Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Joginder Singh Dec 2024
नाभि दर्शना साड़ी पहने
कोई स्त्री देखकर ,
पुरुष का सभ्य होने का पाखंड
कभी कभी खंडित हो जाता है ।
उसकी लोलुपता
उसकी चेतना पर पड़ जाती है भारी।
यह एक वहम भर है या हवस भरी सामाजिक बीमारी ?
इसका फैसला उसे खुद करना है।
उसे कभी तो भटकन के बाद शुचिता को वरना है।
१६/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
ਸੁਖ ਦੇ ਦਿਨਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੀ ਕਵਿਤਾ
ਬਹੁਤ ਕੋਮਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ,
ਪਰ ਜਦੋਂ ਕਵਿਤਾ ਰਚੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ,
ਭੁੱਖ ਤੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਦਿਨਾਂ ਵਿੱਚ
ਉਦੋਂ ਕਵਿਤਾ ਡੂੰਘੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
ਇਹ ਸਾਨੂੰ ਲਗਾਤਾਰ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਨ ਦੀ
ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਦਿੰਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ,
ਹਮੇਸ਼ਾ ਚੜ੍ਹਦੀ ਕਲਾ ਵਿੱਚ ਰੱਖਦੀ ਹੈ।

ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਸਮਾਂ ,
ਜਦੋਂ ਵੀ ਕਵਿਤਾ
ਭੁੱਖ ਤੇ ਦੁੱਖ ਦੀ ਕੁੱਖੋਂ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ,
ਉਦੋਂ ਉਦੋਂ ਕਵਿਤਾ
ਮਜ਼ਲੂਮ ਤੇ ਨਿਮਾਣਿਆਂ ਵਿੱਚ
ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਨ ਤੇ ਜੂਝਣ ਦੀ
ਸਮਰਥਾ ਪੈਦਾ ਕਰਦੀ ਹੈ।

ਵੇਖਿਓ ਇੱਕ ਦਿਨ ਇਹ ਕਵਿਤਾ
ਭੁਖ ਤੇ ਬਦਹਾਲੀ ਨੂੰ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚੋਂ ਕੱਢਣ ਲਈ
ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਬਣਦੀ ਰਹੇਗੀ ।
ਇਹ ਹਰੇਕ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ ਦੁਖ ਦਰਦਾਂ ਨੂੰ ਹਰੇਗੀ ।
ਇਸ ਸਮੇਂ ਸਮੇਂ ਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਅਗੁਵਾਈ ਵੀ ਕਰੇਗੀ।

ਇਹ ਸਭ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਸਮਾਂ,
ਨਾਲ ਹੀ ਉਹ ਮੰਗ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਸਭਨਾਂ ਤੋਂ ਖਿਮਾ ।

ਅੱਜ ਕੱਲ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ
ਸਮੇਂ ਵੀ ਸੋਚ ਸਮਝ ਕੇ ਬੋਲਦਾ ਹੈ,
ਉਹ ਆਪਣੇ ਮਨ ਦੀਆਂ ਘੁੰਡੀਆਂ
ਕਦੇ ਕਦੇ ਹੀ ਖੋਲ੍ਹਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ।
16/12/2024.
Joginder Singh Dec 2024
The future is
knocking at your door
to open the window of a mesmerizing
wonderful world.
But you have engaged yourself in the deep sleep.
It seems me you are in the grip of a horrible dream.
Be awake and aware
the present is the right time to achieve for the betterment of the life.
Nothing is impossible and beyond your reach and access.
Be become a self sufficient and successful person in this  life span.

The future is waiting for your initiatives to execute your plans in forthcoming life.
That is why , he wants to address you.
And you are merely lost in your ambitious life style and dreams.
Awake as soon as possible.
Nothing is impossible in the battlefield of life to achieve or self deceive.
Joginder Singh Dec 2024
आज  भी ,
कल  भी  ,  और  आगे भी
समाज  में  आग  लगी  रहेगी  न  !
हमारे  यहां  के  समय   में
समाजवाद  का  हो   चुका  है   आगमन  !
दमन  ,  वमन  ,  रमन  , चमन , गबन  और  गमन
आदि  सब  अपने  अपने  काम  धंधों  में  मग्न !
यदि   कोई  निठल्ला बैठा  है  तो  वह  है...
परिवेश  का  कोलाज ,
जो  समाज  और  समाजवादी  रंग  रूप
पर  रह  रह  कर
कहना  चाहता  है   अपवाद   स्वरूप  
कुछ मन के उद्गार!
आप के सम्मुख
रखना चाहता है मन की बात।
सुनिए   इस   बाबत  
आसपास   से   उठनेवाली  कुछ  ध्वनियां  !!

' निजता ' ,
' इज़्ज़त '  गईं   अब   तेल   लेने  !
ये  तो  बड़े  लोगों  की
बांदियां  हैं
और
छोटे-छोटे   लोगों   के   लिए
बर्बादियां  हैं   !!

अब   कहीं   भी   और   कभी   भी
निजता  बचनी   नहीं   चाहिए  ।
कहीं  कोई  इज़्ज़त   करनी  और   इज़्ज़त ‌  करवाने  की
परिपाटी   व  परम्परा   नहीं   होनी   चाहिए  ।


हर   घर   में   रोटी   पानी   चाहिए  ।
ज़िंदगी   में  अमन  चैन   बची  रहनी   चाहिए  ।
जीवन   अपनी   रफ्तार   और   शर्तों  से  
आगे   बढ़ना   चाहिए  ।
जी  भरकर  मनमर्ज़ियां  और  मनमानियां  की  
जानी   चाहिएं  ।
ज़िंदगी   खुलकर  जीनी   चाहिए  ।

अब   समाजवाद   आ   ही  जाएगा  ।
हर  कोई  समाजवादी  बन  ही  जाएगा  ।
जीवन   से  अज्ञानता  का  अंधेरा   छंट  ही  जाएगा  ।

कहीं  गहरे  से  एक  आगाह  करती
अंतर्ध्वनि  सुन  पड़ती  है ...,
'  वह  तो  आया  हुआ  है  जी  ! '
अब   उसे   मैं    क्या   कहूं    ?
रोऊं  या  हंसते हंसते रो पडूं ?

१६/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
बेकार की बहस
मन का करार लेती छीन
यह कर देती सुख समृद्धि,
धन संपदा को
तहस नहस।
अच्छा रहेगा
बेकार की बहस से
बचा जाए ,
सार्थक दिशा में आगे बढ़ा जाए।
क्यों न बंधुवर!
आज
जीवन धारा को
तर्कों की तुला पर
तोलते हुए
चंचल मन को
मनमर्ज़ियां करने से
रोकते हुए
जीवन खुलकर
जिया जाए
और
स्वयं को
सार्थक कार्यों में
लगाया जाए।

आज मन
सुख समृद्धि का
आकांक्षी है ,
क्यों न इसकी खातिर
ज़िंदगी की किताब को
सलीके से पढ़ा जाए
और
अपने को
आकर्षण भरपूर
बनाए रखने के निमित्त
स्वयं को
फिर से गढ़ा जाए ,
बेकार की बहस के
पचड़े में फंसने से,
जीवन को नरक तुल्य बनाने से
खुद को बचाया जाए।

आज आदमी अपने को
सत्कर्मों में लीन कर लें
ताकि इसी जीवन में
एक खुली खिड़की बनाई जाए,
जिसके माध्यम से
आदमी के भीतर
जीवन सौंदर्य को
निहारने के निमित्त
उमंग तरंग जगाई जाए।

आओ,आज बेकार की बहस से बचा जाए।
तन और मन को अशांत होने से बचाया जाए।
जीवन धारा को स्वाभाविक परिणति तक पहुंचाया जाए। आदमी को अभिव्यक्ति सम्पन्नता से युक्त किया जाए ।

मित्रवर!
बहस से बच सकता है तो बहसबाजी न ही कर।
बहस से तन और मन के भीतर वाहियात डर कर जाते घर।
१५/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
अच्छा खासा आदमी था,
रास्ता भटक गया।
बहुत देर बाद
मुंह में निवाला पाया था ,
गले में अटक गया ।

थोड़ी तकलीफ़ हुई ,
कुछ देर खांसी हुई ,
फिर सब कुछ शांत हुआ,
अच्छा खासा आदमी परेशान हुआ।
समय बीतते बीतते
थोड़ा पानी पीने के बाद
अटका निवाला
पेट के भीतर ले जाने में सक्षम हुआ ,
तब कहीं जाकर कुछ आराम मिला।
अपनी भटकन
और छाती में जकड़न से  
थोड़ी राहत मिली,
दर्द कुछ कम हुआ,
धीरे-धीरे
मन शांत हुआ, तन को भी सुख मिला।
अपनी खाने पीने की जल्दबाजी से
पहले पहल लगा कि
अब जीवन में पूर्ण विराम लगा,
जैसे मदारी का खेल  
खनखनाते सिक्कों को पाने के साथ बंद हुआ।


अच्छा खासा आदमी था
ज़िंदगी को जुआ समझ कर  खेल गया।
मुझ कुछ पल के लिए
जीवन रुक गया सा लगा,
अपनी हार को स्वीकार करना पड़ा,
इस बेबसी के अहसास के साथ
बहुत देर बाद
निवाला निगला गया था।

अपनी बर्बादी के इस मंजर को देख और महसूस कर
निवाला गले में अटका रह गया था।
सच! उस पल थूक गटक गया था ,
पर ठीक अगले ही पल
भीतर मेरे
शर्मिंदगी का अहसास
भरा गया था।
बाल बाल बचने का अहसास
भीतर एक कीड़े सा कुलबुला रहा था।
मैं बड़ी देर तक अशांत रहा था।
१६/०६/२००७.
Joginder Singh Dec 2024
झूठ बोलने से पहले
थोड़ा थूक गटक गया
तो क्या बुरा किया ?
कम से कम
मैं एक क्षण के लिए
सच को तो जिया।

यह अलग बात रही--
जिसके खिलाफ
अपने इस सच का
पैंतरा फैंका था ,
वह अपनी अक्लमंदी से बरी हुआ,
मुझे अक्लबंद सिद्ध कर विजयी रहा।


सच्ची झूठी इस दुनिया में
आते हैं बेहिसाब उतार चढ़ाव
आदमी रखे एक अहम हिसाब--
किस राह पर है समय का बहाव ?
जिसने यह सीख लिया
उसने जीवन की सार्थकता को समझ लिया।
उसने ही जीवन को भरपूर शिद्दत से जिया।
और इस जीवन घट में आनंद भर लिया।
१६/०६/२०१७.
Next page