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Joginder Singh Dec 2024
कभी-कभी
चेतना कहती है
वे
हत्यारे
रहे होंगे कभी
फ़िलहाल
रोटियां बांटते हैं,
नौकरियां देते हैं,
क्या
यह सच नहीं ?
फिर
किस मुंह से
उन्हें हत्यारा कहोगे ?
उनके बगैर गुज़ारा
कैसे करोगे ?
कभी कभी
चेतना कहती है ,
'अच्छा रहेगा
अपनी भूख दबा दो
कहीं गहरे रसातल में...!
फिर भले ही
उन्हें भूला दो ,
जिन्हें तुम 'आया मालिक '
कहते हो!
जिनके आगे पीछे
घूम घूमकर
अपनी दुम
हर समय  
हिलाते रहे हो !!
उनके ‌सामने
हर समय नाचते हो !!
वे
हत्यारे
रहे होंगे कभी
फ़िलहाल मालिक हैं
पोतते रहते कालिख हैं
मासूम चेहरों पर ।
उन्हें
हर समय डांट ‌लगा कर ,
उन्हें
जबरन गुलाम बनाकर ,
उनके मन-मस्तिष्क में
असंतोष जगाने का काम करते हैं ।
उन्हें
विद्रोही बनाने पर तुले हैं।

भले ही वे
उन्हें ‌हर पल
डांटते रहते हों
अपनी बेहूदा
आदतों की वज़ह से!
वे भी तुम्हारी तरह
भीतर तक शांत रहते हैं
पर हर बार डांट डपट
सहने के बावजूद
हर पल
हंसते मुस्कुराते रहते हैं !
अपनी आदतों की वज़ह से !!
क्या तुम इसे समझते हो ?
कहीं तुम भी तो
उन मालिकों और नौकरों की तरह
किसी तरह से भी कम नहीं ,
सताने और अत्याचार सहने को
अपनी आदतों में
शुमार करने के मामले में  !
क्या तुम भी शामिल हो
चालबाजी ,
हुल्लड़बाजी ,
शब्दों की बाजीगरी ,
चोरी सीनाज़ोरी के खेल में  ?
फिर तो कभी रात कटेगी जेल में!
कभी-कभी चेतना
हम सबको आगाह करती है
पर किसी किसी को
उसकी आवाज़ सुनाई देती है।
०६/०३/२०१८.
Joginder Singh Dec 2024
साथी
चाहता जब सुख
और
बिना हेर फेर
कर देता
अपनी चाहत का
इज़हार।

तब
एक  सकपकाहट
स्वत: भीतर आ जाती,
तोड़ देती
कभी-कभी
आत्मविश्वास तक !
आदमी सोचने लगता तब ,
अंदर भरे हैं ढ़ेरों दुःख ,
रह जाता वह तब चुप।

भीतर
एक डर
बना रहता है,
कहीं साथी
इसे कुछ और न मान लें !
काश ! वह मेरी मनोदशा जान ले !!
२१/१२/२०१६.
Joginder Singh Dec 2024
सफलता का इंतज़ार
किसी परीक्षा से कम नहीं है।
बड़ी मुश्किल से मुद्दतों इंतज़ार के बाद
सफल कहलाने की घड़ी आती है।
परीक्षा देते देते उम्र बीत जाती है।
०७/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
करने दो
उसे इंतज़ार।
इंतज़ार में
समय कट जाता है !
युग तक रीत जाता है!!
२१/१२/२०१६.
Joginder Singh Dec 2024
संवाद
अंतर्मन से
जब हुआ ,
समस्त
विवाद भूल गया !
सचमुच !
मैं झूम उठा !!

२१/१२/२०१६.
Joginder Singh Dec 2024
मुस्कराते चेहरे पर
रह रह कर
टिक जाती है नज़र
पर
चेहरे के 'चेहरे' पर
जब सचमुच पड़ती नज़र,
तब हक़ीक़तन
उड़ती चेहरे की मुस्कान!
खोने लगती पहचान !!
मुख पर परेशानी की
लकीरें दिखने लगतीं ।
खूबसूरती बदसूरती में
बदलती है जाती ।
यह मन मस्तिष्क को
बदस्तूर बेंधने लगती।
पल प्रतिपल
ऐसी मनोदशा में
नींद में सेंध लगने लगती !
रातें बेचैनी भरी जाग कर कटतीं!!
दिन में रह रह कर नींद आने लगती!!!
काम करने की कुशलता भी है घटती जाती।
२१/१२/२०१६.
Joginder Singh Dec 2024
जीवन में होती नहीं
जब कोई बनावट ।
मन मस्तिष्क में भी
जब तब सफल होने की ,
होने लगती है आहट ।

ऐसे में
चेहरे की बढ़ जाती है रौनक ,
होठों पर आन विराजती
रह रह कर मुस्कुराहट !
जो लेती हर , हरेक थकावट !!
२१/१२/२०१६.
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