आजकल
ठंड का ज़ोर है
और
काया होती जा रही
कमज़ोर है।
मैं सर्दी में
गर्मी की बाबत
सोच रहा हूँ ।
हीट कनवर्टर
दे रहा है गर्म हवा की सौगात!
यही गर्म हवा
गर्मी में
देती है तन और मन को झुलसा।
उस समय सोचता था
गर्मी ले ले जल्दी से विदा ,
सर्दी आए तो बस इस लू से राहत मिले,
धूल और मिट्टी घट्टे से छुटकारा मिले।
अब सर्दी का मौसम है,
दिन में धूप का मज़ा है
और रात की ठिठुरन देती लगती अब सज़ा है।
धुंध का आगाज़ जब होता है,
पहले पहल सब कुछ अच्छा लगता है,
फिर यकायक
उदासी मन पर
छा जाती है,
यह अपना घर
देह में बनाती जाती है।
गर्मी के इंतजार में
सर्दी बीतने की चाहत मन में बढ़ जाती है।
मुझे गर्म हवाओं का है इंतज़ार
मैं मिराज देखना चाहता हूँ ,
जब तपती सड़क
दूर कहीं
पानी होने की प्रतीति कराती है,
पास जाने पर
पानी से दूरी बढ़ती जाती है।
अपने हिस्से तो
बस
मृगतृष्णा ही आती है।
यह जीवन
इच्छाओं की
मृग मरीचिका से
जूझते जूझते रहा है बीत ।
मन के भीतर बढ़ती जा रही है खीझ।
१४/१२/२०२४.