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Joginder Singh Dec 2024
कष्ट
हद की दहलीज़ को
लांघ कर
आदमी को
पत्थर बना देता है ,
आंसुओं को सुखा देता है ।


कष्ट
उतने ही दे
किसी प्रियजन को
जितने वह
खुशी खुशी सह सके ।
कहीं
कष्ट का आधिक्य
चेतना को कर न दें
पत्थर
और
बाहर से
आदमी ज़िंदा दिखे
पर भीतर से जाए मर ।

२१/०२/२०१४.
Joginder Singh Dec 2024
लोग सोचते हैं कि
आपको सब कुछ पता है ,
आसपास का सब कुछ --
नहीं है आपकी आंखों से
ओझल कुछ भी कहीं।

पर आप जानते हैं --
स्वयं को अच्छी तरह से ,
फलत: आप चुप रहते हैं ,
अपना सिर झुका कर
हर क्षण,हर पल, चुपचाप
चिंतन मनन करते रहते हैं।
अपना सिर झुकाए हुए
सोचते हैं ,निज से कहते हैं कि...,
" कैसे कहूं अपना सच !
किस विधि रखूं अपने
जीवन में प्राप्त निष्कर्ष
जनता जनार्दन के सम्मुख।
सतत् परिश्रम बना हुआ है
उत्कृष्टता का केन्द्र
और जीवन का आधार!"
" इस के अतिरिक्त
और नहीं कुछ मुझे विदित ,
दुनिया न खुद के बारे में ।
बहुत सा सच है अंधियारे में।"

आप कहते कुछ नहीं,
आजकल सुनते भर हैं।
आप कहें भी किस से ?
सब समय की चक्की तले
मतवातर पिस रहें।

कभी कभी आप
सुनते भर नहीं ,
अविराम सोचते समझते हैं ,
भीतरी अंधेरे को
उलीचते भर हैं ।
ताकि जीवन के सच का
उजास जीवन में मिलता रहे।
इससे जीवन - पथ प्रकाशित होता रहे।
लोग सोचते हैं कि आपको सब पता है ,
आप सोचते हैं कि लोगों को सब पता है ,
सच्चाई यह है -- आप और भीड़ , दोनों लापता हैं,
और आप सब कुछ कहे बिना
अपने अपने ‌ढंग से ढूंढते अपने घर का पता हैं ।

०४/०८/२००८.
Joginder Singh Dec 2024
भले ही कोई
उतारना चाहे
दूध का कर्ज़ ,
अदा कर अपने फर्ज़।
यह कभी उतर नहीं सकता ,
कोई इतिहास की धारा को
कतई मोड़ नहीं सकता।
भले ही वह धर्म-कर्म और शक्ति से
सम्पन्न श्री राम चन्द्र जी प्रभृति
मर्यादा पुरुषोत्तम ही क्यों न हों ?
उनके भीतर योगेश्वर श्रीकृष्ण सी
'चाणक्य बुद्धि 'ही क्यों न रही हो !

मां संतान को दुग्धपान कराकर
उसमें अच्छे संस्कार और चेतना जगाकर
देती है अनमोल जीवन, और जीवन में संघर्ष हेतु ऊर्जा।
ऐसी ममता की जीवंत मूर्ति के ऋण से
पुत्र सर्वस्व न्योछावर कर के भी नहीं हो सकता उऋण।
माता चाहे जन्मदात्री हो,या फिर धाय मां अथवा गऊ माता,
दूध प्रदान करने वाली बकरी,ऊंटनी या कोई भी माताश्री।

दूध का कर्ज़ उतारना असंभव है।
इसे मातृभूमि और मातृ सेवा सुश्रुषा से
सदैव स्मरणीय बनाया जाना चाहिए।
मां का अंश सदैव जीवात्मा के भीतर है विद्यमान रहता।
फिर कौन सा ऐसा जीव है,
जो इससे उऋण होने की बालहठ करेगा ?
यदि कोई ऐसा करने की कुचेष्टा करें भी
तो माता श्री का हृदय सदैव दुःख में डूबा रहता!
कोई शूल मतवातर चुभने लगता,
मां की महिमा से
समस्त जीवन धारा
और जीव जगत अनुपम उजास ग्रहण है करता।
ममत्व भरी मां ही है सृष्टि की दृष्टि और कर्ताधर्ता !!
०३/०८/२००८.
Joginder Singh Dec 2024
आज
आदमी ने
अपने भीतर
गुस्सा
इस हद तक
भर लिया है कि
वह बात बेबात पर
असहिष्णु बनकर
मरने और मारने पर
हो जाता है उतारू ,
उसकी यह मनोदशा
आदमी को भटका रही है।
निरंतर उसे बीमार बना ‌रही है।
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में
कुछ भी बेकार नहीं होता ,
यहां तक कि
कवायद या कोई शिकवा शिक़ायत भी नहीं ,
आखिर हम इस सब के पीछे की
कहानी को समझें तो सही ।

कभी किसी की
शिकायत करें तो सही ,
कैसे नहीं अक्ल ठिकाने लगा दी जाती?
ज़िंदगी की पेचीदगियों की समझ,
समझ में समा जाती !
यह शिकायत,
शिकायत के निपटारे की
कवायद ही है ,
जो जीवन में
आदमी को
निरंतर समझदार
बना रही है,
सोये हुए को
जगा रही है।

जीवन में हर पल की
क्रिया प्रतिक्रिया के फलस्वरूप
होने वाली कवायदें
जीवन में सार्थकता का
संस्पर्श करा रही हैं।
ये जीवन धारा में
बदलाव की वज़ह
बनती जा रही हैं।
१९/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
यह कैसा अपनापन ?
...कि आदमी का अचानक
अपमान हो
और अपनापन
परायापन सरीखा लगने लगे।
कोई क्रोध, नाराजगी जताने की
बजाय अपनापन दिखलाने वाला
खामोशी ओढ़ ले।

यह ठीक नहीं है।
इससे अच्छा तो वह अजनबी है ,
जो आदमी की पीड़ा को
सहानुभूति दर्शाते हुए सुन ले।
उसे दिलासा और तसल्ली दे
आदमी के भीतर हौसला और हिम्मत भर दे ।

इसे बढ़ावा देने वाले से क्या कहूं?
अपनेपन का दिखावा न करे ,
कम अज कम
बेवजह बेवकूफ बनाना बंद कर दे ।
इस सब से अच्छा तो परायापन ,
जो कभी कभार
शिष्टाचार वश
इज़्ज़त ,मान सम्मान प्रदर्शित कर दे ,
और तन मन के भीतर जिजीविषा भर दे ,
आदमी में जीने की ललक भरने का चमत्कार कर दे ।
अतः दोस्त सभी से सद्व्यवहार करो।
भूले से भी किसी का तिरस्कार न करो।
दुखी आदमी इस हद तक चला जाए
कि वह गुस्से से ही सही ,
हिसाब किताब की गर्ज से
ज़िंदगी की बही में बदला दर्ज कर जाए ,
ताकि अपमान और परायेपन का दर्द कम हो पाए।

१८/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
टैलीविजन पर
समसामयिक जीवन और समाज से
संबंधित चर्चा परिचर्चा देख व सुन कर
आज अचानक आ गया
एक विस्मृत देशभक्त वीर सावरकर जी का ध्यान।

जिन्हें ‌आज तक देश की
आज़ाद फिजा के बावजूद
विवादित बनाए रखा गया।
उन्हें क्यों नहीं
भारत रत्न से सम्मानित किया जा सका ?
मन ने उन को ‌नमन किया।
मन के भीतर एक विचार आया कि
आज जरूरत है
उनकी अस्मिता को
दूर सुदूर समन्दर से घिरे
आज़ादी की वीर गाथा कहते
अंडेमान निकोबार द्वीपसमूह में
स्थित सैल्यूलर जेल की क़ैद से
आज़ाद करवाने की।
वे किसी हद तक
आज़ाद भारत में अभी भी एक निर्वासित जीवन
जीने को हैं अभिशप्त।
अब उन्हें काले पानी के बंधनों से मुक्त
करवाया जाना चाहिए।
उनके मन-मस्तिष्क में चले अंतर्द्वंद्व
और संघर्षशील दिनचर्या को
सत्ता के प्रतिष्ठान से जुड़े
नेतृत्वकर्ताओं के मन मस्तिष्क तक
पहुंचाया जाना चाहिए
ताकि अराजकता के दौर में
वे राष्ट्र सर्वोपरि के आधार पर
अपने निर्णय ले सकें,
कभी तो देश हित को दलगत निष्ठाओं से
अलग रख सकें।
वीर सावरकर संसद के गलियारों में
एक स्वच्छंद और स्वच्छ चर्चा परिचर्चा के
रूप में जनप्रतिनिधियों के रूबरू हो सकें।
कभी सोये हुए लोगों को जागरूक कर सकें।

सच तो यह है कि
भारत भूमि के हितों की रक्षार्थ
जिन देशी विदेशी विभूतियों ने
अपना जीवन समर्पित कर दिया हो ,
उन सभी का हृदय से मान सम्मान किया जाना चाहिए।

हरेक जीवात्मा
जिसने देश दुनिया को जगाने के लिए
अपने जीवनोत्सर्ग किया,
स्वयं को समर्पित कर दिया,
उन्हें सदैव याद रखना चाहिए।
ऐसी दिव्यात्माओं की प्रेरणा से
समस्त देशवासियों को
अपना जीवन देश दुनिया के हितार्थ
समर्पित करना चाहिए।
समस्त देश की शासन व्यवस्था
' वसुधैव कुटुम्बकम् 'के बीज मंत्र से
सतत् प्रकाशित होती रहनी चाहिए।
१८/१२/२०२४.
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