तुमने बहुत दफा
बहुत से कुत्तों को
दफा करने की ग़र्ज से
उन पर परिस्थितियों वश
पत्थर फैंके होंगे।
और वे भी
परिस्थितियों वश
खूब चीखे चिल्लाए होंगे।
पर
आज
यह न समझना कि
तुम्हारी
दुत्कार फटकार
मुझे भागने को
बाध्य करेगी।
अलबेला श्वान हूं ,
भले ही... इंसानी निर्दयता से परेशान हूं।
अपनी मर्ज़ी का मालिक हूं ।
अपने रंग ढंग से जीने का आदी हूं ।
मैं , न कि कोई
ज़ुल्म ओ सितम का सताया
कोई मजलूम या अपराधी हूं!
कुत्ता हूं ,
ज्यादा घुड़कियां दीं
तो काट खाऊंगा।
तुम्हें ख़ास से आम आदमी
बना जाऊंगा।
जानवर बेशक हूं ,
पर कोई भेदभाव नहीं करता।
कोई छेड़े तो सही ,
तुरन्त काट खाता हूं।
फिर तो कभी कभी
खूब मार खाता हूं!
पर अपनी फितरत
कहां छोड़ पाया हूं ।
कभी कभी तो
अपने बदले की भावना की
वज़ह से मारा भी जाता हूं ,
अपना वजूद गंवाता हूं।
आदमी के हाथों मारा जाता हूं।
मैं सरेआम
अपने समस्त काम निधड़क करता हूं ,
खाना पीना, मूतना और बहुत कुछ !
पर मेरी वफादारी के आगे
तुम्हारे समस्त क्रिया कलाप तुच्छ !!
मैं / यह जो तुम्हें
पूंछ हिलाता दिखाई दे रहा हूं ,
यह सब मैंने मनुष्यों के साहचर्य में
रहते रहते ही सीखा है !
आप जैसे मनुष्य
स्वार्थ पूर्ति की खातिर
कुछ भी कर सकते हैं ,
यहां तक कि
अपने प्रियजनों को भी
अपने जीवन से बेदखल कर सकते हैं !
मैं श्वान हूं , इंसान नहीं
मुझे दुत्कारो मत ,
वरना आ सकती कभी भी शामत।
गुर्राहट करते हुए आत्म रक्षा करने का
प्रकृति प्रदत्त वरदान मिला है मुझे।
गुर्रा कर स्वयं को बचाना ,
साथ ही मतवातर पूंछ हिलाना ,
और अड़ना, लड़ना, भिड़ना,
सब कुछ भली भांति जानता हूं,
और इस पर अमल भी करता हूं ।
पर कभी कभी
जब कोई
अड़ियल , कडियल , मरियल , सड़ियल आदमी
मुसीबत बनने की चुनौती देने
ढीठपन
पर उतर आए
तो क्यों न उसे
अपने दांतों से
मज़ा चखाया जाए !
अपने भीतर की ढेर सारी कुढ़न
और गुस्से को भड़का कर
देर देर तक, रह रह कर
गुर्राहट करते करते चुनौती दी जाए ।
आदमी को
भीतर तक घबराहट भरने में सक्षम
कोई कर्कश स्वर-व्यंजन की ध्वनियों से तैयार
गीत संगीत रचा और सुनाया जाए।
ऐसा कभी कभी
श्वान सभी से कहना चाहता है।
क्यों नहीं ऐसी विषम परिस्थितियों को
उत्पन्न होने देने से बचा जाए ?
अपने जीवन के भीतर करुणा व दया भाव को भरा जाए।
२०/१२/२०२४.