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Joginder Singh Dec 2024
The presentation
without preparation
always brings humiliation in life.
So , one must observe and understand
the sequence of life 's activities minutely.

Remember and consider it seriously in one's life ,
brother !
Humiliation always
Compels us to cry.

So, let us prepare ourselves first.
Then we can present ourselves with ease and naturally.
If we take the life 's matter lightly,
we put ourselves in a state of perplexing and harmful situation.
In such a miserable postion, people always try to humiliate and tease our existence.

So dear friend,
present yourself humbly in life.
If you are capable to implement this suggestion in life.
Then , people around you , will listen your views regarding life and other issues seriously.
Joginder Singh Dec 2024
We all are
playing our respective
alloted roles
on a stage of the world.

But here ,
an Interlude exists.

I usually think about the performance of us .

Sometimes
I think while blinking in
the light of present
context of the life
that
who include Interlude
in my life with replacing
his philosophy of life during an ever waiting intermission of dramatic changes in the battlefield of life.

I keep myself silent while thinking about Interlude.
Joginder Singh Dec 2024
जब
अचानक
क्रोध से
निकली
एक चिंगारी
बड़ी मेहनत से
श्रृंगारी जिन्दगी को
अंदर बाहर से
धधकाकर ,
आदमी की
अस्मिता को झुलसा दे
तब
आप ही बताइए
आदमी कहाँ जाए ?

मन के भीतर
असंतोष की ज्वालाएं
फूट पड़ें
अचानक
......
मन के भीतर की
कुढ़न और घुटन
बेकाबू होकर
मन के अंदर
रोक कर रखे संवेगों को
बरबस
आंखों के रास्ते
बाहर निकाल दें ...!

तब तुम ही बता दो
आदमी क्या करे?
वह कहाँ जाए ?

कभी कभी
यह जिंदगी
एक मरुभूमि के बीच
श्मशान भूमि की
कराने लगती है
प्रतीति ,
तब
रह जाती  
धरी धराई
सब प्रीति और नीति ।

ऐसे में
तुम्हीं बताओ
आदमी कहाँ जाए ?
क्या वह स्वयं के
भीतर सिमटता जाए ?

क्यों न वह !
मन में सहृदयता
और सदाशयता के
लौट आने तक
खुद के मन को समझा ले ।
यह दुर्दिन का दौर भी
जल्दी ही बीत जाएगा।
तब तक वह धैर्य धारण करे।
वह खुद को संभाल ले ।

बेशक आज
निज के अस्तित्व पर
मंडरा रहीं हैं काल की
काली काली बदलियां ,
ये भी समय बीतने के साथ
इधर उधर छिटक बिखर जाएंगी।
सूर्य की रश्मियां
फिर से अपना आभास
कराने लग जाएंगी।
बस तब तक
आदमी ठहर जाए ,
वह अपने में ठहराव लेकर आए ,
तो ही अच्छा।
वह दिख पड़े फ़िलहाल
एकदम
सीधा सादा और सच्चा।

संकट के समय
आदमी
कहीं न भागे ,
न ही चीखे चिल्लाए ,
वह खुद को शांत बनाए रखे,
मुसीबत के बादल
जिन्दगी के आकाश में
आते जाते रहते हैं ,
बस जिन्दगी बनी रहनी चाहिए।
आदमी की गर्दन
स्वाभिमान से तनी रहनी चाहिए।

१३/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
To feel like a puppet makes me sad.
Am I  merely a dependent upon others to exist in life?
I am unable to take decisions regarding my life.
This indecisiveness in life makes me miserable in my own eyes.
That' s why ?
A puppet cry always silently !

To feel like a puppet makes life miserable.
Even inaccessible to self.
All such situations
usually disturbed  the life.
The haunting memories of the past life also disturbed  peace of the mind.
All such shades of time compels me to think myself that I am simply a helpless person living a miserable life.
Joginder Singh Dec 2024
Sir ,
Is deep state is simply a puppet show ?
If you have a visionary idea regarding this.
Then write a thanks letter to supreme authority who is organising this super hit 🎯 show on a massive scale..!
Thanking you.
Sincerely Yours ,
A puppet.
Joginder Singh Dec 2024
कभी कभी
अचानक
हो जाया करता है
धन का लाभ।
इससे हमें
खुश होने की नहीं
है जरूरत ,
हो सकता है कि
इस से होने वाला हो
कोई अनिष्ट।
कोई हमारी उज्ज्वल छवि पर
लगाना चाहे कोई दाग़।
हमें रखना होगा याद
कि कभी अचानक
गंदगी के ढेर से हो
जाता है प्राप्त
कोई चिराग़
जिसे रगड़ने और घिसने से
कोई जिन्न निकले बाहर
और आज्ञाकारी सेवक बनकर
कर दे हमारी तमाम इच्छाएं पूर्ण!
यह भी हमें आधा अधूरा रखने की साज़िश हो सकती है।
अतः हम स्वयं को संतुलित रखने का करें प्रयास,
ताकि निज के ह्रास से बचा जा सके,
जीवन पथ पर ढंग से अग्रसर हुआ जा सके।

यदि कभी अचानक हो ही जाए ,
कोई अप्रत्याशित धन लाभ
तो उसे दीजिए समाज भलाई के लिए
योजनाबद्ध ढंग से बांट।
बांटना और ढंग से धन संपदा को ठिकाने लगाना
बेहद आवश्यक है,
ताकि हमारी कर्मठता पर
न आए कभी आंच।
न हो कभी मंशा को लेकर कोई जांच।
सिद्ध किया जा सके,सांच को आंच नहीं,
यदि सब चलें अपनी राह पर सही , सही, मर्यादा में रहकर।
अप्रत्याशित धन लाभ से रहें सदैव सतर्क।
यदि फंसें किसी मकड़जाल में,
धरे रह जाएंगे सब तर्क वितर्क।

१२/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
Some voices always
remain unheard .
These neglected and rejected voices
make us slow and backward in life.
Let us try ourselves to listen these voices from time to time.
So that we can become self-sufficient during our journey of life.
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