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Joginder Singh Dec 2024
Connecting to original
makes us too some extent original
as our origin speaks itself.
If you are an introvert soul and keen not to express your self to others.
It is quite good signs for the upliftment of peace and happiness of life, which exists inside only.
The worldly activities are eagerly waiting your participation.

And, more or less you are an extrovert
soul as your day to day activities of daily life speaks.

If you are eager to express your curiosity regarding outer world and it's tendencies.
It is useful and fruitful also.  
Your opinions regarding 'eat,drink and be marry,' can be heard from your  actions for worldly pleasures.
We need  your advice as you proved wisely  while spending your time to attain materialistic goals in life.


We are living in a world of uncertainties.
For  a peaceful, successful journey of life, let's modify our life style .
We  should maintain a balance between our desires, dreams and urgently required needs.
So that we should be able to feed our hungry soul,which is utmost important for the elevation as well as the upliftment of body,mind and soul.

So  you must try yourself to become  a good person in present life.
And connect your futuristic dreams to originality of the life.
Joginder Singh Dec 2024
देह से नेह है मुझे
यह चाहे गाना अब  देह का राग
भीतर भर भर कर  
संवेदना
करना चाहे यह संस्पर्श अनुभूतियों के
समंदर का ।
हाल बताना चाहे मन के अंदर उठी
लहरों का ।
यह सच है कि
इससे
नेह है मुझे
पर मैं इसे स्वस्थ
नहीं रख पाया हूँ।
जिंदगी में भटकता आया हूँ।

जब यह
अपनी पीड़ा
नहीं सह पाती है तो बीमार
हो जाती है ,
तब मेरे भीतर चिंता
और उदासी भर जाती है।

इससे पहले कि
यह लाइलाज़ और
पूर्ण रूपेण से हो
रुग्ण
मुझे हर संभावित करना चाहिए
इसे स्वस्थ रखने के प्रयास।
पूरी तरह से
इसके साथ रचाना चाहिए
संवाद।
इससे खुलकर करनी चाहिए
बात।
इसकी देह में भरना चाहिए
आकर्षण।
आलस्य त्याग कर
नियमित रूप से
करना चाहिए
व्यायाम।
ताकि यह अकाल मृत्यु से
सके बच।
यह खोज सके
देहाकर्षण के आयाम।
दे सके अशांत, आक्रांत,
आत्म को भीतर तक ,
गहरे शांत करने
के निमित्त
दीर्घ चुम्बन!
हों सकें समाप्त
इसके भीतर की सुप्त
इच्छाओं से निर्मित
रह रह कर होने वाले
कम्पन
और निखर सके तनाव रहित होकर
देह के भीतर के वासी का मन।

देह की राग गाने की इच्छा की
पूर्ति भी हो जाए,
इसके साथ साथ
भीतर इसके उमंग तरंग भर जाए ।

आज ज़रूरी है
यह
तन और मन की जुगलबंदी से
राग,ताल, लय के संग
जीवन के राग गाए,
ज़रा सा भी न झिझके
अपना अंतर्मन खोल खोल भीतर इकठ्ठा हुआ
सारा तनाव बहा दे ।
करे यह दिल से
नर्तन!
छूम छन छन...छिन्न...छन्ना छन ...छ।...न...!!

देह से नेह है मुझे
पर...मैं...
इसे मुक्त नहीं कर पाया हूँ ।
इससे मुक्त नहीं हो पाया हूँ।
शायद
देह का राग
मुझ में
भर दे विराग ,
जगा दे
दिलोदिमाग को
रोशन करता हुआ
कोई चिराग़।
और इस की रोशनी में
देह अपने समस्त नेह के साथ
गा सके देह का सम्मोहक
तन और मन के भीतर से प्रतिध्वनित
रागिनी के मनमोहक रंग ढंग से
सज्जित
मनोरम राग
और जो मिटाए
देह के समस्त विषाद ।
कर सके तन और मन से संवाद।

१७/०१/२००६.
Joginder Singh Dec 2024
अवैध संबंध
लत बनकर
जीव को करते हैं
अकाल मृत्यु के लिए बाध्य।

जीव
इसे भली भांति जानता है ,
फिर भी
वह खुद को इन संबंधों के
मकड़जाल में उलझाता है।
असमय
यमदेव को करता है
आमंत्रित।

मरने के बाद
वह माटी होकर भी
शेष जीवन तक ,
मुक्ति होने तक
प्रेत योनि में जाकर
अपनी आत्मा को
भटकाता रहता है।
वह नारकीय
जीवन के लिए
फिर से हो प्रस्तुत!
जन्मने को हो उद्यत!

अवैध संबंध
भले ही पहले पहल
मन के अंदर
भरें आकर्षण।
पर अंततः
इनसे आदमी
मरें असमय,
प्राकृतिक मौत से
कहीं पहले
अकाल मृत्यु का
बनकर शिकार ।
क्यों न वे
अपने भीतर
समय रहते
अपना बचाव करें।

आओ,
हम अवैध संबंध की राह
से बचने का करें प्रयास।
ताकि हम उपहास के
पात्र न बनें।
बल्कि जीवन में
सुख, शांति, संपन्नता की ओर बढ़ें।
क्यों न करें
हम अपना बचाव ?
फिर कैसे नहीं
जीवन नदिया के
मध्य विचरते हुए ,
लहरों से जूझकर
सकुशल पहुंचे,
लक्ष्य और ठौर तक
जीवन की नाव ?
आओ, हम अपना बचाव करें ।
अनचाहे परिणामों और रोगों से
खुद को बचा पाएं ।
संतुलित जीवन जी पाएं ।

१७/०१/२००६.
Joginder Singh Dec 2024
बेशक
कोयल सुरीला कूकती है।
मुझे गाने को उकसाती है।

मैं भी मूर्ख हूं ।
बहकाई में जल्दी आ जाता हूं।
सो कुछ गाता हूं,...
कांव! कांव!! कांव!!!
तारों की छांव में
मैं मैना अंडे ढूंढता हूं।  
कांव! कांव!! कांव !!!
लगाऊं मैं दांव!
कांव!कांव!!  कांव!!!
(घर के) श्रोताओं को
मेरा बेसुरापन अखरता है।
इसे बखूबी समझता हूं।
पर क्या करूं?
आदत से मजबूर हूं।
उनके टोकने पर
सकपका जाता हूं।
कभी कभी यह भी सोचता हूं कि
काश ! मैं कोयल सा कूक पाऊं।
वह कितना अच्छा गाती है।
मन को बड़ा लुभाती है ।
वह कभी कभार
कौए को ,
उस  को खुद के जानने बूझने के बावजूद
मूर्ख बना जाती है।


यह बात नहीं कि
कोयल
कौए की चाहत को
न समझती हो,
पर
यह सच है कि
वसंत ऋतु में
कौवा यदि
कोयल से
गाने की करेगा होड़
तो कोयल के साथ-साथ
दुनिया भी हंसेंगी तो सही ।

वह यदि तानसेन बनना चाहेगा,
तो खिल्ली तो उड़ेगी ही।
कौआ मूर्ख बनेगा सही।

आप मुझे बताना जरूर।
कोयल कौए को बूद्धू बना कर
क्या सोचती होगी?
और
कौआ कैसा महसूसता होगा,
भद्दे तरीके से
पिट जाने के बाद ?
क्या कोयल भी
कभी कहती होगी, 'आया स्वाद।'

बेशक
कोयल सुरीला गाती है।
कभी-कभी कौवे को गाने के लिए उकसाती है।
बेचारा कौवा मान भी जाता है।
ऐसा करके वह मुंह की खाता है।
कौआ इसे खुले मन से स्वीकारता भी है।
कौआ हमेशा छला जाता है।
भले ही गाना गाने की बात हो
या फिर
कौए के द्वारा
अपने घौंसले में
किसी और के अंडे सेने
जैसा काम हो।
भले यह लगे
हमें एक मजाक हो।
है यह कुदरत में घटने वाला
एक स्वाभाविक क्रिया कलाप ही।
हर बार ग़लती करने के बाद
करनी पड़ती अपनी गलती स्वीकार जी।
माननी पड़ती अपनी हार जी।
१६/०७/२००८.
Joginder Singh Dec 2024
खंडहर होते ख़्वाब
अब कभी कभी मेरे ख्यालों में आकर
मुझे तड़पाने लगे हैं।
मुझे अपने जैसा खंडहर बनाने पर तुले हैं।

खंडहर होते ख़्वाब
देने लगे हैं  
अब
आदमी की अकर्मण्यता को
मुंह तोड़ जवाब!

खंडहर होते ख्वाब
मांगते हैं अब
बीते पलों का हिसाब ,
ज़िन्दगी
अब
लगने लगी है  एक श्राप ।

कभी सोचा है आपने
ख्वाब खंडित क्यों होते हैं?
बिना ख्वाबों के जीने वाले लोग
मुरझाए फूल सरीखे क्यों होते हैं?
जबकि हकीकत यह है कि
ख्वाबों के मुरझाने से पहले
वे तीखे नश्तर होते हैं।
कहीं भीतर तक
असहिष्णु, लड़ने - लड़ाने,
मरने - मारने पर उतारू,
कहीं गहरे तक जूझारू।

ख्वाबगाह
जब तक गुलज़ार रहती है,
हिम्मत हर पल छलकने और भड़कने को
तैयार रहती है,
जैसे ही यौवन ढला,
जिस्म तनिक कमज़ोर हुआ,
हिम्मत ज़वाब दे जाती है।
ख़्वाब की तरह खंडहर होने की
नियति से जूझने को अभिशप्त
हर समय तना रहने वाला आदमी
ज़िंदगी की सांझ में
झुकता चला जाता है ,
वह समाप्त प्रायः हो जाता है।
अपने पुश्तैनी घर की तरह
शांत, अकेला, चुपचाप सा वीरान हो जाता है।
वह करता रहता है इंतज़ार
खंडहर होते ख़्वाब के खंड खंड होकर खंडित होने का,
प्रस्थान वेला आने का।
ज़िंदगी के मेले झमेले के बीत जाने का।
खुद के रीत जाने का।
खुद के गुज़रा हुआ कल होने का।
रीतते  रीतते ,बीतते बीतते,
अतीत बन ,
समय के भीतर खो जाने का अहसास भर होना
खंडहर होते ख़्वाब को जीना नहीं तो क्या है ?
यह सब अपने भीतर घटता महसूस करने से मैं चुप हूं।
०२/१२/२०२४.
Joginder Singh Dec 2024
एक कमज़ोर क्षण में बहकर
मैं जिंदगी से बेवफ़ाई कर बैठा!
सो अब पछता रहा हूं।
उस क्षण को वापस बुला रहा हूं,
जिस पल मैं सहजता से
अपनी ग़लती को कर लूं स्वीकार,
ताकि बना रहे जीवन में
अपनापन और अधिकार।

अब अपनी कमज़ोरी पर
विजय हासिल करना चाहता हूं,
रह रह कर भीतर से कराहता हूं
पर अंदर मेरे, मानवीय कमजोरियों की
एक सतत् श्रृंखला चलायमान रहकर
मुझे कर रही है लहूलुहान,
लगता है कि खुद से मतवातर बतियाना कर देगा ,
मेरी तमाम चिन्ताओं, परेशानियों का समाधान।
१३/०६/२०१८.
Joginder Singh Dec 2024
ज़िंदगी
मौत को
देती है मात !
...

क्योंकि जीवन धारा में
मौत है
एक ठहराव भर !!
यहां
पल प्रतिपल
संशयात्मा
अपने भीतर
अंधेरा भर रही है !
जो खुद की
परछाइयों से
सतत् डर रही है !

अब आप ही बताइए
कि कौन मर रहा है ?
मौत का सौदागर
या ज़िंदगी का जादूगर ?

आखिरकार
ज़िंदगी
मौत को मात
दे ही देती है ,
क्योंकि जिंदगी के
क्षण क्षण में
जिजीविषा भरी है
सो यह जीवन धारा के
साथ बहकर आसपास
फैली गन्दगी को भी
बहाकर ले जाती है ।

ज़िंदगी
जब कभी भी
बिखेरती है
मेरे सम्मुख
अपने सम्मोहन के रंग !
रह जाता हूं ,
बाहर भीतर तक
हैरान और दंग !!

ज़िंदगी
परम प्रदत्त
एक सम्मोहक
चेतना है
जो आदमी को
खुदगर्ज़ी के दलदल से
परे धकेलती है,
और यह अविराम चिंतन से
अपने नित्य नूतन
आयामों से परिचित करवा कर
हमारी चेतना को प्रखर करती है।
१२/०६/२०१८.
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