पाए।

१८/१२/२०२४.
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