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Joginder Singh Dec 2024
मैं :  हे ईश्वर !
       तुम साम्यवादी हो क्या ?

ईश्वर : हाँ ,  बिल्कुल ।
        मेरे यहाँ से
        व्यक्ति
        इस धरा पर
        समानता और स्वतंत्रता के
        अधिकार सहित आता है ।
  मैं :   फिर क्यों वह गैर बराबरी और
          शोषण का शिकार बन जाता है ?
  ईश्वर :...पर ज़माने की हवा खाकर कोई कोई
          व्यक्ति साधन सम्पन्न बनकर
         पूंजीवादी मानसिकता का बन जाता है।
         वह पहले पहल अपने हमसायों से ख़ूब मेहनत
         करवाता है।
         ‌फिर उन्हें बेच खाता है,
   ‌      शोषण का शिकार बनाता है।
   मैं: आप इस बाबत क्या सोचते हैं ?
   ईश्वर : सोचना ‌क्या ?
          आज का आदमी हर समय धन कमाने की सोच
  ‌         रखता है।
           वह उन्हें गुलाम बना कर रखता है ।
           उनके कमज़ोर पड़ने पर
            वह उन्हें हड़प कर जाता है । तुम्हारा इस बारे में
            क्या सोचना है ?
    मैं :  .......!
    ईश्वर : सच कहूं, बेटा!
‌‌          मेरा जी भर आता है और मुझे लगता है कि
            ईश्वर कहाँ?...वह तो मर चुका है । ईश्वर को तो
           आदमी के अहंकार ने मार दिया है।
    मैं: ......!!
     मैं ईश्वर के इस कथन के समर्थन में सिर हिला देता हूँ।
     पर कहता कुछ नहीं, उन्होंने मुझे निरुत्तर जो कर दिया
      है ।
Joginder Singh Dec 2024
सच
करता नहीं
आघात
कभी भी
किसी की अस्मिता पर।
वह तो प्रदाता है अद्भुत साहस का
कि जिससे मिले मतवातर
जीवन में उड़ान भरने का हौंसला।
सच तो अंतर्मन में
झांक झांक कर
करता रहता
सदैव सचेत
और आगाह...!
बने न रहो जीवन में
देर तक बेपरवाह
काल नदी का प्रवाह
तुम्हारी ओर
सरपट भागा चला आ रहा है,
वह सर्वस्व तक को
बहा ले जाने में सक्षम है
अतः खुद को श्रम में तल्लीन कर
अपने अस्तित्व को संभाल जाओ।

यही नहीं आगे
जीवन पथ पर
दुश्वारियों का समंदर
अथाह
कर रहा है
तुम्हारा इंतजार।

सुनो,संभल जाओ आज ,
नव जीवन का करना है आगाज़।

अपने भीतर की
थाह
पाने के लिए
करो
तुम सतत
चिंतन मनन,
सोच विचार।

ताकि
हो सकें तुम्हें
अपने स्वरूप के
दर्शन।

...और
कर सको तुम
इस जीवन को
शुचिता से सम्पन्न।

...और
निर्मित किया जा सके
एक ठोस जीवनाधार
करने जीवन का परिष्कार
जिससे अर्जित कर सको
जीवन में यश अपार।

०७/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
The canvas of the Life is very vast.
Here slow and fast simultaneously exists.
Keep faith in the purity and the
dignity of Life,so that we all can become a part of its comfort zone.

Life itself is a complete package in itself full of uncertainties,ups and downs, complexities, opportunities.

It requires our sincere efforts to make life easy and full of happiness.
We must keep ourselves disciplined for the sake of its improvisation.
Satisfaction and contentment is very essential for the upliftment of body and peace of mind in life.
Joginder Singh Dec 2024
जंगल में मंगल अमंगल
परस्पर एक दूसरे से
गुत्थमगुत्था हुए
करते रहते हैं अठखेलियां।

वहां कैक्टस सरीखी वनस्पति भी है,
तो बांस जैसी लंबी घास भी,
विविधता से भरपूर वृक्ष, झाड़ झंखाड भी।
इन जंगलों में पाप पुण्य से इतर
जीव जगत के मध्य चलता रहता है संघर्ष।
जैसे अचानक कहीं फूल खिल जाए ,
और अप्रत्याशित रूप से
कोई जीवन बुझ जाए ,
यहां हवा के चलने  से
सूखे और मुरझाए पत्ते
मतवातर गिरते जाएं
और वह पगडंडियों को
धीरे-धीरे लें ढक।


अब शहर जंगल सा हो गया है ,
जहां जीवन तेजी से रहा है भाग
सब एक आपाधापी में खोए हैं ।
इसी शहर में कभी-कभी
कोई विरला व्यक्ति
बहुत धीमी गति से
चलता दिखाई देता है ।
मुझे वह आदमी
जंगल का रखवाला सा प्रतीत होता है।

कभी-कभी इस जंगल में
कोई बालक धीरे-धीरे
अपने ही अंदाज से चलता दिखाई देता है,
कभी धीरे, कभी तेज़,कभी रुक गया,कभी भाग गया।
उसे देख मन में आता है ख़्याल
कि क्या कभी यह  नन्हा सा फूल
इस शहरी जंगल की आपाधापी के बीच
ढंग से खेल पाएगा ,या असमय
नन्हे कंधों पर महत्वाकांक्षा की गठरी लादे जाने से
किसी पत्ते जैसा होकर नीचे तो नहीं गिर जाएगा?
वह किसी बेपरवाह के पैरों के नीचे तो नहीं दब जाएगा ?


जंगल अब शहर में गमलों तक गया है सिमट।
जैसे अच्छी खासी जिंदगी
जो कभी जंगल की खुली हवा में पली-बढ़ी थी।
गांव से शहर आने के बाद  
दफ्तर और घर तक तक सीमित होकर रह जाए।
वह वहीं घुट घुट कर एक दिन जगत से निपट जाए।

अच्छा रहेगा ,  दोस्त !
अपने भीतर के कपाट खोले जाएं ।
स्मृति के झरोखों को खोल कर
अपना विस्मृत हुआ जंगल, जानवर और पंछी
फिर से अपने आसपास खोजें जाएं ।

प्राकृतिक जंगल में
जहां
सब कुछ बंधन मुक्त रूप से  
होता है घटित ,
वहीं
शहरी जंगल में
सब कुछ बंधा बंधा सा,
सब कुछ घुटा घुटा सा
होता है घटित।

कमबख्त आदमी
कभी भी
शहरी जंगल में
सुखी नहीं रह पाता है ,
और  कभी सुख का सांस नहीं ले पाता है,
वह तो असमय
एक मुरझाया फूल बनकर रह जाता है
जो हर समय
अपनी बचपन के जंगलों के
ख्वाब लेता रहता है।
०६/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
ਸ਼ਰਾਬ ਨਾ ਪੀਓ,
ਇਸ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਖੁੱਲ ਕੇ ਜੀਓ।

ਇਹ ਖੋਹ ਲੈਂਦੀ
ਬੰਦੇ ਤੋਂ ਖ਼ਵਾਬ ਤੇ ਸ਼ਬਾਬ
ਪਰੰਤੂ
ਬੰਦਾ ਇਸ ਸੱਚ ਨੂੰ
ਸਮਝਦਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ।
ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ
ਹਮੇਸ਼ਾ ਮੰਨਦਾ ਸਹੀ।
ਸ਼ਰਾਬ ਨਾ ਪੀਓ ,
ਇਸ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਖੁੱਲ ਕੇ ਜੀਓ।

ਬੰਦਾ ਸੋਚੇ ਮੈਂ ਇਸ ਨੂੰ ਪੀ ਰਿਹਾ ਹਾਂ।
ਖ਼ਬਰੇ ਸ਼ਰਾਬ ਸੋਚਦੀ ਹੋਵੇ ,
ਮੈਂ ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਪੀ ਰਹੀ ਹਾਂ।
Joginder Singh Dec 2024
ਇਸ਼ਕ ਦੀ ਕੂਕ
ਜਦੋਂ ਦਿਲੋਂ ਨਿਕਲਦੀ ਹੈ
ਤਾਂ ਲੰਬੀਆਂ ਪੈੜਾਂ ਵੀ
ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਘੱਟ ।
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ
ਪਿਆਰ ਭਰੀ ਖੁਸ਼ਬੂ
ਸੰਮੋਹਣ ਬਣ ਕੇ
ਫੈਲਦੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ।
ਮਨ ਦੇ ਅੰਦਰ ਛੁਪੇ
ਅਹਿਸਾਸਾਂ ਵਿੱਚ
ਰਵਾਨਗੀ ਤੇ ਠੰਡਕ
ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ।
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ
ਅਸਮਾਨ ਵਿੱਚ
ਰੰਗ ਬਿਰੰਗੀਆਂ
ਹਸਰਤਾਂ ਤੇ ਤਾਂਘਾਂ
ਇੰਦਰਧਨੁਸ਼ ਬਣ ਕੇ
ਛਾ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ।
ਮਨ ਦੇ ਅੰਦਰ ਦੀਆਂ
ਤਲਖੀਆਂ ਖ਼ਤਮ
ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ।
Joginder Singh Dec 2024
ਇਸ਼ਕ ਹੋਵੇ
ਤਾਂ ਅਣਖ ਨਾਲ ‌‌!
ਬੰਦਾ ਜੀਵੇ
ਮੜ੍ਹਕ ਨਾਲ !!

ਕਹਿੰਦੀ ਹੈ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ,
ਮੜ੍ਹਕ ਨਾਲ ਜੀਇਆ ਕਰੋ ।
ਕਿਵੇਂ ਨਾ ਮਿਲੂ ਸੁਕੂਨ ?
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